हिंदू, मुस्लिम, सिख और इसाई के अलावा काशी जैन धर्म के अनुयायियों के लिए बेहद पावन है। जैन धर्म के चार तीर्थंकरों की जन्मस्थली जैनियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।
प्रसिद्ध अमेरिकी लेखक मार्क ट्वेन लिखते हैं कि बनारस इतिहास से भी पुरातन है, परंपराओं से पुराना है, किंवदंतियों से भी प्राचीन है और जब इन सबको एकत्र कर दें, तो उस संग्रह से भी दोगुना प्राचीन है। काशी को सर्वविद्या ही नहीं सर्वधर्म की राजधानी भी कहा जाता है।
जैन ग्रंथों के अनुसार, काशी में तीर्थंकरों के जन्म के पहले लगातार 15 महीने तक रत्नों की बरसात हुई। जैन धर्म के सातवें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ, आठवें तीर्थंकर चंद्रप्रभु, 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ और 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ काशी की पावन धरा पर अवतरित हुए।
जैनियों के चार तीर्थंकरों ने लिया था पावन काशी में जन्म
आनंदकानन के वन में जैन तीर्थंकरों ने ज्ञान के लिए साधना की और अपने ज्ञान के प्रकाश से विश्व को प्रकाशित किया। 23वें तीर्थंकर श्री पार्श्वनाथ का जन्मस्थान जैनियों के लिए सबसे खास तीर्थ है। भेलूपुर में 2880 साल पहले काशी के महाराज अश्वसेन के महल में उन्होंने जन्म लिया।
तीर्थंकर पार्श्वनाथ की भारतवर्ष में सर्वाधिक प्रतिमाएं और मंदिर हैं। उनके जन्म स्थान भेलूपुर में बहुत ही भव्य और विशाल दिगंबर और श्वेतांबर जैन मंदिर बना हुआ है।
जैन समाज के सुरेंद्र जैन ने बताया कि 24 तीर्थंकरों में भगवान पार्श्वनाथ लोकजीवन में सर्वाधिक प्रतिष्ठित हैं। हर राज्य में भगवान पार्श्वनाथ विभिन्न विशेषणों के साथ पूजे जाते हैं। सातवें तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथ भगवान का जन्मस्थान भदैनी में गंगा के तट पर है।
घाट किनारे ही उनके दो मंदिर हैं। एक प्रभु घाट और दूसरा जैन घाट पर। आठवें तीर्थंकर चंद्र प्रभु का जन्मस्थान चौबेपुर के पास गंगा के किनारे चंद्रावती गांव है। 11वें तीर्थंकर श्रेयांसनाथ का जन्म इक्ष्वाकु वंश में सारनाथ के पास सिंहपुरी में राजा विष्णु के यहां हुआ था। सारनाथ में उनका मंदिर भी है।