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कैसे ढह गई असद परिवार की 53 साल पुरानी सत्ता, सीरिया में तख्तापलट की पूरी कहानी!

सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद के रविवार को देश छोड़कर भाग जाने के साथ ही असद परिवार की करीब साढ़े पांच दशक से चली आ रही सत्ता का अंत हो गया। असद परिवार ने 53 साल तक सुन्नी बहुल सीरिया पर राज किया। मगर इस दौरान उनका इतिहास कत्लेआम और खून खराबे वाला रहा।

मौजूदा समय में सीरिया के अधिकांश भूभाग पर विद्रोही गुटों का कब्जा हो चुका है।बशर अल असद का ताल्लुक अलावी समुदाय से है। यह समुदाय सीरिया में अल्पसंख्यक है। सीरिया में अलावी समुदाय की आबादी महज 12 प्रतिशत है। मगर सत्ता इसी अलावी राजवंश के पास थी।

बशर अल असद के भागने के बाद नई सरकार बनाने की कवायद में विद्रोही जुट गए हैं। वैसे बशर के उदय को शुरू में आशावाद के साथ देखा गया था। कई सीरियाई और विदेशी पर्यवेक्षकों को उम्मीद थी कि वह सत्तावादी शासन द्वारा लंबे समय से दबाए गए सिस्टम में सुधार और खुलापन लाएंगे। हालांकि वे उम्मीदें जल्दी ही खत्म हो गईं।

बशर भी अपने पिता की तर्ज पर चल पड़े। यूं हुई थी 2011 में विद्रोह की शुरुआत : 2011 में लीबिया, ट्यूनीशिया और मिस्त्र में विद्रोह भड़का। इन तीनों ही देशों में सरकारें ढह गईं। इस घटनाक्रम का असर पड़ोसी सीरिया की जनता पर भी हुआ। असद सरकार से पीड़ित जनता ने भी सीरिया में कुछ ऐसा ही करने का सोचा। शुरुआत एक स्कूल से हुई। सीरिया के शहर दारा में एक स्कूल में कुछ छात्रों ने असद के खिलाफ नारे लिखे। नारा यह था कि ‘असद अब तुम्हारी बारी है’।

सरकार को जब इस घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने सेना का इस्तेमाल किया और स्कूल के छात्रों पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया। बच्चों को दीवार पर टांग दिया गया। करंट लगाया गया। उधर, सीरिया की जनता असद के भ्रष्टाचार और आर्थिक कुप्रबंधन से परेशान तो थी ही, बच्चों पर अत्याचार ने आग में घी का काम किया।देखते ही देखते पूरे सीरिया में विद्रोह फैल गया। जवाब में असद ने सेना को उतार दिया। लोगों पर सेना ने कहर बरपाना शुरू किया। पहले तो लोगों ने अपने बचाव में हथियारों को उठाया। बाद में यही हथियार विद्रोह के सबसे बड़े यंत्र बने। कुछ ही समय में सीरिया के अंदर तमाम सशस्त्र विद्रोह गुटों का उदय हुआ। देखते ही देखते विद्रोह एक पूर्ण गृहयुद्ध में बदल गया।

पिता ने तख्तापलट कर 1971 में हथियाई थी सत्ता

1971 में बशर अल असद के पिता हाफिज अल असद ने सीरिया में तख्तापलट कर सत्ता अपने हाथों में ले ली थी। उन्होंने सीरिया में एक नए युग की शुरुआत की थी। वैसे उस वक्त देश की पहचान राजनीतिक अस्थिरता से थी। उन्होंने साल 2000 तक देश पर राज किया। सत्ता संभालने से पहले हाफिज सीरिया के वायु सेना में कमांडर और रक्षा मंत्री भी रह चुके थे।हाफिज ने सत्ता पर काबिज होने के बाद सुन्नी समुदाय की अनदेखी की और अपने अलावी यानी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों और विश्वास पात्रों को ही उच्च पदों और सरकारी नौकरी में तवज्जो दी। इससे अन्य समुदायों में आक्रोश फैला।

2000 में बशर ने पिता से संभाली थी सत्ता

हाफिज सीरिया की सत्ता अपने सबसे बड़े बेटे बैसेल को सौंपना चाहते थे और नेतृत्व के लिए उसे तैयार भी किया था। मगर 1994 में एक सड़क हादसे में बैसेल की मौत हो गई। इसके बाद 2000 में हाफिज की मौत के बाद हाफिज के दूसरे बेटे नेत्र रोग विशेषज्ञ बशर अल असद ने देश की सत्ता संभाली। उस वक्त जनमत संग्रह में असद को 97 प्रतिशत वोट मिले थे यानी अपार जनसमर्थन। तब से अब तक 24 साल सीरिया की सत्ता पर बशर अल असद का कब्जा रहा।

पिता की तरह फूट डालो-राज करो की रणनीति अपनाई 

बशर अल असद ने अपने पिता की ही तर्ज पर विद्रोह दबाने की रणनीति पर काम किया। मगर उनकी यह रणनीति अब भरभराकर ढह गई। हाफिज की रणनीति सीरिया के जातीय, धार्मिक और राजनीतिक विभाजन का फायदा उठाते हुए फूट डालो और राज करो की रणनीति पर निर्भर थी।साथ ही विद्रोह दबाने पर भी। असद के पिता हाफिज ने साल 1982 में सीरिया के हामा शहर में मुस्लिम ब्रदरहुड के विद्रोह को कुचला था। इसमें करीब 40 हजार लोगों की जान गई थी। देखा जाए तो दमन की यह रणनीति असद को विरासत में मिली। वह कई मौकों पर इसका इस्तेमाल करने से चूके नहीं।

असद के चचेरे भाई का सीरिया की आर्थिकी पर रहा नियंत्रण

सीरिया सरकार के उच्च पदों पर असद के रिश्तेदारों की भरमार रही। असद के चेचेरे भाई रामी मखलौफ का सीरिया की 60 प्रतिशत अर्थव्यवस्था का नियंत्रण रहा। इन सभी लोगों ने सीरिया की आम जनता का दमन भी किया। बशर के भाई माहेर, उनकी बहन बुशरा और उनके पति आसिफ शौकत जैसे लोगों ने शासन की सुरक्षा और सैन्य तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।