
(रघु ठाकुर)
अभी कुछ समय पूर्व संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्णयानुसार समूची दुनिया ने विश्व महिला दिवस मनाया। भारत में भी यह दिवस बड़े पैमाने पर मनाया गया। दुनिया और देश में किस प्रकार महिलाएं आगे जा रही है इसका भी चित्रण किया गया। इसमें कोई दो मत नहीं है कि अवसर मिलने से महिलाओं की प्रतिभा में निखार आता है। उनकी छिपी प्रतिभाएं सामने आई हैं। हाल ही में एक अंतरिक्ष यात्री जिन्होंने 8 माह से अधिक अंतरिक्ष में गुजारे उन सुनीता विलियम्स के साहस और पराक्रम का क्या मुकाबला हो सकता है? यद्यपि पूंजीपतियों में महिलाओं की संख्या अभी कम है।
पहलगाम के बाद ऑपरेशन सिंदूर में श्रीमती सोफिया कुरैशी और व्योमिका सिंह ने भी महिलाओं की शक्ति और योग्यता का एहसास कराया है। 1960 के दशक में डॉक्टर लोहिया ने लिखा था कि हमारे देश में जाति और योनि के दो कटघरे में देश की बड़ी संख्या को कैद कर दिया गया और निर्जीव बना दिया गया है। जिस जमाने में किसी ने नारी सशक्तिकरण जैसा शब्द सुनना तो दूर सोचा भी नहीं होगा, उस जमाने में लोहिया न केवल नारियों को जाति व परंपरा के बंधन से मुक्त कर पुरुष के समकक्ष खड़े करने के लिए संघर्षरत थे। उन्होंने द्रौपदी बनाम सावित्री की बहस को प्रतीकात्मक स्वरूप देकर द्रौपदी के संघर्षशील पक्ष को उभारा। नारी की क्षमता, योग्यता संघर्ष की प्रतिभा को एक नए ढंग से प्रस्तुत किया। लोहिया के जीवन काल में इन सवालों पर हलचल तो शुरू हुई परंतु वह शुरुआत भर थी। लोहिया कहते भी थे कि लोग मेरी बात सुनेंगे शायद मेरे मरने के बाद, पर सुनेंगे जरूर। आज जब सुनीता विलियम्स से लेकर सोफिया कुरैशी विभिन्न क्षेत्रों में नारियों के उपलब्धियों के किस्से छपते हैं तब लगता है लोहिया की बात सुनी जा रही है।
जहां एक तरफ नारियां आगे बढ़ रही है दूसरी तरफ महिलाओं के साथ अन्याय अत्याचार भेदभाव की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। यदि आप किसी भी दिन के अखबार को देखें या टीवी चैनल के समाचारों को देखें तो आपको प्रतिदिन ऐसी घटनाएं सुर्खियों में मिलती हैं जहां नारी शाब्दिक और शारीरिक अन्याय का शिकार होती है। ऐसी घटनाएं पहले भी होती रही हैं। आज आजादी के सात दशक के बाद भी घट रही हैं। कई बार ऐसा लगता है जैसे प्रगतिशील मानस और पीछे देखू मानस में एक सतत संघर्ष चल रहा है। उत्तर प्रदेश के एक विधायक ने एक लड़की को न केवल हवस का शिकार बनाया बल्कि बाद में उसकी हत्या भी कर दी, ताकि कोई प्रमाण न रहे। तंदूर कांड से लेकर हत्याकांड तक ऐसी घटनाएं निरंतर सामने आ रही हैं।
पिछले एक डेढ़ दशक से केंद्र और कई सूबे में एक दल की सरकार के बाद ऐसी घटनाओं को पंख लग गए हैं। कुछ दिन पहले एक भाजपा नेता ने टीवी चैनल पर किसी को मां की गालियां दीं। आज भी जो गालियां है वह अमूमन नारियों को लेकर हैं। कहीं ना कहीं मस्तिष्क में नारी को कमजोर और छोटा समझने का भाव है। जिन पार्टियों के नेता नारियों के प्रति ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं उनकी पार्टियां उनके बचाव में खड़ी हो जाती हैं। मध्यप्रदेश के एक पूर्व मुख्यमंत्री ने एक बार एक महिला का उल्लेख करते हुए टंचमाल कहा था। सरकारी पार्टी की महिलाएं भी निजी बातचीत में अपने आप को असुरक्षित मानती हैं और असम्मान का शिकार होती हैं। हाल में मध्य प्रदेश के एक मंत्री ने अपने भाषण में कहा कि लड़कियां कम वस्त्र पहनती हैं जो उन्हें पसंद नहीं। ऐसा एक जुमला वे पहले भी कह चुके हैं। बच्चियां क्या पहनें, उनकी क्या आवश्यकता है, यह निर्णय भी पुरुष समाज लेना चाहता है।
मुझे याद है जब श्रीमती सानिया मिर्जा का नाम टेनिस खिलाड़ी के रूप में उभरा था तो कई मौलवियों ने उनके खिलाफ टिप्पणियां की थीं। एक प्रकार का घोषित अघोषित फतवा जारी किया था। नारियों के प्रति ऐसी घटनाएं आमतौर पर सभी धर्म में हो रही हैं। जहां भी नारियां प्रतिकार में खड़ी होती हैं, जुल्म का शिकार होती हैं। ईरान में हिजाब के खिलाफ लड़ने वाली हजारों बच्चियों को जेल में रहना पड़ा। पाकिस्तान अफगानिस्तान में पढ़ाई और पढ़ाई की वकालत करने वाली बच्चियों को गोली तक खानी पड़ी। यूरोप के देशों में भी महिलाएं कुछ मुक्त तो हुई हैं परंतु बराबरी पर आज भी नहीं हैं। अगर नर-नारी की समता सही मायने में कहीं देखने मिलती है तो वह आदिवासी समाज में। समाज के मानस की जकड़न कितनी गहरी है उसे हाल में अखबार में आई एक घटना से समझा जा सकता है। कटनी में पुलिस विभाग में डीएसपी के पद पर कार्यरत श्रीमती ख्याति मिश्रा ने अपने अधिकारियों से कहा है कि उन्हें अपने पति से खतरा है। कुछ दिनों पूर्व पुलिस ने उनके घर में घुसकर उनके माता-पिता आदि से मारपीट की। इसके पीछे उनके पति को बताया जा रहा है जो तहसीलदार हैं। कटनी की घटना के बाद श्रीमती मिश्रा का तबादला मैहर किया गया। उन्होंने अधिकारियों को पत्र लिखकर मैहर में अपनी जान को खतरा बताया है क्योंकि उनके पति वहां रह चुके हैं। श्रीमति ख्याति मिश्रा के अनुसार उनके पति यह बर्दाश्त नहीं कर कर पा रहे कि पत्नी बड़े पद पर पहुंच गई और वे खुद अभी तहसीलदार ही हैं। अपने मन में यह स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि कोई पद पुरुष से बड़ा होता है। उनके बयान के बाद पति ने पत्नी के पुलिस अधीक्षक से संबंध होने का आरोप लगाया। इस आरोप में कितनी सच्चाई है यह कहना कठिन है। सच्चाई भी है तो इस आधार पर न्यायिक अलगाव की मांग कर सकते थे। पत्नी से अलग रह सकते थे, परंतु उन्होंने यह नहीं किया। आज भी ज्यादातर यही भाव काम कर रहा है कि महिलाओं को पुरुष से नीचे रहना चाहिए। सरकार इसे किस रूप में ले रही है यह अभी स्पष्ट नहीं है। लड़कियों के छोटे कपड़ों के प्रति चिंतित मंत्री की भावनाओं को भी प्रदेश सरकार किस भाव से ले रही है कहना कठिन है। कुछ लोगों का यह भी मानना है की मंत्री का बयान उनके संगठन के इशारे पर दिया गया है जो भारत को सनातन में ले जाना चाहता है।
परंपराओं में महिलाओं का पतिव होना, उनका दासी होना, पर्दे में रहना सभी घोषित सामाजिक परंपराएं हैं। कुछ साल पहले भी मंत्री ने एक प्रसंग में कुछ महिलाओं की तुलना शूर्पणखा से की थी। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री श्री रावत ने भी महिलाओं के जींस पहनने की निंदा की थी। उसे संस्कृति विरोधी बताया था कई बड़े तथाकथित जनप्रतिनिधि या सत्ताधारी नेता कपड़ों को ही बलात्कार का कारण बताते हैं। ऐसी और भी बहुत सी घटनाएं हैं जिसमें कोलकाता की डॉक्टर लड़की के बलात्कार से लेकर निर्भया तक आए दिन घट रहे अपराधों को उद्धृत किया जा सकता है। यह बड़ा विचित्र और दुखद है कि हाल की घटनाओं के बाद देश के महिला संगठनों द्वारा इस प्रकार की घटनाओं को लेकर कोई विशेष भूमिका दिखाई नहीं दी।
मेरा यह कहना नहीं है कि महिलाओं के सम्मान की रक्षा करना केवल महिला का दायित्व है। समूचा पुरुष समाज राजनीति वोट के लिए असहाय है। मध्य प्रदेश के वन मंत्री के द्वारा सुश्री सोफिया कुरैशी के बारे में दिए गए बयान के बाद भी न मंत्री जी का इस्तीफा हुआ, न उन्हें हटाया गया, न उन पर मुकदमा दर्ज हुआ। ऐसा लगता है कि संघ व संगठन मामले के शांत होने की प्रतीक्षा कर रहा है। प्रधानमंत्री जी भी 3 जून 2025 को भोपाल आए थे जहां मीडिया के अनुसार उन्होंने कई लाख महिलाओं को संबोधित किया था। इस सम्मेलन में वे सरकार की उपलब्धियां को गिनाते रहे। पर एक शब्द भी उन्होंने अपने मंत्रियों के खिलाफ बोलने का साहस नहीं किया। यानी वे भी यह जानते मानते हैं कि देश में आम मानस अभी भी पुरुष सत्तात्मक का है। इसलिए वे अपने वोट के खेल में कोई जोखिम नहीं लेना चाहते। प्रधानमंत्री की इस स्थिति के वास्तविक कारण क्या हैं? मेरा मानना है कि कारण जो भी हों उन्हें उन कारणों से मुक्ति पाना चाहिए। देश को स्पष्ट तौर पर बताना चाहिए। देश जानना चाहता है कि सोफिया कुरैशी से लेकर कम वस्त्रों तक जो मानसिकता समाज व सत्तापक्ष में उभरी है वे उसे मिटाना चाहते हैं या बनाए रखना चाहते हैं। क्या उनकी पार्टी सनातन व्यवस्था के नाम पर उस दौर में जाना चाहती है जहां नारी को दोयम दर्जा का माना जाएगा? जहां महिलाएं पुरुषों की दासी बन कर रहें? लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती, सावित्री, पार्वती ऐसी महान नारियों की पूजा करना यह समता नहीं है जो हाथ पाषाण प्रतिमा को पूजते हैं वही जिंदा तन को पीटते हैं। यह सरकार व समाज सभी की जिम्मेदारी है कि नर नारी को समान समझा जाए। उन्हें पूरे अवसर मिलें, आजादी मिले उनकी आजादी का सम्मान हो।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर जाने माने समाजवादी चिन्तक और स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं।श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के भी संस्थापक अध्यक्ष हैं।