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गोरखपुर: हाईकोर्ट के आदेश पर जमीन तलाश रहा प्रशासनिक अमला

हाईकोर्ट के आदेश पर ज्वाइंट मजिस्ट्रेट की टीम महावीर झारखंडी, टुकड़ा नंबर तीन, जंगल रामगढ़ उर्फ रजही और जंगल तिनकोनिया नंबर तीन की बेशकीमती जमीनों के खतौनी का पुनर्निर्माण करेगी। तीन माह के अंदर टीम को रिपोर्ट तैयार पेश करना था। मजिस्ट्रेट की टीम ने जांच आख्या के लिए निर्देशित किया था, लेकिन टीम अभी तक काम पूरा नहीं कर सकी। इससे प्रशासनिक जमीनें भी अभी तक फंसी हैं।

शहर में तीन स्थानों पर बेशकीमती जमीनों की तलाश प्रशासन ने शुरू कर दी है। मामला 200 एकड़ जमीन का है। हाईकोर्ट के निर्देश पर जांच कर तीन महीने में पूरी कर आख्या के साथ रिपोर्ट देनी थी, लेकिन अभी तक मामला किसी नतीजे पर नहीं पहुंचा है।

उप जिलाधिकारी ने उच्च न्यायालय के निर्देश पर 17 जनवरी 2024 को एक टीम गठित की थी। इसमें नायब तहसीलदार के साथ आठ लेखपालों की तैनात किया गया था। इन बेशकीमती जमीनों की तलाश के लिए एक महीने का समय देते हुए टीम का गठन किया गया, जो बीत चुका है।

दरअसल, बाबू गिरधरदास के पौत्र विपुल मोहन दास की पॉवर ऑफ एटॉर्नी वाले अनिल गर्ग ने उच्च न्यायालय में 2022 में एक रिट याचिका दाखिल की थी। तर्क दिया था कि 2005 में उत्तर प्रदेश राजस्व परिषद के निर्देश के बाद भी शहर के रईस बाबू पुरूषोत्तम दास और बाबू गिरधरदास की महादेव झारखंडी में जमीनों के अलावा जंगल रामगढ़ उर्फ रजही और जंगल तिनकोनिया नंबर तीन की बेशकीमती जमीनों के खतौनी का पुनर्निर्माण नहीं किया गया।

2 नवंबर 2023 को उच्च न्यायालय ने 2005 के राजस्व परिषद के निर्देश को पारित नहीं किए जाने का हवाला देते हुए जिला मजिस्ट्रेट को निर्देशित किया कि खतौनी का पुर्ननिर्माण कर इसे प्रेषित करें।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि पक्की नकल के साथ याचिकाकर्ता इसे ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश करेंगे। 17 नवंबर 2023 को अनिल गर्ग की तरफ से पक्की नकल के साथ ज्वाइंट मजिस्ट्रेट के समझ उच्च न्यायालय के आदेश के अनुपालन के लिए पेश किया गया।

30 नवंबर 2023 को एक बार फिर से उच्च न्यायालय के आदेश का रिमाइंडर अनिल गर्ग की तरफ से किया गया, जिसपर वर्तमान ज्वाइंट मजिस्ट्रेट ने आठ अधिकारियों की टीम से तीनों ग्राम खतौनी के पुर्ननिर्माण किए जाने का निर्देश जारी कर दिया। टीम के समय दिया कि जांच पूरी कर तय समय में आख्या प्रस्तुत करें।

शहर के रईसों की 200 एकड़ भूमि कब्जे में
शहर के बाबू पुरूषोत्तम दास और बाबू गिरधर दास के पास महादेव झारखंडी के जिल्द बंदोबस्त (जमींदारी) की जमीन थी। इन जमीनों को दोनों लोगों ने तत्कालीन पिपराइच चीनी मिल को पट्टे पर दी थी। इस जमीन पर चीनी मिल के लिए गन्ना उगाया जाता था। सन् 1948 में पुरुषोत्तम दास रईस ने पट्टा निरस्त कर अपनी जमीन वापस ले ली थी। 1957 में चीनी शुगर मिल को नीलाम कर दिया था, जिसे एक शुगर मिल कंपनी ने खरीद लिया था।

इधर, 1971 में बाबू गिरधर दास रईस का चीनी मिल के नाम दिया पट्टा खत्म हो गया था। पॉवर ऑफ एटॉर्नी वाले अनिल गर्ग की मानें तो इसी बीच जिल्द बंदोबस्त में खेल कर खतौनी का हाल नंबर( राजस्व के अभिलेख का तत्कालीन रिकार्ड) बदलते हुए दूसरों के नाम पर चढ़ा दिया गया। इसके पूरे राजस्व रिकार्ड की असली नकल अनिल गर्ग की तरफ से उच्च न्यायालय में जमा कराया गया।

नायब तहसीलदार खोराबार अरविंद पांडेय ने बताया कि खतौनी पुनर्निर्माण की जांच मिली है। अभी कुछ दिन पहले सभी गठित टीम के सदस्यों के साथ बैठक भी हुई थी। ये मामला थोड़ा पेचीदा है तो इतनी जल्दी इसपर कुछ कह पाना ठीक नहीं है। आवेदनकर्ता से और भी उनके दावे के प्रपत्रों की मांग की जाएगी। अभी कुछ भी कह पाना जल्दी होगा। जांच शुरू हो गई है।