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छत्तीसगढ़ में होगा कीटनाशक अवशेषों की जांच

छत्तीसगढ़ में अब खाद्यान्न फसलों, सब्जियों, फलों, मिट्टी और पानी में कीटनाशक अवशेषों की वैज्ञानिक स्तर पर निगरानी और जांच की सुविधा और मजबूत हो गई है। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय की फाइटोसैनिटरी लैब को भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय से राष्ट्रीय कीटनाशक अवशेष निगरानी योजना के तहत अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान केंद्र के रूप में मान्यता मिल गई है। इस मान्यता के साथ यह लैब छत्तीसगढ़ की एकमात्र और देश की 36वीं ऐसी प्रयोगशाला बन गई है, जिसे राष्ट्रीय स्तर के इस निगरानी कार्यक्रम में शामिल किया गया है।

भारत सरकार की इस योजना का उद्देश्य खाद्य पदार्थों, मिट्टी और जल में कीटनाशक अवशेषों की नियमित निगरानी कर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना, जल गुणवत्ता का आकलन करना और बेहतर कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना है। नए दर्जे के बाद प्रदेश के किसानों की फसलों के साथ-साथ पर्यावरणीय नमूनों की भी वैज्ञानिक निगरानी हो सकेगी।

कैसे हुई लैब की स्थापना

फाइटोसैनिटरी लैब की स्थापना राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत केंद्र और राज्य सरकार की वित्तीय सहायता से की गई थी।

यहाँ खाद्य पदार्थों में कीटनाशक अवशेष, हेवी मेटल्स और सूक्ष्मजीवों की जांच की जाती है, जिससे कृषि उत्पादों के निर्यात में भी मदद मिलती है। नई मान्यता के साथ यह लैब अब छत्तीसगढ़ में कृषि और पर्यावरण की गुणवत्ता को और बेहतर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने जा रही है।