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जबलपुर को बचाना भाजपा के लिए बड़ी चुनौती- अरुण पटेल

अरूण पटेल

जबलपुर लोकसभा सीट भारतीय जनता पार्टी के लिए जीतना नाक का सवाल बना हुआ है क्योंकि उसके प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह को इस बार कांग्रेस के विवेक तन्खा से चुनौती मिल रही है। तन्खा पिछला लोकसभा चुनाव राकेश सिंह से 2 लाख 8 हजार 639 मतों के अन्तर से हारे थे, लेकिन उस समय जबर्दस्त मोदी लहर थी। इस बीच विवेक तन्खा की राजनीतिक पकड़ व रसूख कांग्रेस पार्टी में काफी बढ़ा है और जबलपुर में कमलनाथ मंत्रिमंडल की बैठक आयोजित कराकर एक बड़ी सीमा तक अपने खाते में यह उपलब्धि जमा करा पाये हैं कि लम्बे समय से राजनीतिक फलक पर जो संस्कारधानी जबलपुर को उपेक्षा का शिकार होना पड़ा है उसे उनके प्रयासों ने उबार दिया है। कमलनाथ से नजदीकी के चलते वे जबलपुर को प्रादेशिक फलक पर वह महत्व दिलायेंगे जिससे वह अभी तक एक प्रकार से अछूता रहा है। तन्खा अपनी बात कितना मतदाताओं के गले उतार पाये हैं उस पर ही यह निर्भर करेगा कि वे यह सीट कांग्रेस को दिला पायेंगे या नहींं।

कांग्रेस उम्मीदवार और राज्यसभा सदस्य तन्खा मतदाताओं के गले यह बात उतारने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं कि यह जबलपुर की जनता के लिए निर्णायक वक्त है। जनता के सामने दो विकास मॉडल हैं एक राकेश सिंह का विकास मॉडल तो दूसरा तन्खा का विकास मॉडल। तन्खा का कहना है कि यह चुनाव जबलपुर के भविष्य का चुनाव हैं क्योंकि जबलपुर का विकास करना ही उनका वास्तविक लक्ष्य है। यहां चुनावी समर में 22 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं जबकि असली चुनावी दंगल राकेश सिंह और विवेक तन्खा के बीच हो रहा है। बहुजन समाज पार्टी के एडवोकेट राम राजाराम और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के महू सिंह परस्ते चुनावी लड़ाई को चारकोणीय बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बसपा को इस क्षेत्र में अधिकतम 7.12 प्रतिशत मत मिल चुके हैं जबकि शनै:-शनै: ये घटकर 2 से 3 प्रतिशत के बीच ही रह गये हैं। जबलपुर लोकसभा क्षेत्र में अपने लिए जमीन तलाशते बसपा व गोंगपा कितने मत ले पाते हैं इससे ही उनकी इस अंचल में राजनीतिक पैठ का पता चलेगा। रिपलब्लिकन पार्टी आफ इंडिया (ए), आरक्षण विरोधी पार्टी, प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया), भारतीय शक्ति चेतना पार्टी, स्मार्ट इंडियन पार्टी, भारतीय जनसंपर्क पार्टी के प्रत्याशियों सहित 12 निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में हैं। ऐसे दलों के उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में हैं जिनका संभवत: मतदाताओं ने भी नाम शायद ही कभी सुना हो।

भारतीय जनता युवा मोर्चे के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष रहे धीरज पटेरिया ने कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण कर ली है, इससे भाजपा के राकेश सिंह को झटका लगने की संभावना है क्योंकि पटेरिया का इस क्षेत्र में अपने स्वयं का कितना असर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बतौर निर्दलीय उन्होंने जबलपुर पूर्व में 2018 के विधानसभा चुनाव में लगभग 30 हजार मत प्राप्त किए थे। इस कारण इस क्षेत्र में शिवराज सिंह सरकार के मंत्री शरद जैन 578 मतों के अन्तर से विधानसभा चुनाव कांग्रेस के विनय सक्सेना से हार गये थे। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस विधायकों की संख्या केवल दो थी जो कि अब बढ़कर चार हो गयी है और इस समय आधे कांग्रेस और आधे भाजपा के विधायक इस लोकसभा क्षेत्र से विधानसभा में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 2014 में 2 लाख से अधिक मतों से जीते राकेश सिंह की बढ़त को यदि हाल में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों के परिप्रेक्ष्य देखा जाए तो मात्र 31 हजार 833 मतों की रह गयी है जिसे पाटना तन्खा के लिए अधिक कठिन नहीं होगा इतनी मदद तो धीरज पटैरिया कर ही सकते हैं जिनका जबलपुर शहर के अलावा सिहोरा विधानसभा क्षेत्र में भी आधार है। बशर्ते कि अभी भी मोदी लहर अंदर ही अंदर न चल रही हो। वैसे विधानसभा चुनाव के नतीजों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह लोकसभा सीट भाजपा के लिए इस बार खतरे के जोन में आ गयी है, इसलिए भाजपा को अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए यहां एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ेगा। राकेश सिंह और तन्खा के बीच दूसरी बार मुकाबला हो रहा है और तन्खा पूरी ताकत इस बात पर लगाये हुए हैं कि इस चुनाव पर राष्ट्रवाद का मुद्दा हावी न होने पाये। वे अपने अभियान को विकास के इर्द-गिर्द ही रखे हुए हैं। महाकौशल की राजनीति का केन्द्र जबलपुर लोकसभा सीट पर पिछले 23 साल से भाजपा का कब्जा रहा है और तन्खा पूरी ताकत लगा रहे हैं ताकि इस बार कांंग्रेस की जीत का परचम लहरा कर अपनी पुरानी हार का हिसाब-किताब बराबर करें। यह पूरा लोकसभा क्षेत्र जबलपुर जिले के अंतर्गत ही आता है और जो जबलपुर कभी कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा था उसमें पुन: दिलचस्प चुनावी मुकाबला हो रहा है। राकेश सिंह चौथी बार लगातार इस क्षेत्र से सांसद बनने के लिए चुनावी मैदान में हैं। यह संयोग है कि जबलपुर में महात्मा गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष पद के उम्मीदवार सीतामिपट्टारमैया को नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने पराजित कर दिया था तो 1980 के लोकसभा चुनाव में उनके पोते राजमोहन गांधी को कांग्रेस उम्मीदवार पत्रकार मुंदर शर्मा ने पराजित किया था।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।