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आलेख

छत्तीसगढ़ का मंगल पाण्डे लश्कर हनुमान सिंह-धनंजय राठौर

(स्वतंत्रता दिवस पर विशेष) 1857 के विद्रोह को कई नामों से जाना जाता है, जिनमें भारतीय विद्रोह, सिपाही विद्रोह, 1857 का महान विद्रोह, भारतीय विद्रोह और भारतीय स्वतंत्रता का पहला युद्ध शामिल है। 19वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध तक, ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत के बड़े हिस्से को अपने नियंत्रण में …

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आदिवासी सत्य : विश्व आदिवासी दिवस पर आत्मचिंतन- डॉ.राजाराम त्रिपाठी

   सभी जनजातीय क्षेत्रों में 09 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस तीर-कमान, ढोल-मृदंग और पारंपरिक वेशभूषा तथा पारंपारिक नृत्य के साथ मनाया गया। खूब भाषणबाज़ी हुई। जैसे अन्य ‘दिवसों’ पर होती है, वही शाश्वत वादे, वही पुरानी घोषणाएँ, वही भावनात्मक नारों की गूंज। लेकिन आज, एक दिन बाद, जब उत्सव …

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गुलाम थे तो एक थे, आजादी मिलते ही बंट क्यों गए : प्रो. संजय द्विवेदी

भारत गुलाम था तो हमारे नारे थे ‘वंदेमातरम्’ और ‘भारत माता की जय’। आजादी के बहुत सालों बाद नारे गूंजे ‘भारत तेरे टुकड़े होंगें’। क्या भारत बदल गया है या उसने आजादी के आंदोलन और उसके मूल्यों से खुद को काट लिया है। आजाद भारत की यह त्रासदी है कि …

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लोकतंत्र,समता और संपन्नता तीनों चाहिये साथ-साथ – रघु ठाकुर

समाजवादी विचारधारा को लेकर सदैव कई प्रकार के संशय और आरोप लगाए जाते रहे हैं। यद्यपि आजादी के कई वर्षों के बाद स्वयं जवाहरलाल नेहरू ने समाजवादी ढंग की समाज रचना का उल्लेख कांग्रेस पार्टी के अवाड़ी अधिवेशन में एक प्रस्ताव में कराया था और वह भी इनकी लाचारी थी, …

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नकली खाद का जाल, किसान परेशान – डा.राजाराम त्रिपाठी

  बीज तो बोया था अमृतमय अन्न का, बोरी वाली खाद डाली थी बढ़िया सरकारी सील-ठप्पे वाली, पर फसल से निकला ऐसा कुछ कि न पेट भरा, ना जेब।फटी जेब की सिलाई भी नहीं हो पाई और खेत की जमीन भी बंजर हो गई। जिस धरती को ‘भारत माता’ कहा …

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इजराइल और हमास युद्ध – रघु ठाकुर

इजराइल और हमास के बीच चल रहे दीर्घकालिक युद्ध के बीच इजराइल ने अचानक एक नया मोड़ लिया और ईरान पर मिसाईल अटैक किया। आरंभ में ईरान उत्तर देगा ऐसा उसने कहा, परंतु दुनिया में एक धारणा थी कि इजराइल सैन्य शक्ति के रूप में बहुत शक्तिशाली है अतः ईरान …

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पंच परिवर्तन से बदल जाएगा समाज का चेहरा-मोहरा – प्रो. संजय द्विवेदी

(राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के शताब्दी वर्ष पर विशेष)     इतिहास के चक्र में किसी सांस्कृतिक संगठन के सौ साल की यात्रा साधारण नहीं होती। यह यात्रा बीज से बिरवा और अंततः उसके वटवृक्ष में बदल जाने जैसी है। ऐसे में उस संगठन के भविष्य की यात्रा पर विमर्श होना बहुत …

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क्या ‘मांसाहारी-दूध’ के लिए मजबूर किया जा रहा भारत ?- डा.राजाराम त्रिपाठी

     जिस देश में गाय मात्र एक पशु नहीं, बल्कि आस्था, अर्थव्यवस्था और कृषि जीवन-धारा की प्रतीक रही है; जहां “गोमाता” को साक्षात धरती पर देवत्व के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है; उस देश में यदि गाय की कोशिकाओं से संवर्धित प्रयोगशाला निर्मित कृत्रिम दूध को सरकारी अनुमति देने …

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तय कीजिए आप जर्नलिस्ट हैं या एक्टीविस्ट ! -प्रो. संजय द्विवेदी

(प्रो.संजय द्विवेदी) भारतीय मीडिया अपने पारंपरिक अधिष्ठान में भले ही राष्ट्रभक्ति,जनसेवा और लोकमंगल के मूल्यों से अनुप्राणित होती रही हो, किंतु ताजा समय में उस पर सवालिया निशान बहुत हैं। ‘एजेंडा आधारित पत्रकारिता’ के चलते समूची मीडिया की नैतिकता और समझदारी कसौटी पर है। सही मायने में पत्रकारिता में अब …

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महिलाओं के प्रति सम्मान के बिना कैसे आयेगी नर-नारी समता ? – रघु ठाकुर

(रघु ठाकुर) अभी कुछ समय पूर्व संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार समूची दुनिया ने विश्व महिला दिवस मनाया। भारत में भी यह दिवस बड़े पैमाने पर मनाया गया। दुनिया और देश में किस प्रकार महिलाएं आगे जा रही है इसका भी चित्रण किया गया। इसमें कोई दो मत नहीं है …

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