Tuesday , December 2 2025

1962 नहीं, नया भारत: अरुणाचल से उठती हौसले और विकास की नई आवाज -अशोक कुमार साहू

                                     

शंघाई अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर चीन के अधिकारियों ने पिछले सप्ताह भारतीय नागरिक प्रेमा वांगजोम थोंगडोक के साथ अरूणाचल प्रदेश की निवासी होने को लेकर उनके पासपोर्ट पर सवाल उठाकर भले ही एक बार फिर अपनी ओछी हरकत से दुनिया का ध्यान आकृष्ट किया हो,पर उसकी इस तरह की हरकतों से अब अरूणाचल प्रदेश का आम जनमानस उद्देलित नही होता।     

     भारतीय विदेश मंत्रालय ने जहां इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया दी और कहा कि चीन की इस तरह की हरकतों से सच्चाई नही बदलने वाली हैं,अरूणाचल प्रदेश भारत का एक अभिन्न अंग है,वहीं अरूणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेमा खांड़ू ने भी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है।इसके इतर अरूणाचल प्रदेश के आम जनमानस में चीन की इन हरकतों से गुस्सा तो जरूर आता है पर वह इसे केवल उसकावे वाली कार्रवाई मानते है।उनका मानना हैं कि विस्तारवादी सोच वाला चीन इस तरह की हरकतों से आगे भी बाज नही आने वाला है।

    चीन पहले भी अरूणाचल प्रदेश पर अपनी दावेदारी और राज्य के स्थानों के नाम बदलने की हरकते यह जानते हुए भी करता रहा है कि इससे हकीकत नही बदलने वाली है।स्थानों के नाम बदलने की इसकी हरकतों का मामला अरूणाचल विधानसभा में भी उठ चुका है और कुछ विधायकों ने राज्यपाल के.टी.परनायक से भी इसकी शिकायत की।पूर्व वरिष्ठ सैन्य अधिकारी श्री परनायक ने उन्हे आश्वस्त किया इससे कुछ नही होता,हम भी उनके स्थानों के नाम बदल सकते है,पर इस तरह की ओछी हरकत में भारत का विश्वास नही हैं।

   अरूणाचल प्रदेश के लोगों में राष्ट्र के प्रति लगाव देखते ही बनता है।एक शान्त,सुन्दर और प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण यह राज्य सामारिक दृष्टि से देश के लिए काफी अहम होने के साथ ही बहुत ही संवेदनशील है।कश्मीर घाटी में पड़ोसी देश के साथ कतिपय लोगो की सहानुभूति की लगने वाली अटकलों के इतर यहां के लोगो में चीन के विस्तारवादी रवैये के प्रति उतना ही आक्रोश रहता है जितना देश के दूसरे हिस्से के लोगो में।राजधानी ईटानगर से लगभग 500 किमी दूर15200 फुट ऊंचाई पर स्थित बुमला चीन सीमा तक 1962 के भारत-चीन युद्द के वीर शहीद परमबीर चक्र विजेता सूबेदार जोगिन्दर सिंह एवं अन्य सैनिकों के स्मारक और उनकी शौर्य और बहादुरी की अनगिनत कहानियां बंया कर रही है जोकि राष्ट्रीयता और देश प्रेम की भावना को झकझोर देती है।

    बोमडिला से लेकर बुमला तक सेना की जगह जगह मौजूदगी और उनके निरन्तर बनते कैम्प तथा संचार,सड़क से लेकर अद्योसंरचना मजबूत करने के लिए सेना के साथ मिलकर सीमा सड़क संगठन(बीआरओ)के चल रहे कार्यों को देकर वहां पहुंचने वाला हर भारतीय यह सोचते हुए गौरवान्वित महसूस करता है कि..यह 1962 वाला भारत नही हैं बल्कि उसने इतनी तरक्की कर ली है कि उसके पास भी लड़ाई के जहां आधुनिक संसाधन मौजूद हैं वहीं उसके बहादुर सैनिक चीन के सामने बर्फीले पहाड़ों पर डटे है,और हर चुनौती का मुंहतोड़ जवाब देने की स्थिति में है..।              

   सीमा पर तैनात सैनिकों के हौसले बहुत ही बुलन्द है। अरूणाचल प्रदेश के दौरे पर गए छत्तीसगढ़ विधानसभा की प्रेस दीर्घा समिति के सदस्यों से बुमला सीमा पर सैनिकों ने अनौपचारिक बातचीत में पास में ऊंची बर्फीली चोटियों को दिखाते हुए बताया कि उन पर दोनो देशों की सेनाओं के जवान आमने सामने तैनात है।सर्दियों में बर्फ से बढ़ने वाली चुनौती के बारे में पूछे जाने पर उन्होने कहा कि उनके पास ठंड से बचाव के सभी आधुनिक कपड़े है।सीमा पर दोनो देशों के बीच टकराव के बारे में पूछे जाने पर उन्होने मुस्कराते हुए कहा कि सीमा है तो कभी कभार नोकझोंक स्वाभाविक है।उन्होने दोनों देशों के सैन्य अफसरों की फ्लैग मीटिंग के लिए बने स्थानों को भी दूर से दिखाया।

     एक तरफ भारत की ओर सीमा पर देशभर से प्रशासन से औपचारिक अनुमति लेकर लोगो की भारी भीड़ तो दूसरी तरफ चीन की तरफ पसरा सन्नाटा।चीन की पोस्ट पर तैनात सैनिकों का दिनभर का सारा समय भारतीय सीमा के भीतर की चहल पहल और उनके फोटो खींचते और वीडियों बनाते बीत जाता है।सीमा पर तैनात सैनिकों को चीनी भाषा का भी प्रशिक्षण रहता है।सीमा पर पूरे प्रोटोकाल का पालन होता है और वहां पर किसी को भी इसको नजरदांज कर फोटो खींचने की अनुमति नही है।

    दरअसल भारत सरकार ने औपचारिक अनुमति के साथ सीमा पर आम लोगो को जाने की अनुमति दे रखी है,और सेना आगंतुको के लिए कैन्टीन भी चलाती है जबकि विस्तारवादी चीन में आम लोगो के सीमा पर आने की पाबन्दी है।अपुष्ट जानकारी के अनुसार चीन ने सीमा से जुड़े बहुत बड़े क्षेत्र में केवल सैन्य अफसरों और शासन के उच्चाधिकारियों को ही जाने की अनुमति दे रखी है।

    बुमला सीमा से लगभग 40 किमी दूर तवांग शहर हो या फिर बोमडिला और गौहाटी और ईटानगर को जोड़ने वाला दुर्गम पहाडियों से होकर जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग,पहाड़ को चीरकर बनाए गए रास्ते तथा उसे बेहतर बनाने के लिए लगातार किए जा रहे कार्यों से बीआरओ के इंजीनियरों और श्रमिकों के प्रति आभार नही जताना उनके प्रति नाइंसाफी होंगी,जिनकी बदौलत किसी भी मुश्किल स्थिति में सेना का सीमा पर साजो सामान पहुंचना अब मुश्किल नही रहा।      

    अरूणाचल प्रदेश पूर्वोत्तर का संभवतः इकलौता राज्य हैं जहां पर कभी भी न तो कोई उग्रवादी गुट सक्रिय रहे और न ही कभी यहां अलगाववाद जैसी बाते सामने आयी जबकि यह चीन के साथ ही म्यांमार और भूटान की सीमा से जुड़ा है। 1947 में देश को आजादी मिलने के बाद यह क्षेत्र असम का हिस्सा था और इसे..नार्थ ईस्ट फ्रांटियर एजेंसी(नेफा) के रूप में जाना जाता था। वर्ष 1972 में नेफा को असम से अलग किया गया और 21 जनवरी 72 को एक केन्द्र शासित प्रदेश के रूप में अरूणाचल प्रदेश आस्तित्व में आया।    

   लगभग 15 वर्षों बाद केन्द्र की तत्कालीन राजीवगांधी सरकार ने अरूणाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया।लगभग 83727 किलोमीटर क्षेत्र में फैले और लगभग 18 लाख की जनसंख्या वाले देश के प्रति किलोमीटर सबसे कम आबादी वाले इस राज्य की 53 वर्षों की  यात्रा निरन्तर प्रगति की ओर अग्रसर हैं।इस राज्य में बेरोजगारी दूसरे अधिकांश राज्यों की तरह कोई भयावह समस्या नही है।

    राज्यपाल श्री परनायक के अनुसार पिछले एक दशक में इस सीमावर्ती संवेदनशील राज्य में विकास की गति काफी तेज हुई है।राज्य में सड़कों का जाल फैला है और स्कूल कालेज तेजी से खुले है ।पूरे राज्य में लगभग सभी जगह 4जी नेटवर्क मौजूद है।उन्होने प्रेस दीर्घा समिति के सदस्यों से मुलाकात के दौरान कहा कि प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण इस राज्य में आगे बढ़ने की पूरी संभावना है।इस राज्य की आय का आने वाले वर्षों में जल विद्युत एक प्रमुख श्रोत बन सकता है।इसके अलावा पर्यटन,पाम एवं फलों की खेती भी आय का जरिया बन सकती है।

   राज्यपाल के इन दावों के साकार होने में हालांकि की अहम दिक्कते है।आदिवासी राज्य होने के कारण यहां बाहरी लोगो के जमीने खरीदने पर प्रतिबन्ध है।निजी क्षेत्र के जल विद्युत के लिए भारी निवेश में पर्यावरण भी बड़ी दिक्कत है।कई वर्ष पूर्व उद्योपति नवीन जिन्दल के नेतृत्व वाले जिन्दल पावर ने लगभग 3000 मेगावाट बिजली उत्पादन संयंत्र की स्थापना का एमओयू किया था,बाद में वह पीछे हट गया था।पर्यटन के क्षेत्र में निजी निवेश में यहीं बाधाएं है।पर्यटन स्थलों पर अभी बेहतर सुविधाएं एवं होटल आदि उपलब्ध नही है,इसे बेहतर बनाने के लिए राज्य या केन्द्र सरकार को अपने स्तर से निवेश करना होगा।   

   राज्य की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी है,लेकिन हिन्दी राज्य की प्रमुख सम्पर्क भाषा है।राज्य की विभिन्न जनजातियों और समुदायों के बीच हिन्दी संवाद और समझ का माध्यम बनी हुई है।राजधानी ईटानगर हो या फिर बोलाडिला या फिर सीमावर्ती तवांग हर जगह हिन्दी को बोलते समझते देखा जा सकता है।अरूणाचल प्रदेश विधानसभा में भी सदस्यों द्वारा हिन्दी में सवाल जवाब और चर्चा की जाती है।अरूणाचल प्रदेश विधानसभा के रिपोर्टर बबलू कुमार के अनुसार कार्यवाही में सदस्य हिन्दी में भी सम्बोधन करते है।विधानसभा में इसलिए हिन्दी रिपोर्टर भी नियुक्त है।

सम्प्रति- लेखक अशोक कुमार साहू सेन्ट्रल ग्राउन्ड न्यूज(cgnews.in) के सम्पादक तथा संवाद समिति यूनीवार्ता (UNI) के छत्तीसगढ़ के पूर्व राज्य प्रमुख हैं।