नैनीताल: 15 जून को कैंची धाम का 60वां स्थापना दिवस मनाया जाएगा। इस बार भारी संख्या में भक्तों के पहुंचने की उम्मीद है। पहले स्थानीय भक्तजनों के अलावा बाहर से गिने-चुने ही भक्त ही यहां आते थे।
एक वक्त था जब कैंची धाम के स्थापना दिवस 15 जून को कैंची और उसके आसपास के क्षेत्र के लोगों को धाम जाकर मालपुए के प्रसाद का इंतजार रहता था लेकिन पिछले ढाई दशक में कैंची धाम के इस स्थापना समारोह ने इतना व्यापक रूप ले लिया कि देश ही नहीं विदेशों से भी यहां भक्त पहुंचने लगे। मंदिर समिति से जुड़े गिरीश तिवारी ने बताया कि इस बार 15 जून को दो से ढाई लाख श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है। मंदिर समिति की ओर से मेले को लेकर तैयारियां की जा रही हैं।
कैंची मेले का प्रभाव पहले भवाली, भीमताल, भूमियाधर, नैनीताल, गेठिया, श्यामखेत के साथ ही कुछ हद तक हल्द्वानी भी था। स्थानीय भक्तजनों के अलावा बाहर से गिने-चुने ही भक्त यहां आते थे। धीरे-धीरे इस मेले का स्वरूप बढ़ने लगा और यहां पहुंचने वाले भक्तों की संख्या भी बढ़ने लगी। पिछले वर्षों में कैंची धाम में भक्तों के आने का जो सिलसिला शुरू हुआ है वह लाखों तक जा पहुंचा है। पिछले 6 से 7 वर्षों की बात करें तो यहां 75000 से एक लाख तक भक्त पहुंचते थे लेकिन पिछले दो- तीन वर्षों में यह संख्या 2 लाख से अधिक हो गई है। उम्मीद है कि इस बार करीब ढाई लाख भक्त यहां पहुंचेंगे।
भक्तों की यहां संख्या बढ़ने का एक कारण तमाम बड़े सेलिब्रिटीज का यहां पहुंचना रहा है। मार्क जुकरबर्ग और स्टीव जॉब्स ने अपनी कैंची धाम यात्राओं के बाद जब यहां का जिक्र करना शुरू किया तो दुनियाभर में धाम को ख्याति मिलनी शुरू हो गई। तमाम भारतीय सितारे विराट कोहली, अनुष्का शर्मा, चंकी पांडे समेत तमाम लोग यहां पहुंचे तो इसकी ख्याति और बढ़ने लगी। लिहाजा, पिछले ढाई दशकों में इस मेले का स्वरूप पूरे तरीके से बदल गया।
कैंची क्षेत्र से जिला पंचायत सदस्य रहे 85 वर्षीय घनश्याम सिंह बिष्ट कहते हैं कि वक्त के साथ मेले के स्वरूप में बड़ा बदलाव आया है। पहले हम लोग टोलियों में पैदल ही जाया करते थे पर अब वह बात नहीं। 78 वर्षीय चंपा तिवारी बताती हैं कि महाराज ने एक बार कहा था की कैंची में भविष्य में हद से ज्यादा भीड़ उमड़ेगी। उन्होंने बताया कि वर्ष 1962 में महाराज उनके घर में रह चुके हैं। कैंची धाम के स्थापना दिवस पर यहां आने वाले भक्तों को पहले हनुमान जी का प्रिय लाल रंग का श्रंगार टीका लगाया जाता था। तब यहां भक्तों की संख्या सीमित हुआ करती थी लेकिन अब बड़ी संख्या में भक्तजनों के यहां पहुंचने के चलते हैं ऐसा करना संभव नहीं हो पा रहा है।