Thursday , December 12 2024
Home / राजनीति / छह अक्तूबर को सुनवाई होगी सुप्रीम कोर्ट में जाति जनगणना को लेकर

छह अक्तूबर को सुनवाई होगी सुप्रीम कोर्ट में जाति जनगणना को लेकर

बिहार मंत्रिमंडल ने पिछले साल दो जून को जाति आधारित गणना कराने की मंजूरी देने के साथ इसके लिए 500 करोड़ रुपये की राशि भी आवंटित की थी।

बिहार में जाति जनगणना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गई है। इसमें याचिकाकर्ता ने जातिगत जनगणना का विरोध किया है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि बिहार सरकार ने जाति सर्वेक्षण डेटा प्रकाशित कर दिया है। ऐसे में इस पर जल्द सुनवाई की जानी चाहिए। इसके बाद कोर्ट ने मामले की सुनवाई छह अक्तूबर को तय कर दी।

दरअसल, पहले बिहार सरकार की ओर से सर्वे से जुड़ा आंकड़ा प्रकाशित नहीं करने की बात की गई थी। इसके बाद इसे प्रकाशित कर दिया गया। इसे लेकर अब कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि हम इस मामले पर छह अक्तूबर को ही दलील सुनेंगे।

Supreme Court of India - Wikipedia

लोकसभा चुनाव से पहले जारी किए आंकड़े
इससे पहले बिहार में नीतीश कुमार सरकार ने सोमवार को बहुप्रतीक्षित जाति आधारित गणना के आंकड़े जारी किए थे। लोकसभा चुनाव से पहले जारी आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की कुल आबादी में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अत्यंत पिछड़ा वर्ग (ईबीसी) की हिस्सेदारी 63 फीसदी है।

बिहार की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से कुछ अधिक
बिहार के विकास आयुक्त विवेक सिंह द्वारा यहां जारी आंकड़ों के मुताबिक, बिहार की कुल जनसंख्या 13.07 करोड़ से कुछ अधिक है। इसमें ईबीसी (36 फीसदी) सबसे बड़े सामाजिक वर्ग के रूप में उभरा है, इसके बाद ओबीसी (27.13 प्रतिशत) है। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि ओबीसी समूह में शामिल यादव समुदाय जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़ा सुमदाय है, जो प्रदेश की कुल आबादी का 14.27 प्रतिशत है।

अनुसूचित जाति राज्य की कुल आबादी का 19.65 प्रतिशत
सर्वेक्षण के मुताबिक, अनुसूचित जाति राज्य की कुल आबादी का 19.65 प्रतिशत है, जबकि अनुसूचित जनजाति की आबादी लगभग 22 लाख (1.68 प्रतिशत) है। अनारक्षित श्रेणी से संबंधित लोग प्रदेश की कुल आबादी का 15.52 प्रतिशत हैं, जो 1990 के दशक की मंडल लहर तक राजनीति पर हावी रहने वाली उच्च जातियों को दर्शाते हैं।

आखिरी बार सभी जातियों की गणना 1931 में की गई थी
देश में आखिरी बार सभी जातियों की गणना 1931 में की गई थी। बिहार मंत्रिमंडल ने पिछले साल दो जून को जाति आधारित गणना कराने की मंजूरी देने के साथ इसके लिए 500 करोड़ रुपये की राशि भी आवंटित की थी। बिहार सरकार के जाति आधारित गणना पर पटना हाईकोर्ट ने रोक भी लगा दी थी। हालांकि, एक अगस्त को कोर्ट ने ने सभी याचिकाओं को खारिज करते हुए बिहार सरकार के जाति आधारित गणना करने के निर्णय को सही ठहराया था।