प्रोस्टेट कैंसर पुरुषों में तेजी से बढ़ने वाली एक गंभीर बीमारी है। भारत में हर साल करीब 10,000 पुरुष एडवांस्ड प्रोस्टेट कैंसर से पीड़ित पाए जाते हैं। यह कैंसर अक्सर धीरे-धीरे बढ़ता है, लेकिन कई बार शरीर के अन्य हिस्सों में फैलकर जानलेवा हो जाता है। सबसे बड़ी चुनौती यह रही है कि हर मरीज पर एक जैसी कीमोथेरेपी समान असर नहीं करती।
यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (यूसीएल) के शोधकर्ताओं की एक नई खोज ने इस स्थिति को बदलने की दिशा में उम्मीद जगाई है। यह शोध हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल सेल में प्रकाशित हुआ है। इसमें बताया गया है कि मॉलिक्यूलर प्रोफाइलिंग यानी जीन की जांच करके यह पहचाना जा सकता है कि किस मरीज को कीमोथेरेपी विशेष रूप से डोसेटैक्सेल से लाभ होगा और किसे इससे बचाना चाहिए। अमेरिका में पहले से प्रचलित प्रोस्टेट जीनोमिक क्लासिफायर टेस्ट इस दिशा में कारगर साबित हो सकता है।
अध्ययन में 1,523 मरीज शामिल किए, जो पहले से स्टैम्पेड थर्ड फेज क्लीनिकल परीक्षण का हिस्सा थे। ये एंड्रोजन डिप्राइवेशन थेरेपी (एडीटी) ले रहे थे, जिसमें पुरुष हार्मोन टेस्टोस्टेरोन को रोका जाता है ताकि कैंसर की बढ़त धीमी हो। इसके बाद देखा गया कि जब एडीटी के साथ कीमोथेरेपी दी जाती है तो उसका प्रभाव कैसा होता है। 832 मेटास्टेटिक मरीजों का विशेष परीक्षण किया गया। जिन मरीजों का डिफेर स्कोर ऊंचा था, उनमें कीमोथेरेपी से मौत का खतरा 36% तक घट गया। जिनका डिफेर स्कोर कम था, उन्हें कोई फायदा नहीं मिला। इसका मतलब यह है कि डॉक्टर अब आसानी से तय कर पाएंगे कि किस मरीज को कीमोथेरेपी देनी है और किसे नहीं। इससे मरीजों को अनावश्यक साइड इफेक्ट जैसे कमजोरी, बाल झड़ना, थकान और संक्रमण से भी बचाया जा सकेगा।
नई खोजें और भविष्य की संभावनाएं
अध्ययन में यह भी सामने आया कि जिन मरीजों में पीटीईइन जीन निष्क्रिय होता है, वे हॉर्मोन थेरेपी से कम फायदा उठाते हैं लेकिन कीमोथेरेपी से ज्यादा लाभ पाते हैं। इसका मतलब है कि आने वाले समय में मरीजों का इलाज उनकी मॉलिक्यूलर प्रोफाइलिंग के आधार पर और भी ज्यादा व्यक्तिगत व प्रभावी बनाया जा सकेगा।
दूसरा सबसे आम कैंसर
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रोस्टेट कैंसर दुनिया में पुरुषों में दूसरा सबसे आम कैंसर है। वैश्विक स्तर पर हर साल करीब 15 लाख नए मामले सामने आते हैं और लगभग 3.7 लाख मौतें इसी बीमारी से होती हैं। अध्ययन में बताया गया है कि ब्रिटेन में हर साल लगभग 55,100 पुरुष प्रोस्टेट कैंसर से ग्रसित होते हैं और करीब 12,000 मौतें इसी बीमारी के कारण होती हैं।
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