भारत का पहला स्वदेशी अत्याधुनिक बख्तरबंद हल्के टैंक जोरावर जमीन से लेकर आसमान तक दुश्मन से मोर्चा लेने के लिए पूरी तरह तैयार है। इसे हर तरह की परिस्थितियों और चुनौतियों का सामना करने के लिए डिजाइन किया गया है।
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के काम्बैट व्हीकल्स रिसर्च एंड डेवलपमेंट एस्टैब्लिशमेंट (सीवीआरडीई) और लार्सन एंड टुब्रो (एलएंडटी) ने मिलकर रिकार्ड 24 महीने में तैयार किया है। इस टैंक को एलएंडटी के आर्मर्ड सिस्टम्स कॉम्प्लेक्स, हजीरा में तैयार किया जा रहा है।
जनरल जोरावर सिंह कहलुरिया के नाम पर रखा गया टैंक का नाम
यह टैंक 2020 में भारत-चीन के गलवान घाटी विवाद के बाद शुरू किए गए प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इस टैंक को चीन के टाइप-15 लाइट टैंक का जवाब माना जा रहा है, जो वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर भारत की युद्ध क्षमताओं को कई गुना बढ़ा देगा।
25 टन वजनी यह टैंक हाई पावर टू वेट रेशियो के साथ आता है, जो ऊंचाई वाले इलाकों, रेगिस्तानों और कठिन भौगोलिक क्षेत्रों में तत्परता से मूवमेंट कर सकता है।
हल्का डिजाइन होने से इस टैंक को सी-17 ग्लोबमास्टर थ्री और चिनूक हेलीकाप्टर जैसे सैन्य विमानों से आसानी से युद्ध क्षेत्र में पहुंचाया जा सकता है।
इस टैंक का नाम जनरल जोरावर सिंह कहलुरिया के नाम पर रखा गया है, जिन्होंने जम्मू के डोगरा राजवंश के राजा गुलाब सिंह के अधीन काम किया था। उन्होंने लद्दाख को जीतकर डोगरा क्षेत्र का विस्तार करने में मदद की थी।
टैंक को लद्दाख के न्योमा में 4200 मीटर की ऊंचाई पर टेस्ट किया जा चुका है।
ये हैं जोरावर की खूबियां
टैंक में 105 मिमी की मुख्य तोप, 7.62 मिमी की को-एक्सियल तोप लगी है।
एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल (एटीजीएम) और 12.7 मिमी रिमोट-कंट्रोल्ड वेपन स्टेशन दिए गए हैं।
टैंक के साथ निगरानी ड्रोन भी जोड़ा जा सकता है, जो युद्धक्षेत्र में दुश्मन की रियल टाइम पोजीशन बताएगा।
इस टैंक को पानी और दलदली इलाकों से भी ले जाया जा सकता है। – टैंक में 1000 हार्स पावर के बेजोड़ इंजन लगाए गए हैं।
जमीन पर ये टैंक अधिकतम 60 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से दौड़ सकता है।
भारतीय सेना की 350 जोरावर टैंकों को तैनात करने की योजना है।
जैसलमेर के रेगिस्तान से लेकर लद्दाख में खड़ी चढ़ाई तक इस टैंक की टेस्टिंग हो चुकी है।
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