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उत्तराखंड बॉर्डर पर भारत की ओर से रिएक्शन के बाद भी नेपाल नहीं ले रहा कोई एक्शन..

भारत-नेपाल के उत्तराखंड बॉर्डर पर भारत की ओर से रिएक्शन के बाद नेपाल का कोई खास एक्शन नहीं हो रहा है। नेपाल ने काली नदी से मलबा हटाने के नाम पर भारत की आंखों में धूल झोंक रहा है। नेपाल ने भारत से अपनी तरफ नदी किनारे जमा मलबा हटाने का वादा किया था।

लेकिन नेपाल अब नदी से मलबा निकाल रेत छानकर शेष रोड़े व सामग्री नदी में ही डाल रहा है। इससे काली नदी के प्रवाह को विस्तार मिल पाना कठिन है। ऐसी स्थितियों में भारत की तरफ नदी में तटबंध का निर्माण करना भी कठिन हो गया है। 7 दिसंबर को भारत नेपाल सीमा समन्वय समिति कि धौली निकेतन एनएचपीसी में बैठक हुई थी।

इस बैठक के बाद नेपाल की तरफ सेर बंगाबगड़ में काली नदी किनारे मलबा हटाने का कार्य शुरू करने से उम्मीद जगी थी। बैठक के दो दिन बाद नेपाल ने इस पर काम शुरू किया।  8 दिन की अवधि में नेपाली क्षेत्र में एक पोकलेंट मशीन, ट्रैक्टर ट्रॉली के सहारे मलबा निकालने का काम हो रहा है।

इसमें भी नदी से निकाले गए मलबे को बाहर निकाल कर रेत अलग करने के बाद शेष मलबे को नदी में ही डाला जा रहा है। इससे भारतीय क्षेत्र में रह रहे लोगों की चिंता अपने क्षेत्र में निर्माण कार्य शुरू होने को लेकर और बढ़ गई है। व्यापार संघ अध्यक्ष भूपेंद्र थापा ने कहा कि नेपाल प्रशासन, सरकार को भी भारतीय लोगों की सुरक्षा की चिंता होनी चाहिए।  

नदी किनारे से शीघ्र मलबा को हटाया जाना चाहिए। अनवाल समुदाय के अध्यक्ष गुमान बिष्ट ने कहा कि घटधार के आपदाग्रस्त क्षेत्र होने से पूरे नगर की हजारों की आबादी खतरे की जद में हैं। ऐसे में नेपाल को भी जिम्मेदार पड़ोसी की भूमिका निभानी चाहिए।

भारत नेपाल के मित्रवत रिश्तों को ध्यान में रखते हुए नेपाल के नागरिकों, वहां के प्रशासन तथा सरकार को भारतीय नागरिकों की सुरक्षा को काली नदी में तटबंध निर्माण में सहयोग करना चाहिए। नेपाल अपनी तरफ नदी में जमा मलबा हटाएंगा, तभी भारत में तटबंध बनाया जा सकेगा। यह उसे समझना होगा। 

भारत नेपाल सीमा समन्वय बैठक के बाद भारतीय क्षेत्र से मलबे को हटाने का कार्य तेजी से किया जा रहा है। घटगाड़ (घटखोला) में नेपाल क्षेत्र से मलबा हटाए जाने तक निर्माण कार्य करना बहुत मुश्किल है।