रक्षाबंधन के मौके पर जहां समस्त उत्तराखंड भाई-बहन के अटूट प्यार के बंधन में बंधा रहा, वहीं कुमाऊं का एक क्षेत्र विशेष बग्वाल के अछ्वुत खेल में खूनी रंग में रंगा रहा। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी इसके साक्षी रहे। चंपावत के देवीधुरा के खोलीखाण मैदान में लाखों लोगों ने अछ्वुत बग्वाल को देखा। ऐतिहासिक बग्वाल के इस बार एक लाख से अधिक लोग साक्षी बने।
मुख्यमंत्री ने पूजा अर्चना कर प्रदेश के लोगों की खुशहाली की कामना की। अपराह्न 2.06 मिनट पर शुरू हुई बग्वाल 2.17 मिनट तक चली। बग्वाली वीरों ने फल और फूलों से बग्वाल की शुरुआत की लेकिन देखते ही देखते दोनों ओर से पत्थर की बरसात होने लगी। इस दौरान लोग सांस रोक कर इस अछ्वुत खेल को देखते रहे। मुख्यमंत्री धामी ने इस दौरान जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि बग्वाल हमारी लोक संस्कृति, आस्था और परंपराओं का संगम है। रक्षाबंधन के मौके पर खेली जाने वाली बग्वाल के चलते चंपावत का नाम देश ही नहीं दुनिया में विख्यात है। इस दौरान मुख्यमंत्री ने रतिया नदी में बाढ़ सुरक्षा कार्य, वैकल्पिक सड़क का निर्माण, मानसखंड कोरिडोर के अंतर्गत मां बाराही धाम में शेष अवस्थापना कार्यों का निर्माण कार्य संबंधी घोषणा भी की।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारी सरकार देवभूमि की सांस्कृतिक विरासत के संरक्षण के साथ ही पौराणिक स्थलों का भी संवर्धन कर रही है। मानसखंड मंदिर माला मिशन के अंतर्गत कुमाऊं क्षेत्र के पौराणिक मंदिरों का सौंदर्यीकरण हो रहा है। देवीधुरा भी इस मिशन का महत्वपूर्ण भाग है। उन्होंने कहा चार धामों के साथ ही मानसखंड में मंदिरो को भी रोप-वे से जोड़ने का कार्य जारी है। मां पूर्णागिरि धाम को रोप-वे से जोड़ा जा रहा है। मानसखंड यात्रा के तहत विशेष ट्रेन भी चलवाई जा रही हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि चंपावत महाविद्यालय को सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कैंपस के रूप विकसित किया जा रहा है। चंपावत मुख्यालय में एआरटीओ का उप कार्यालय खोला गया है। चंपावत को आदर्श जिला बनाने के साथ ही उत्तराखंड को एक सर्वश्रेष्ठ राज्य बनाने पर राज्य सरकार निरंतर कार्य कर रही है। मुख्यमंत्री ने इस बीच लोक कलाकार गिरीश बरगली द्वारा तैयार ‘जय मां वाराही’ वीडियो को भी लांच किया। साथ ही उन्होंने विभिन्न विभागों के द्वारा लगाई गई विकास प्रदर्शनी का भी मुख्यमंत्री ने विभिन्न स्टालों का भी अवलोकन किया। बग्वाल को देखने के लिए न केवल कुमाऊं बल्कि अन्य प्रदेशों से भी हजारों श्रद्धालु देवीधुरा पहुंचे।
मंदिर परिसर के साथ ही आसपास के मकानों की छतें ठसाठस श्रद्धालुओं से भरी हुई थीं। चम्याल, गहड़वाल, लमगड़िया व बालिग खाम के रणबांकुरे दोपहर 12 बजे से खोलीखाण मैदान में जुटने लगे। सभी ने पूजा-अर्चना के साथ मंदिर की परिक्रमा की। इसके बाद शुरू हुआ अछ्वुत पाषाण युद्ध। इस दौरान कई दर्जन रणबांकुरे घायल हो गये। जिनका स्वास्थ्य विभाग की टीम ने मौके पर ही उपचार किया। बग्वाल बंद होने के बाद चारों खामों के योद्धा आपस में गले मिले और कुशलक्षेम पूछी। प्रचलित मान्यताओं के अनुसार यहां पौराणिक काल से बग्वाल खेली जाती है। रक्षाबंधन के दिन देवीधुरा के चार खाम व सात थोक के लोग बग्वाल खेलते हैं।
मान्यता है कि मां बाराही को मनाने के लिए बग्वाल खेली जाती है। कहा जाता है कि मां बाराही को मनाने के लिए यहां प्रतिवर्ष एक नर बलि देने की परंपरा थी। चार खाम के लोग हर वर्ष बारी-बारी से नर बलि देते थे। एक बार चमियाल खाम की वृद्धा की बारी थी। परिवार में वृ़द्धा व उसके पौत्र मौजूद थे। पौत्र मोह में वृद्धा ने मां बाराही ही गहन स्तुति की और तब मां बाराही ने वृद्धा को दर्शन दिए और बग्वाल खेलने को कहा। मान्यता है कि तभी से चार खामों के लोग पत्थर युद्ध बग्वाल खेलते हैं। माना जाता है कि जब तक एक आदमी के बराबर खून न गिर जाए तब तक बग्वाल खेली जाती है।