पहला मामला दहीकोंगा वन परिक्षेत्र के कमेला ग्राम पंचायत का है। यहां ऑरेंज एरिया 498 कक्ष क्रमांक में भारी तादाद में हरे-भरे पेड़ों की कटाई की जा रही थी। जब ग्रामीणों और वन प्रबंधन समिति के सदस्यों ने आपत्ति जताई, तो पता चला कि ‘कूप कटाई’ के नाम पर जीते-जागते पेड़ों को धराशायी किया गया है। ग्रामीणों ने सवाल उठाया कि बिना समिति की जानकारी और प्रस्ताव पारित किए कैसे कटाई की अनुमति दी गई। इस पर बीटगार्ड और रेंजर दोनों ने कोई जवाब नहीं दिया। रेंजर विजनलाल शर्मा ने तो साफ कहा कि उन्हें मामले की जानकारी ही नहीं है।
दूसरा मामला नारंगी वन परिक्षेत्र का है, जहां भीरागांव और चारगांव के जंगलों में सैकड़ों अकेसिया पेड़ काट दिए गए। चारगांव वन प्रबंधन समिति के अध्यक्ष ने बताया कि फर्जी प्रस्ताव बनाकर पेड़ों को काटकर सरकारी ट्रकों में भरकर कोंडागांव के रामलाल देवांगन सॉ मिल भेजा गया। मीडिया की दखल के बाद ही विभाग हरकत में आया और मिल से लकड़ियों को डिपो वापस भेजा गया। सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार नारंगी वन परिक्षेत्र अधिकारी ने लकड़ी तस्कर से पैसे लेकर पेड़ों को काटने की खुली छूट दे दी, जिसके बाद तस्कर ने हरे भरे पेड़ों को काटना शुरू किया और सरकारी ट्रक से ही लकड़ी को सीधे मिल पहुंचाने का कार्य किया ।
दोनों मामलों में हैरानी की बात यह है कि संबंधित रेंज अधिकारियों को “कोई जानकारी” नहीं है। इससे साफ है कि वन विभाग में मिलीभगत और लापरवाही का आलम चरम पर है। अब देखना होगा कि डीएफओ चूड़ामणी सिंह इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष जांच कर जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई करते हैं या मामला हमेशा की तरह फाइलों में दफन कर दिया जाएगा।
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