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यूपी : गोली मारकर मां-बाप की हत्या करने वाले वकील को फांसी

बरेली में माता-पिता की गोली मारकर हत्या करने वाले वकील को फांसी सजा हुई है। अदालत ने इसे विरल से विरलतम अपराध माना, साथ ही दस हजार का जुर्माना भी लगाया। अदालत ने फैसले में मनु स्मृति और रामचरित मानस की चौपाइयों का उल्लेख भी किया।

बरेली के मीरगंज थाना इलाके में संपत्ति के विवाद में साढ़े तीन साल पहले वकील दुर्वेश कुमार ने गोली मारकर अपने माता-पिता की हत्या कर दी थी। मंगलवार को अपर सत्र न्यायाधीश ज्ञानेंद्र त्रिपाठी की अदालत ने उसे फांसी की सजा सुनाई।

13 अक्तूबर 2020 को मीरगंज के बहरोली गांव में प्राथमिक स्कूल के सेवानिवृत्त शिक्षक लालता प्रसाद व उनकी पत्नी मोहन देवी को उनके बड़े बेटे दुर्वेश कुमार ने गोली मार दी थी। दुर्वेश मीरगंज में रहकर वकालत करता था और इस बात से परेशान था कि पिता ज्यादातर संपत्ति उसके छोटे भाई उमेश को दे रहे थे।

घटना के दिन सुबह ही वह बंदूक (पौनिया) लेकर गांव पहुंचा और पिता को गोली मार दी। मां चीखती हुई बाहर निकलीं तो दूसरी गोली उनके सीने में उतार दी थी। दोनों की ही मौके पर मौत हो गई थी। छोटे भाई उमेश ने दुर्वेश के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कराई थी।

जिला शासकीय अधिवक्ता सुनिति कुमार पाठक व सुनील पांडेय ने अदालत में नौ गवाह पेश किए। कोर्ट ने अभियुक्त दुर्वेश को 23 जनवरी को ही हत्या का दोषी करार दे दिया था। चूंकि आरोपी खुद वकील रहा है और उसे कानून का ज्ञान है, इसलिए अदालत ने केस को विरल से भी विरलतम अपराध मानते हुए फांसी की सजा सुनाई है। साथ ही, दस हजार रुपये का जुर्माना भी डाला है। जुर्माना नहीं देने पर उसे तीन महीने अतिरिक्त सश्रम कारावास भुगतना पड़ेगा।

अदालत ने फैसले में मनु स्मृति व रामचरित मानस की चौपाइयों का किया उल्लेख
अदालत ने अपने सौ से अधिक पन्नों के फैसले में मनु स्मृति का उल्लेख करते हुए कहा कि दंड के माध्यम से ही प्रजा के शरीर व संपत्ति की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। इसलिए अपराधी को दंडित करना शासक का परम धर्म है। सामाजिक व्यवस्था के रक्षार्थ निर्मित विधि के उल्लंघन पर विधि व्यवस्था स्थापित करने वाली इकाई द्वारा उल्लंघनकर्ता को भय स्वरूप जो भी मानसिक अथवा आर्थिक क्षति कारित की जाती है, वही दंड है।

अदालत ने रामचरित मानस के उत्तरकांड के श्लोक का उल्लेख करते हुए कहा कि- जौ नहिं दंड करौ खल तोरा, भ्रष्ट होइ श्रुति मारग मोरा। अर्थात यदि खल, दोष हेतु दंड न दिया जाए तो श्रुति, वेद का मार्ग ही भ्रष्ट हो जाता है।