विजयादशमी के दिन श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया। इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमा और कलश विसर्जन और रावण दहन का भी विधान है।
आश्विन शुक्ल दशमी को श्रवण नक्षत्र में विजयदशमी पर्व है। विजय दशमी का त्योहार वर्षा ऋतु की समाप्ति तथा शरद के आरंभ का सूचक है। दुर्गा-विसर्जन, अपराजिता पूजन, विजय-प्रयाग, शमी पूजन तथा नवरात्र पारण इस पर्व के महान कर्म हैं। इस दिन मां दुर्गा की प्रतिमा और कलश विसर्जन के साथ ही रावण दहन का भी विधान है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन श्रीराम ने लंकापति रावण का वध किया। इंडियन काउंसिल ऑफ एस्ट्रोलॉजिकल साइंस के सचिव आचार्य कौशल वत्स ने बताया कि इस दिन संध्या के समय नीलकंठ पक्षी का दर्शन बेहद ही शुभ माना जाता है।
विजयदशमी या दशहरे के दिन श्रीराम, मां दुर्गा, श्री गणेश और हनुमान जी की अराधना कर परिवार के मंगल की कामना की जाती है। मान्यता है कि दशहरे के दिन रामायण पाठ, सुंदरकांड, श्रीराम रक्षा स्त्रोत करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
पंचक में शुभ कार्य रहते हैं वर्जित
पंचक वैदिक ज्योतिष से लिया गया एक शब्द है। जो पांच दिनों की एक विशिष्ट अवधि को दर्शाता है। जब चंद्रमा नक्षत्र के अंतिम दो तिमाहियों में होता है। इसे धनिष्ठा के रूप में जाना जाता है। ज्योतिषाचार्य विनोद त्यागी ने बताया कि इस अवधि को अक्सर कुछ गतिविधियों के लिए अशुभ माना जाता है। आम तौर पर लोगों को पंचक के दौरान नए उद्यम शुरू करने या महत्वपूर्ण निर्णय लेने से बचने की सलाह दी जाती है।
दशहरा सर्व सिद्धि दायक तिथिदशहरा सर्व सिद्धिदायक तिथि मानी जाती है। इस दिन सभी शुभ कार्य फलकारी माने जाते हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दशहरे के दिन बच्चों का अक्षर लेखन, घर या दुकान का निर्माण, गृह प्रवेश, मुंडन, नामकरण, अन्नप्राशन, कर्ण छेदन, यज्ञोपवीत संस्कार और भूमि पूजन आदि कार्य शुभ माने गए हैं। आचार्य कौशल वत्स ने बताया इस मुहूर्त में किए गए सभी काम सफल होते हैं। इस बार विजयादशमी के साथ धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्र व एकादशी तिथि का दुर्लभ संयोग बन रहा है।
धनिष्ठा नक्षत्र के साथ एकादशी का संयोजन
आज दशहरा को अपराह्न व्यापिनी धनिष्ठा नक्षत्र युक्त दशमी को अपराजिता पूजन, शमी पूजन, शस्त्र पूजन का विशेष शुभ समय रहेगा। शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि, तुला का सूर्य व धनिष्ठा नक्षत्र के साथ एकादशी का संयोग इस बार शुभ माना जा रहा है। दशमी तिथि का समापन 24 अक्तूबर को दोपहर 03:15 बजे होगा। इसके बाद एकादशी तिथि होगी। विजयदशमी वर्ष के श्रेष्ठ मुहूर्त माना गया है। विजयदशमी के दिन कोई भी अनुबंध हस्ताक्षर करना हो, गृह प्रवेश करना हो, नया व्यापार आरंभ करना हो, या किसी भी तरह का लेनदेन का कार्य करना हो तो उसके लिए श्रेष्ठ फलदायी माना गया है।
विजय दशमी सर्वश्रेष्ठ मुहूर्त
पूजन मुहूर्त : दोपहर 11:42 मिनट से दोपहर 3:00 बजे तक
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:42 से 12:27 तक के मध्य है।
विजय मुहूर्त: दोपहर 01:57 से 02:42 तक रहेगा।
शस्त्र पूजन विजय मुहूर्त: दोपहर 01:57 से 02:42 तक रहेगा।
सरस्वती पूजन (लाभ व अमृत की चौघड़िया) : सुबह 10:40 से 01:29 तक।
बहीखाता पूजन वृश्चिक लग्न मुहूर्त: सुबह 8:21 से 10:40 तक।
दुर्गा ने किया था महिषासुर का संहार
– दशहरे के 10 दिन पहले रामलीला का मंचन पूरे देश में होता है। वहीं इस दिन मां दुर्गा ने महिषासुर का संहार भी किया था। इसलिए भी इसे विजयदशमी के रूप में मनाया जाता है। युद्ध के दौरान सभी देवतागणों ने मां दुर्गा को अस्त्र-शस्त्र प्रदान किए। मान्यता है कि तभी से इस दिन को विजयादशमी उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। ऐसा भी कहा जाता है कि भगवान राम ने रावण का वध करने से पहले मां दुर्गा का पूजन किया। भगवान श्रीराम और देवी भगवती का गहरा नाता है। राम की शक्ति हैं अपराजिता देवी। अपराजिता देवी के आराध्य हैं श्रीराम।
एकादशी तिथि पंचक में रावण दहन
धर्म ग्रंथों में कहा जाता है कि श्रीराम ने रावण की नाभि में बाण तो दशमी में ही मारा था पर रावण ने प्राण एकादशी में ही त्यागे। पूर्व के कुछ जिलों में तो आज भी एकादशी में रावण पुतला दहन होता है। वहीं इस बार दशमी तिथि दोपहर 03:15 मिनट तक होगी। इसके बाद पापांकुशा एकादशी आ जाएगी। वहीं रावण दहन रात्रि में 08:30 पर प्रदोषकाल में होगा।