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उत्तराखंड: प्रदेश में खोजी गई जंगली मशरूम की पांच नई प्रजातियां

जंगली मशरूम की पांच नई प्रजातियां खोजी गई हैं। पारिस्थितिकी तंत्र के साथ ही औषधि व दवा के क्षेत्र में इन्हें उपयोगी बताया जा रहा है।

हिमालयी राज्य उत्तराखंड में जंगली मशरूम की पांच नई प्रजातियां खोजी गई हैं। इस खोज को भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण कोलकाता के सेंट्रल नेशनल हर्बेरियम, हावड़ा की वैज्ञानिक टीम ने अंजाम दिया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक उत्तराखंड के विभिन्न जनपदों से जंगली मशरूम की यह पांच नई प्रजातियां खोजी हैं।

यह पांचों प्रजातियां खाने योग्य तो नहीं है, लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र के साथ ही औषधि व दवा के क्षेत्र में इन्हें उपयोगी बताया जा रहा है। इस खोज से इस क्षेत्र की समृद्ध जैव विविधता का भी पता चलता है। वैज्ञानिकों की इस खोज से संबंधित शोध पत्र अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रमुख जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुआ है। भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण की सेंट्रल नेशनल हर्बेरियम के प्रख्यात कवक विज्ञानी (माइकोलॉजिस्ट) और वैज्ञानिक-एफ डॉ.कणाद दास के नेतृत्व में सात सदस्यीय टीम ने यह खोज की है।

ये हैं खोजी गईं प्रजातियां

लेसीनेलम बोथी- जंगली मशरूम की ये प्रजाति रुद्रप्रयाग जनपद के बनियाकुंड में 2,622 मीटर की ऊंचाई खोजी गई है।

फाइलोपोरस हिमालयेनस- ये प्रजाति बागेश्वर जनपद में 2,870 मीटर की ऊंचाई पर मिली है।

फाइलोपोरस स्मिथाई -यह प्रजाति भी रुद्रप्रयाग में बेनियाकुंड से 2562 मीटर की ऊंचाई पर पाई गई है।

पोर्फिरेलस उत्तराखंडाई -चमोली जनपद से 2283 मीटर की ऊंचाई पर यह प्रजाति खोजी गई है।

रेटिबोलेटस स्यूडोएटर -यह प्रजाति बागेश्वर जनपद में 2545 मीटर की ऊंचाई से खोजी गई।

मशरूम या कवक को नजरंदाज किया जाता है। लेकिन, संक्रमण से बचाव के लिए पेनिसिलियम और टीबी की रोकथाम के लिए स्टेपटोमाइसिन जैसी दवाइयां मशरूम से ही बनाई गई हैं। बृहद कवकों की जड़ और पेड़ों की जड़ आपस में जुड़ी रहती है। यह पेड़-पौधों के विकास में सहायक हैं। 40 से अधिक मशरूम का अध्ययन कर ये नई प्रजाति खोजी गई हैं। -डॉ.कणाद दास, वैज्ञानिक एफ, भारतीय वनस्पति सर्वेक्षण, हावड़ा।

इससे पहले खोजी थी लाइकेन
यह पहली बार नहीं है कि जब भारतीय वैज्ञानिकों ने हिमालय की गोद में बसे उत्तराखंड राज्य से वनस्पति के क्षेत्र में नई खोज की है। इससे पूर्व राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान (एनबीआरआई) के वैज्ञानिकों ने उत्तरकाशी जनपद के गोविंद वन्यजीव पशु विहार एवं नेशनल पार्क क्षेत्र से लाइकेन की एक नई प्रजाति खोजी थी। जिसका नाम भी उत्तरकाशी पर स्क्वामुला उत्तरकाशियाना रखा गया था।