आखिरकार बरेली सीट पर बसपा ने भी अपने पत्ते खोल दिए। बसपा ने जातीय समीकरण को देखते हुए छोटेलाल गंगवार को टिकट दिया है। छोटेलाल बीते दिनों कांग्रेस छोड़कर बसपा में शामिल हुए थे, तभी से उनके नाम की चर्चाएं तेज हो गई थीं।
लोकसभा चुनाव में बरेली सीट के सियासी चक्रव्यूह को भेदने की आस में बसपा ने भी गंगवार बिरादरी के छोटेलाल गंगवार पर दांव चला है। यह दूसरा मौका है जब बसपा की ओर से गंगवार चेहरे को बरेली के मैदान से उतारा गया है। इससे पहले वर्ष 1998 में बसपा ने एब्रान कुमार गंगवार को मैदान में उतारा था। वह दौर बसपा के प्रादुर्भव का था और पार्टी के प्रत्याशी जमानत भी नहीं बचा पाए थे। मास्टर छोटेलाल इससे पहले सपा के टिकट पर वर्ष 1999 में भाग्य आजमा चुके हैं। तब उन्हें भाजपा के संतोष गंगवार से शिकस्त झेलनी पड़ी थी।
बरेली मंडल में खाता खोलने की कवायद में जुटी बसपा ने इस लोकसभा सीट से पिछड़ी जाति के चेहरे को मौका दिया है। यह दूसरा मौका है जब बसपा ने अपने समीकरण में बदलाव करते हुए गंगवार को टिकट दिया है। लंबे समय से भाजपा के संतोष गंगवार के कब्जे में रही बरेली लोकसभा सीट पर बसपा ने ज्यादातर मुस्लिम चेहरे पर ही दांव खेला है। हालांकि वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में ब्राह्मण चेहरे उमेश गौतम पर भी बसपा ने भाग्य आजमाया था। वह भी महज एक लाख मत हासिल कर तीसरे नंबर पर रह गए थे।
पिछले पांच चुनावों में चार मुस्लिम चेहरों पर जताया था भरोसा
पिछले पांच चुनाव में बसपा ने अकबर अहमद डंपी सहित चार मुस्लिम चेहरों पर भरोसा जताया था। वर्ष 2009 में कांग्रेस के प्रवीण सिंह ऐरन ने भाजपा से यह सीट छीनी थी। उस वक्त बसपा प्रत्याशी इस्लाम शाबिर ने सपा प्रत्याशी भगवत सरन गंगवार को पीछे धकेलते हुए तीसरा पायदान हासिल किया था। इससे पहले वर्ष 2004 में अकबर अहमद डंपी ने इस लोकसभा सीट पर बसपा की दमदार मौजूदगी दर्ज कराई थी।
हालांकि, वह करीब 60 हजार मतों से चुनाव हार गए थे, मगर मजबूती से चुनाव लड़कर दूसरे नंबर पर पहुंचे थे। भाजपा ने आठ बार के सांसद रहे संतोष गंगवार का टिकट काटकर पूर्व विधायक छत्रपाल गंगवार को मैदान में उतारा है। ऐसे नाजुक माहौल में बसपा ने भी छोटेलाल गंगवार को रण में उतारकर मजबूत चुनौती पेश की है।