महाराष्ट्र में प्राथमिक कक्षाओं में हिंदी थोपने के आदेश पर विवाद खड़ा हो गया है। शरद पवार ने कहा कि हिंदी विरोध नहीं, लेकिन बच्चों पर इसे थोपना गलत है। उधर, उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे ने इस फैसले के खिलाफ विरोध की घोषणा की है। उनका आरोप है कि सरकार मराठी अस्मिता खत्म करने की साजिश कर रही है। 7 जुलाई को बड़ा प्रदर्शन होगा।
महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को लेकर नया विवाद खड़ा हो गया है। राज्य सरकार द्वारा कक्षा 1 से 5 तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में सामान्य तौर पर पढ़ाने के आदेश के बाद सियासी हलचल तेज हो गई है। एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार ने साफ कहा है कि महाराष्ट्र के लोग हिंदी विरोधी नहीं हैं, लेकिन इतनी छोटी उम्र के बच्चों पर हिंदी थोपना सही नहीं है।
कोल्हापुर में पत्रकारों से बातचीत करते हुए पवार ने कहा कि देश की 55 फीसदी आबादी हिंदी बोलती है, इसलिए इस भाषा को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। लेकिन कक्षा 1 से 4 तक के बच्चों के लिए मातृभाषा ही सबसे जरूरी है। पवार ने कहा कि पांचवीं के बाद हिंदी बच्चों के भविष्य के लिए जरूरी हो सकती है, लेकिन शुरुआती शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए।
क्या है सरकार का नया आदेश?
राज्य सरकार के नए आदेश के मुताबिक, मराठी और अंग्रेजी माध्यम स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। हालांकि, अगर किसी स्कूल में प्रति कक्षा 20 छात्र किसी अन्य भारतीय भाषा को पढ़ना चाहें तो उन्हें हिंदी से छूट दी जा सकती है। इसके लिए स्कूल में शिक्षक की नियुक्ति की जाएगी या फिर ऑनलाइन पढ़ाई की व्यवस्था होगी।
ठाकरे भाइयों का अल्टीमेटम
उधर, शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) प्रमुख राज ठाकरे ने इस आदेश के खिलाफ खुलकर विरोध जताया है। दोनों नेताओं ने इसे “भाषाई आपातकाल” थोपने की कोशिश बताते हुए 5 और 7 जुलाई को बड़े विरोध प्रदर्शन की घोषणा की है। उनका कहना है कि सरकार मराठी अस्मिता को दबाने की कोशिश कर रही है।
शरद का पवार का संतुलित रुख
शरद पवार ने ठाकरे बंधुओं के आंदोलन पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर वे सभी दलों को इस विरोध में शामिल करना चाहते हैं तो पहले उन्हें अपना स्टैंड और इस मुद्दे पर पूरी योजना सबके सामने रखनी चाहिए। पवार ने साफ किया कि महाराष्ट्र में कोई हिंदी विरोध नहीं है, लेकिन भाषा थोपने की कोई भी कोशिश स्वीकार नहीं की जाएगी।
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