अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह भारत के साथ 2030 तक व्यापार को 500 अरब डॉलर तक ले जाना चाहते हैं और दोनों देश इस साल एक मिनी ट्रेड डील भी कर सकते हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अमेरिका के साथ मिनी ट्रेड डील होने पर भारत के टेक्सटाइल, फुटवियर, इलेक्ट्रॉनिक्स, जेम्स व ज्वैलरी, इंजीनियरिंग गुड्स, फार्मा जैसे रोजगारपरक सेक्टर को बड़ी ताकत मिल सकती है। इससे भारतीय वस्तु निर्यात को मदद मिलने के साथ देश में रोजगार में भी बढ़ोतरी होगी।
जानकारों का कहना है कि अमेरिका सर्विस सेक्टर पर आधारित अर्थव्यवस्था है और वहां के जीडीपी में सर्विस सेक्टर का हिस्सेदारी 80 प्रतिशत से अधिक हो गई है और मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी कम होती जा रही है। ऐसे में गारमेंट, फुटवियर, फार्मा, इंजीनियरिंग गुड्स, जेम्स व ज्वैलरी जैसे आइटम का निर्माण अमेरिका में बड़े पैमाने पर शुरू होने की कोई संभावना नहीं है। इस प्रकार के आइटम के लिए अमेरिका मुख्य रूप से आयात पर निर्भर करता है। इसलिए भारत अमेरिका के साथ मिनी ट्रेड डील में रोजगारपरक सेक्टर पर फोकस करेगा।
चीन की कैसे बढ़ेगी मुश्किल
ट्रंप के पिछले कार्यकाल में जब अमेरिका के साथ मिनी ट्रेड डील को लेकर वार्ता शुरू हुई थी, तब भी भारत का ध्यान इन सेक्टर पर ही था। इसकी एक प्रमुख वजह यह भी है कि लेदर, गारमेंट्स, जेम्स व ज्वैलरी, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टर में अमेरिका में भारत के निर्यात को बढ़ाने की अभी असीम संभावना है। इन सभी सेक्टर में अमेरिका के बाजार में भारत के मुकाबले चीन 7-10 गुना तक अधिक निर्यात करता है। चीन अमेरिका को सालाना 450 अरब डॉलर का निर्यात करता है, जबकि भारत का सालाना कुल वस्तु निर्यात भी इससे कम है। वर्ष 2024 में अमेरिका में भारत का कुल वस्तु निर्यात 73.77 अरब डॉलर का रहा।
ट्रंप ने राष्ट्रपति का पद संभालते ही चीन की वस्तुओं पर अतिरिक्त 10 प्रतिशत का शुल्क लगाने की घोषणा कर दी। लेकिन भारत के साथ वह ट्रेड डील की बात कर रहा है। फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशंस का मानना है कि टेक्सटाइल, लेदर व अन्य फुटवियर, खिलौने, केमिकल्स व इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे सेक्टर में अगले एक साल में भारत अपने निर्यात को 25 अरब डॉलर तक बढ़ा सकता है।
कैसी होगी ट्रेड डील
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इंशिएटिव के संस्थापक अजय श्रीवास्तव का मानना है कि यह ट्रेड डील कोई मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) की तरह नहीं होगा। इसलिए सेक्टर को ध्यान में रखते ही भारत को डील आगे बढ़ाना चाहिए। वीकेसी फुटवियर के चेयरमैन नौशाद के मुताबिक गैर लेदर फुटवियर में अमेरिका में निर्यात की बड़ी संभावना है, लेकिन डील का फायदा तभी मिलेगा जब हमें कच्चे माल सस्ते दाम पर मिले और घरेलू फुटवियर निर्माता अपनी क्षमता का विस्तार करे।
अमेरिका के बाजार को ध्यान में रखते हुए ताइवान की फुटवियर कंपनियां भारत में आ रही हैं और पूरी तरह से एक्सपोर्ट यूनिट होने के नाते उन्हें कच्चे माल पर टैक्स नहीं देना पड़ता है। घरेलू फुटवियर उद्योग को भी ऐसी सुविधा मिलनी चाहिए।पिछले एक-दो सालों में अमेरिका के बाजार में गारमेंट निर्यात में भारत की हिस्सेदारी बढ़ी है। तब भी अमेरिका में होने वाले कुल गारमेंट आयात में भारत की हिस्सेदारी 5.8 प्रतिशत तक पहुंची है जो दो साल पहले तक 4.82 प्रतिशत थी।
जबकि चीन की हिस्सेदारी 22 प्रतिशत है। भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स व इलेक्टि्रक निर्यात अमेरिका के बाजार में वर्ष 2022 में सिर्फ छह अरब डॉलर का था जो वर्ष 2024 में 14.4 अरब डॉलर तक चला गया है लेकिन चीन अमेरिका को अब भी सालाना 120 अरब डालर से अधिक का इलेक्ट्रानिक्स व इलेक्टि्रक आइटम का निर्यात कर रहा है।