मध्यप्रदेश चुनाव: चुनाव की घोषणा से पहले ही कई नेताओं झाबुआ के कड़कनाथ और अन्य देशी मुर्गे का स्टॉक कर लेते हैं। क्रॉस ब्रीड कड़कनाथ जो चुनाव घोषणा के पहले तक 900 रुपये में बिक रहा था, जो घोषणा के बाद 1100 रुपये में खुले बाजार में अब बिकने लगा है…
कहावत है कि राजनीति जो न करवाए वो कम है। मध्यप्रदेश में चुनाव का एलान होते ही झाबुआ में कड़कनाथ मुर्गों की डिमांड बढ़ने लगी है। झाबुआ का प्रसिद्ध यह मुर्गा आम दिनों में 800 से 950 रुपये प्रति नग बिकता है। लेकिन आदिवासी बहुल इलाके झाबुआ-आलीराजपुर में चल रही चुनावी दावतों के चलते इन मुर्गों के रेट बढ़ गए हैं। बाजार में अब कड़कनाथ 1500 से 2000 रुपये के बीच बिक रहा है। कड़कनाथ मुर्गा मूलतः मध्यप्रदेश के झाबुआ का ब्रीड है, इसलिए भारत सरकार ने इसे झाबुआ का कड़कनाथ नाम से जीआई टैग दिया भी हुआ है।
आखिर कड़कनाथ मुर्गे के दामों में अचानक उछाल क्यों आया है? इस सवाल के जवाब में स्थानीय कड़कनाथ विक्रेताओं का कहना है कि जब मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव होते हैं, उस समय गुलाबी ठंड का मौसम होता है। इस दौरान बड़ी तादाद में बाहरी प्रदेशों और जिलों से प्रचार करने लोग इस आदिवासी क्षेत्र में आते हैं। तब वे झाबुआ आने पर कड़कनाथ खाने की इच्छा रखते हैं। अपने स्थानीय संपर्कों की मदद से वह अपना शौक पूरा करने की कोशिश करते हैं। इसलिए चुनावों में इसकी मांग बढ़ती है और आपूर्ति प्रभावित होती है। दाम लगभग दोगुने हो जाते हैं।
व्यापारी बताते हैं कि आदिवासी जिलों की राजनीति में ग्रामीण मतदाताओं का अहम रोल होता है। वे ही प्रत्याशियों की हार जीत का फैसला करते है। क्योंकि शहरी वोट विभाजित हो जाते हैं, लेकिन ग्रामीणों द्वारा किया जाने वाला मतदान एक तरफा होता है। जो प्रत्याशी के राजनीतिक भविष्य को तय करता है। ग्रामीण को अपने पक्ष में करने के लिए उम्मीदवार सरपंचों और अन्य स्थानीय नेताओं की मदद लेते हैं। वे नेताओं और लोगों को कड़कनाथ की दावत का प्रभोलन भी देते हैं।
चुनाव साल में कुछ इस तरह तैयार करते हैं व्यापारी
चुनाव की घोषणा से पहले ही कई नेताओं झाबुआ के कड़कनाथ और अन्य देशी मुर्गे का स्टॉक कर लेते हैं। क्रॉस ब्रीड कड़कनाथ जो चुनाव घोषणा के पहले तक 900 रुपये में बिक रहा था, जो घोषणा के बाद 1100 रुपये में खुले बाजार में अब बिकने लगा है। वहीं देशी कडकनाथ जो 1000 रुपये तक में बिकता था। वह अब 1500 से 2000 रुपये तक पहुंच गया है। अब इसकी कीमतों में ओर तेजी आ जाएगी। स्थानीय व्यापारियों का कहना है कि विधानसभा चुनाव के साल में वोटिंग के चार-पांच महीने पहले से चूजे लाकर बड़ा करते हैं और प्रचार अभियान के दौरान अच्छा मुनाफा कमाते हैं।
आदिवासी बेल्ट में है ये परंपरा
आमतौर पर आदिवासी जिलों के ग्रामीण इलाकों में यह कथित परंपरा विद्यमान है। इसके तहत आदिवासी जिलों के हजारों फलियों में सार्वजनिक बैठकों के बाद होने वाले भोजन में बकरों एवं मुर्गों का इस्तेमाल आमतौर पर किया जाता है। यदि बैठकें अपने हित या पक्ष में करवानी हैं, तो फिर प्रत्याशियों को ऐसी हर बैठक के लिए बकरे, मुर्गे, शराब के साथ-साथ फलिये के प्रभावशाली व्यक्ति को कुछ नकदी दिया जाना लाजमी है। अधिकांश फलियों में यह परंपरा विद्यमान है।
एक्ट्रा आयरन का सोर्स है कड़कनाथ
कड़कनाथ मुर्गें का रंग इसलिए काला होता है,क्योंकि इसमें अतिरिक्त आयरन और मेलोनिन पाया जाता है। कड़कनाथ मुर्गे के सेवन से मानव शरीर की इम्यूनिटी बढ़ती है, इसलिए इसके सेवन की सलाह दी जाती है।