पिछड़े और आदिवासी बहुलता वाले राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल का भाजपा के संतोष पांडे से मात खाना राज्य की सियासी तस्वीर की पूरी कहानी खुद-ब-खुद बयां कर देता है।
छत्तीसगढ़ की 11 में से 10 सीटों पर भाजपा की एकतरफा बढ़त यह बताने के लिए काफी है कि पिछली राज्य सरकार से लोगों की नाराजगी अभी दूर नहीं हुई है। पिछड़े और आदिवासी बहुलता वाले राजनांदगांव लोकसभा क्षेत्र से पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल का भाजपा के संतोष पांडे से मात खाना राज्य की सियासी तस्वीर की पूरी कहानी खुद-ब-खुद बयां कर देता है।
राज्य में संघ और उसके आनुषंगिक संगठनों ने दलितों और आदिवासियों के बीच लंबे समय से अपनी सक्रियता बनाए रखी है। भाजपा को संघ की इस मेहनत का फायदा किस तरह मिला इसे बस्तर के परिणामों से समझा जा सकता है। यहां भाजपा की ओर से उतरे महेश कश्यप विहिप के सक्रिय कार्यकर्ता जरूर हैं, लेकिन सियासत के लिहाज से अनजान चेहरे हैं। साफ है कि जनता का यह समर्थन प्रत्याशी के बजाय संगठन के प्रति है।
इसी तरह कांकेर से बढ़त बनाने वाले भोगराज नाग भी धर्मांतरण विरोधी कार्यक्रमों के लिए जाने जाते हैं। कुल मिलाकर संघ की आदिवासी बहुल इलाकों में वर्षों की सक्रियता व भाजपा के कार्यकर्ताओं की मेहनत और प्रत्याशियों की अपनी छवि ने एक ऐसा समीकरण बनाया, जिसकी काट ढूंढ़ने में कांग्रेस करीब करीब नाकाम रही।
नतीजों को ऐसे समझें
- वोट देते समय मतदाताओं ने संगठन और विचारधारा को अहमियत दी। ज्यादातर सीटों पर भाजपा का वोट बैंक अपनी जगह बरकरार है
- पिछली राज्य सरकार यह समझ ही नहीं पाई कि वह जनता से कब कट गई। लोगों में इस बात की नाराजगी अभी बरकरार है