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राष्ट्रपति चुनाव और ममता बनर्जी – राज खन्ना

राज खन्ना

2012 के राष्ट्रपति चुनाव के मौके पर ममता बनर्जी के उस दौर के दो निकट सहयोगियों ने प्रणव मुखर्जी से कहा था कि ममता बनर्जी के दिमाग में क्या चल रहा है, ये समझना मुश्किल है। उस चुनाव के पहले ममता ने ए. पी.कलाम को उम्मीदवार बनाने के लिए कोलकाता में रैली कर डाली थी। मुखर्जी की उम्मीदवारी का जमकर विरोध किया था। ममता समर्थकों ने विरोध की मर्यादा लांघ दी थी। फिर अचानक बीच चुनाव ममता बनर्जी ने यू टर्न लिया और मुखर्जी को खुला समर्थन दे दिया।

इस बार शुरुआत से वह विपक्ष की अगुवाई कर रही थीं।भाजपा विरोधी दलों को एन डी ए उम्मीदवार के खिलाफ एकजुट किया। शरद पवार, फारुख अब्दुल्ला और गोपाल कृष्ण गांधी के सामने उम्मीदवारी का प्रस्ताव किया। तीनों के इनकार के बाद अपनी पार्टी के यशवंत सिन्हा के नाम पर अन्य दलों को राजी किया। लेकिन सिन्हा नामांकन के समय खुद गैरहाजिर हो गईं । फिर द्रोपदी मुर्मू की उम्मीदवारी के नाम की घोषणा के बाद उनका रुख नरम हो है। ….और अब बयान दिया है कि अगर भाजपा ने बताया होता कि वह महिला और आदिवासी उम्मीदवार के विषय में सोच रहे हैं तो वे अन्य दलों के साथ इस पर चर्चा कर सकती थीं। महिलाओं और आदिवासियों के सम्मान का हवाला देते हुए फिलहाल लगभग मजबूरी के अंदाज में वे अपने उम्मीदवार के साथ खड़ी नजर आ रही हैं। उन्होंने कहा है कि अब वह अकेले कुछ नहीं कर सकतीं। सभी सत्रह दल मिलकर ही कोई फैसला ले सकते हैं।

2012 के राष्ट्रपति चुनाव में ममता बनर्जी ने क्या किया था ? इस चुनाव में कांग्रेस ने प्रणव मुख़र्जी को अपना उम्मीदवार चुना था। यू.पी.ए. के कई अन्य सहयोगी दल भी इससे सहमत थे। लेकिन मुलायम सिंह यादव और ममता बनर्जी को एतराज था। इन दोनों नेताओं ने 13 जून 2012 को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के जरिये ए. पी.जे.अब्दुल कलाम,मनमोहन सिंह अथवा सोमनाथ चटर्जी में से किसी एक को उम्मीदवार बनाने की मांग की थी। सोनिया गांधी अपने फैसले पर कायम रहीं और अगले ही दिन प्रणव मुख़र्जी की उम्मीदवारी की अधिकृत घोषणा कर दी गई। कुछ घण्टों में मुलायम सिंह यादव का भी रुख पलट गया और वह भी मुख़र्जी के समर्थन में आ गए। 18 जून को अब्दुल कलाम ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में एलान किया कि वह राष्ट्रपति चुनाव की दौड़ में शामिल नहीं हैं। लेकिन ममता बनर्जी फिर भी नहीं मानीं। अब्दुल कलाम पर दबाव बनाने के लिए उन्होंने पार्टी विधायकों के साथ कोलकाता में एक रैली भी कर डाली।

प्रणव मुख़र्जी ने अपनी किताब Coalition Years में लिखा , ‘ संभवतः मेरे प्रति उनकी तर्कहीन घृणा ने उनके दिमाग पर इस हद तक कब्जा कर लिया कि वह भूल गईं कि राष्ट्रपति का चुनाव आम मतदाता नही बल्कि वह निर्वाचक मंडल करता है, जिसमें केवल सांसद और राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य सम्मिलित होते हैं।’ मुख़र्जी ने अपने प्रति ममता बनर्जी की नाराजगी का कारण लिखा, ‘ संभवतः वित्त मंत्री के रूप में, मैं उनकी अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर सका। यद्यपि मैंने उनके मुख्यमंत्रित्व के दौरान बंगाल की भरपूर मदद की लेकिन वह मुझसे निराश-हताश और नाराज ही रहीं।’

उस चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस के भीतर भी उथल-पुथल चल रही थी। सोमेन मित्रा और सुभेन्दु अधिकारी ने मुख़र्जी को बताया था कि ममता बनर्जी के दिमाग में क्या चल रहा है , इसे समझना मुश्किल है लेकिन अगर उन्होंने संगमा के समर्थन का फैसला किया तो पार्टी के कम से कम दस सांसद और पचास विधायक क्रॉस वोटिंग करेंगे। दूसरी ओर अगर उन्होंने मतदान बहिष्कार का व्हिप जारी किया तो विधायकों में उसके उल्लंघन की हिम्मत नही दिखेगी। उस हालत में सात-आठ सांसद ही उनके निर्देश की खुली अवहेलना करेंगे। इन अटकलों के बीच ममता बनर्जी ने 17 जुलाई को यू टर्न लिया और ‘ भारी हृदय से ‘ प्रणव मुखर्जी के समर्थन की घोषणा कर दी। उन्होंने संन्देश दिया कि दादा मेरी ओर से बेफिक्र रहें। समर्थन की घोषणा के बाद प्रणव मुख़र्जी ने आभार व्यक्त करने के लिए उन्हें फोन किया। उत्साहित ममता बनर्जी ने कहा कि वोटिंग के दिन वह सुनिश्चित करेगी कि एक भी वोट खराब न होने पाए।

जाहिर है कि ममता बनर्जी ने राजनीतिक नफा – नुकसान तोलने के बाद अपना फैसला बदला। इस बार भाजपा के आदिवासी महिला कार्ड ने उन्हें परेशान किया है। भाजपा ने विपक्ष के उम्मीदवार के नाम की घोषणा का इंतजार किया। फिर अगले दिन पहली बार किसी आदिवासी महिला का देश के सर्वोच्च पद के लिए नाम आगे करके विपक्षियों को चौंका दिया। विपक्षी खेमे के उन दलों के लिए जिनके प्रभाव क्षेत्र में आदिवासी बाहुल्य सीटें अधिक हैं अथवा जो उनकी अस्मिता और हितों की पैरोकारी को लेकर ज्यादा मुखर हैं, वे मुर्मू के विरोध से होने वाले नुकसान को लेकर आशंकित हैं।

पश्चिम बंगाल में दलित और आदिवासी समुदाय की आबादी लगभग 23.52 फीसद है। विधानसभा की 86 सीटों पर उनका सीधा असर है। आर. एस. एस. वर्षों से उनके बीच में काम कर रहा है। 2021 के चुनावों में टी. एम. सी. की जबरदस्त जीत हुई लेकिन भाजपा को सबसे ज्यादा समर्थन इन्हीं इलाकों और समाज के बीच मिला। ममता बनर्जी इसे लेकर सचेत हैं। चुनावों में अपने विरोधियों को मात देने के लिए ममता बनर्जी कुछ भी बोलने में परहेज नहीं करतीं। यहां तक कि राष्ट्रपति चुनाव में भी नहीं। 2012 के चुनाव के समय वे जब तक प्रणव मुखर्जी के खिलाफ रहीं, तब तक उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। इस दर्द को मुखर्जी ने अपनी किताब में बयान भी किया है।

लेकिन 2022 में ममता सतर्क हैं। इसकी वजह पश्चिम बंगाल की बड़ी आदिवासी और दलित आबादी है। यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी को लेकर वे इतना आगे बढ़ चुकी हैं कि वापसी मुश्किल है। चुनाव नतीजे आसानी से समझें जा सकते हैं। मुर्मू के पक्ष में अब तक विपक्ष के समझे जाने वाले काफी वोट जुड़ रहे हैं। ममता ऐसा कुछ बोलने से बच रही हैं , जो उनके राज्य के दलित, आदिवासियों और महिलाओं को आहत करे। प्रणव मुख़र्जी का ममता बनर्जी के विषय में आकलन है, ‘ वह सही में नेता हैं। ऐसा नही है कि वह हर काम हल्के में और सनक में करती हैं। अधिकतर मौकों पर वह भावनाओं में बहती दिखती हैं लेकिन इसके पीछे भी सोची-समझी रणनीति होती है। पूरे चुनाव अभियान के दौरान वह मुझे उकसाती रहीं। समर्थकों को मेरे प्रति असंसदीय भाषा के प्रयोग के लिए प्रोत्साहित करती रहीं। वह प्रतिक्रिया के लिए मुझे मजबूर कर रहीं थीं ताकि उन्हें चुनाव वहिष्कार का बहाना मिल जाये। उन्होंने मेरे ऊपर दबाव बनाने की हर मुमकिन कोशिश की। मेरा नामांकन रद्द कराने का प्रयास किया। मुझ पर उन्होंने निजी आक्षेप किये। यहां तक कि तृणमूल के कुछ नेताओं ने गालीगलौज वाले बयान जारी किए। लेकिन मैंने धैर्यपूर्वक इंतजार किया। जबाब में ऐसी कोई टिप्पणी नही की जो उन्हें आहत करे। मेरी रणनीति काम आयी। मुझे उनका पूरा समर्थन मिला।’

देश के सर्वोच्च राष्ट्रपति पद पर रहते राजनीति की गुंजाइश नहीं है। लेकिन ताजपोशी तो राजनीति की डगर से ही होती है। नतीजे पता हों तो तब भी क्या , दल और नेता अपने प्रभावक्षेत्र के अन्य चुनावों पर असर डालने वाले कारकों को कभी नहीं भूलते। ममता बनर्जी को भी इसका अहसास है। इसीलिए इस चुनाव में सौम्य – शांत और लहजा इतना नरम है।

 

सम्प्रति- लेखक श्री राजखन्ना वरिष्ठ पत्रकार है।श्री खन्ना के आलेख देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्रों,पत्रिकाओं में निरन्तर छपते रहते है।श्री खन्ना इतिहास की अहम घटनाओं पर काफी समय से लगातार लिख रहे है।