वाराणसी स्थित ज्ञानवापी तहखाने में काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट को पूजा की अनुमति देने की जिला जज के आदेश की वैधता की चुनौती अपीलों पर सुनवाई जारी है। सोमवार को तकरीबन डेढ़ घंटे चली सुनवाई में मस्जिद पक्ष ने आरोप लगाया कि हिंदू पक्ष के प्रभाव में आकर जिला जज ने यह आदेश पारित किया। जबकि, मंदिर पक्ष के अधिवक्ता द्वारा इसका विरोध किया गया।
कोर्ट ने अपीलार्थी अधिवक्ता के अनुरोध पर अगली सुनवाई की तिथि 15 फरवरी तय की गई है। यह आदेश न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल ने मसाजिद कमेटी की तरफ से जिला जज के दो आदेशों की चुनौती अपीलों की सुनवाई करते हुए दिया है। इसके पहले सुनवाई शुरू होते ही अपीलार्थी की तरफ से पूरक हलफनामा दाखिल किया गया।
आदेश की प्रमाणित प्रति दाखिल की गई। अपील दाखिले का दोष समाप्त कर कोर्ट ने नियमित नंबर देने का आदेश दिया। वादी विपक्षी अधिवक्ता ने धारा 107 की अर्जी दाखिल की, जिसे पत्रावली पर रखा गया।
मस्जिद पक्ष के अधिवक्ता पुनीत गुप्ता ने सुप्रीम कोर्ट की नजीरों के हवाले से तर्क दिया कि अदालत अंतरिम आदेश से फाइनल रिलीफ नहीं दे सकती। प्रश्नगत मामले में तहखाने में पूजा की अनुमति देकर वस्तुत: सिविल वाद स्वीकार कर लिया है।
यह भी कहना था कि सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 152 के अंतर्निहित अधिकार का प्रयोग करते हुए अदालत मूल आदेश की प्रकृति में बदलाव का आदेश नहीं दे सकती। यह भी कहा जिला अदालत ने 17 जनवरी को अर्जी स्वीकार कर केवल एक राहत दी है। दूसरी मांग पर आदेश नहीं देना ही अनुतोष से इंकार माना जाएगा।
वरिष्ठ अधिवक्ता एसएफए नकवी ने कहा कि 17 जनवरी 2024 के मूल आदेश से जिला जज ने जिलाधिकारी वाराणसी को ज्ञानवापी का रिसीवर नियुक्त किया है, जिसमें विवादित भवन की सुरक्षा व देखरेख करने व किसी प्रकार का बदलाव न होने देने का निर्देश दिया है।
31 जनवरी 24 के आदेश से बैरिकेडिंग काट कर तहखाने में पूजा के लिए दरवाजा बनाने तथा ट्रस्ट को पुजारी के जरिए तहखाने में स्थित देवी देवताओं की पूजा करने की अनुमति देकर अपने ही आदेश का विरोधाभासी आदेश दिया है। यह कानून के खिलाफ है।
यह भी कहा कि तहखाने पर किसका अधिकार है यह साक्ष्यों के बाद सिविल वाद के निर्णय से तय होगा। जिला जज ने अंतरिम आदेश से अंतिम राहत देकर गलती की है। उन्होंने कुछ दस्तावेज़ दाखिल करने के लिए समय मांगा, जिसे स्वीकार करते हुए कोर्ट ने सुनवाई स्थगित कर दी।
उधर, मंदिर पक्ष की ओर से कहा गया कि जिला जज ने उनकी अर्जी पर रिसीवर नियुक्त किया। कुछ चूक की वजह से 17 जनवरी को पूजा की अनुमति नहीं दी। 31 जनवरी को यह आदेश पारित किया। आदेश पारित करने से पूर्व जिला जज ने दोनों पक्षों को सुना था।