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RBI ने ब्याज दरों में क्यों नहीं की कटौती, क्या ये तीन कारण हैं जिम्मेदार?

 रिजर्व बैंक (RBI) ने लगातार 11वीं बार नीतिगत ब्याज दरों (Repo Rate) में कोई बदलाव नहीं किया। इसका मतलब था कि आपकी मौजूदा EMI न तो बढ़ेगी और न ही घटेगी। एक्सपर्ट पहले ही अनुमान जता रहे थे कि आरबीआई इस बार भी ब्याज दरों में कटौती नहीं करेगा। आइए जानते हैं कि आरबीआई ने रेपो रेट में बदलाव क्यों नहीं किया।

महंगाई घटाने पर आरबीआई का फोकस

आरबीआई का सारा जोर फिलहाल महंगाई घटाने पर है। यह बात आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास कई बार स्पष्ट तौर पर बोल चुके हैं। सरकार ने आरबीआई को खुदरा महंगाई 2 फीसदी के घट-बढ़ के साथ 4 फीसदी पर रखने का जिम्मा दे रखा है। लेकिन, अक्टूबर में खुदरा महंगाई 6.21 फीसदी पहुंच गई यानी आरबीआई की सहनशक्ति के बाहर।

आरबीआई के लिए चिंता की सबसे बड़ी बात खाद्य मुद्रास्फीति है, जो पिछले कई महीनों से नीचे आने का नाम नहीं ले रही है। यही वजह है कि आरबीआई ने ब्याज दरों में कटौती से अभी के लिए परहेज किया।

डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना

डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया लगातार कमजोर हो रहा है। यह 84.75 के स्तर तक पहुंच गया था, जो इसका ऑल-टाइम लो है। आरबीआई रुपये को मजबूत बनाए रखने के लिए लगातार डॉलर बेच रहा है। इसके चलते भी आरबीआई ब्याज दरों में कटौती का जोखिम लेने से बच रहा है, क्योंकि इससे महंगाई के बेकाबू होने खतरा रहेगा। इसका ओवरऑल इकोनॉमी पर बुरा असर पड़ सकता है।

आरबीआई का कहना है कि अगर महंगाई बेकाबू हुई, तो घरेलू उद्योगों और निर्यात पर काफी बुरा असर पड़ेगा। इसका मतलब है कि आरबीआई ब्याज दरों में कटौती का फैसला लेने से पहले आर्थिक संकेतकों के स्थिर होने का भी इंतजार कर रहा है।

ट्रंप की धमकी और दूसरे भू-राजनीतिक तनाव

अमेरिका के नव-निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप लगातार टैरिफ बढ़ाने की धमकी दे रहे हैं। उन्होंने कहा है कि वह राष्ट्रपति बनते ही चीन मैक्सिको और कनाडा से आने वाली सभी वस्तुओं पर 10 प्रतिशत का अतिरिक्त शुल्क लगाएंगे। इसके एक बार फिर ट्रेड वॉर छिड़ने का खतरा पैदा हो गया है। यह फैक्टर भी महंगाई बढ़ा सकता है।साथ ही, आरबीआई की नजर रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध संकट पर भी है, जो पिछले और भी ज्यादा गहरा गया। यूक्रेन ने रूस पर अमेरिकी मिसाइल से हमला किया। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने जवाब में परमाणु हमले की चेतावनी दी। साथ ही, मध्य-पूर्व एशिया में भी जारी तनाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। ये संकट ग्लोबल सप्लाई के लिए चुनौती बन सकते हैं, जिनसे महंगाई और भी ज्यादा बेकाबू हो सकती है।