नई दिल्ली 22 जुलाई।लोकसभा में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 में वित्त वर्ष 2024-25 के लिए सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर साढ़े छह से सात प्रतिशत के बीच रहने का अनुमान लगाया गया है।
केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने आज बजट सत्र के पहले दिन लोकसभा में आर्थिक सर्वेक्षण पेश किया। सर्वेक्षण के अनुसार वित्त वर्ष 2023-25 में अनिश्चित वैश्विक आर्थिक निष्पादन के बावजूद घरेलू वृद्धि कारकों ने आर्थिक विकास में मदद की है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि उत्पाद व्यापार और सेवाओं के निर्यात में बढ़ोतरी की संभावना है। इसमें कहा गया है कि भारत मौसम विज्ञान विभाग द्वारा सामान्य वर्षा के पूर्वानुमान और दक्षिण पश्चिम मॉनसून के संतोषजनक प्रसार से कृषि क्षेत्र के निष्पादन में सुधार की उम्मीद है। इससे ग्रामीण मांग बहाल करने में मदद मिलेगी। सर्वेक्षण के अनुसार वस्तु और सेवा कर-जीएसटी और ऋण शोधन और दिवाला कानून-आईबीसी जैसे ढांचागत सुधार भी परिपक्व हो गये हैं और उनके वांछित परिणाम मिलने लगे हैं।
महंगाई के बारे में रिजर्व बैंक वित्त वर्ष 2025 में मुद्रास्फीति की मुख्य दर साढ़े चार प्रतिशत और वित्त वर्ष 2026 में चार दशमलव एक प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारत के लिए 2024 में मुद्रास्फीति चार दशमलव छह प्रतिशत और 2025 में चार दशमलव दो प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2024 में सकल घरेलू उत्पाद की वास्तविक दर वर्ष 2020 की तुलना में बीस प्रतिशत अधिक रही है। ये ऐसी उपलब्धि है, जो गिनी-चुनी अर्थव्यवस्थाएं हासिल कर पाई हैं। इस वर्ष भी वृद्धि दर सुदृढ रहने की संभावना है।
सर्वेक्षण के अनुसार बेरोजगारी और बहुआयामी गरीबी में कमी और श्रम बल भागीदारी में बढ़ोतरी के साथ विकास समावेशी रहा है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि देश की वास्तविक जीडीपी दर में वित्त वर्ष 2024 में आठ दशमलव दो प्रतिशत वृद्धि हुई है और लगातार तीसरे वर्ष ये सात प्रतिशत से अधिक दर्ज हुई है। इसमें स्थिर खपत, मांग और निवेश में निरन्तर सुधार का योगदान है। 2011-12 के स्थिर मूल्यों पर निबल करों में वित्त वर्ष 2024 के दौरान 19 दशमलव एक फीसदी इजाफा हुआ है।
सर्वेक्षण में 2024 के लिए वैश्विक व्यापार परिदृश्य सकारात्मक बताया गया है, जिसमें वस्तु व्यापार बढ़ने की संभावना है। इसमें कहा गया है कि वैश्विक वित्तीय बाजार नई ऊंचाइयां छू रहे हैं और निवेशक वैश्विक आर्थिक विस्तार में योगदान कर रहे हैं। परन्तु, वित्तीय बाजार में उछाल में करेक्शन के कारण घरेलू वित्त और कॉरपोरेट मूल्यांकन पर असर पड़ने से वृद्धि की संभावनाओं पर कुछ नकारात्मक प्रभाव हो सकता है।