
इजराइल और हमास के बीच चल रहे दीर्घकालिक युद्ध के बीच इजराइल ने अचानक एक नया मोड़ लिया और ईरान पर मिसाईल अटैक किया। आरंभ में ईरान उत्तर देगा ऐसा उसने कहा, परंतु दुनिया में एक धारणा थी कि इजराइल सैन्य शक्ति के रूप में बहुत शक्तिशाली है अतः ईरान का प्रतिउत्तर केवल शाब्दिक रहेगा। परंतु दो या तीन दिन के बाद ईरान ने हजारों ड्रोन व मिसाईलों के माध्यम से इजराइल पर हमला किया और इजराइल का तथाकथित आयरन ड्रोन जिसे ब्रह्म कवच माना जाता था और यह भी माना जाता है कि दुनिया की कोई भी मिलाइल इसको भेद नहीं सकती, वह नष्ट हुआ। ईरान को यद्यपि जनहानि तो कम हुई पर सांपत्तिक हानि अधिक हुई। अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप ने यह सार्वजनिक रूप से कहा कि अमेरिका ईरान पर हमला नहीं करेगा, परंतु इजराइल के ऊपर सफल प्रति आक्रमण और खतरे को समझकर ट्रंप ने तत्काल पैंतरा बदला तथा ईरान और उसके परमाणु केंद्रों पर बंकर मिसाइल से हमला किया। जब आरंभ में इजराइल ने ईरान पर हमला किया और यह समाचार आये थे कि ईरान के परमाणु ठिकानों को उनकी मिसाईलें नष्ट नहीं कर सकी क्योंकि वह बंकरों के अंदर है। परंतु अमेरिकी हमले के बाद ईरान के कई परमाणु ठिकाने नष्ट हुए या क्षतिग्रस्त हुये और ईरान के सेना मंत्री ने इसे स्वीकार किया। हालाँकि यह भी कहा कि जो संवर्धन यूरेनियम परमाणु बम बनाने में इस्तेमाल होता है उसे ईरान ने पहले ही सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दिया था, इसलिये वह नष्ट होने से बच गया। यह भी बताया गया कि इस परमाणु बम का ईंधन 270 फुट गहरे बंकरों में रखा गया है और अमेरिकी मिसाईल का वहाँ तक पहुँचना संभव नहीं है। अमेरिकी हमले के बाद इस दुनिया को खतरा लग रहा था कि अब विश्व युद्ध की कगार पर दुनिया है और ईरान अमेरिका पर हमला करेगा। परंतु ईरान ने सीधे अमेरिका पर तो हमला नहीं किया बल्कि अमेरिका के दूसरे देशों के समुद्री द्वीपों पर बनाये गये एक सामरिक केंद्र कतर पर हमला किया। हालाँकि वह कोई प्रभावी सिद्ध नहीं हुआ। अमेरिका ने यह भी कहा कि कोई क्षति नहीं हुई है और कहा कि अब ईरान परमाणु संधि वार्ता को अंतिम रूप दे वर्ना पुनः हमले होंगे।
इस घटनाक्रम को दुनिया का एक हिस्सा इस रूप में देख रहा था कि शायद अब ईरान अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की निगरानी में परमाणु केंद्रों की जांच के लिये तैयार हो जायेगा और अमेरिका का जो लक्ष्य है कि ईरान परमाणु अस्त्र न बना सके, वह हासिल हो जायेगा। परंतु 2 जुलाई 25 को ईरान के राष्ट्रपति ने जिस निर्णय की घोषणा की है कि ईरान, अमेरिका व अन्य देशों के बीच परमाणु संधि से हट गया है याने अब पहले जो समस्या संधि के पालन की थी,अब अमेरिकी हमले के साथ ईरान संधि से ही हट गया। रूस ने ईरान का खुलकर समर्थन किया है और ईरान को आवश्यक हथियार, मिसाईलें आदि देने की घोषणा की है। यहाँ तक की रूसी सिक्युरिटी कौंसिल के डिप्टी चेयरमैन मेदवेदेव ने कहा कि रूस वारहेड देगा और ईरान का एटमी प्रोग्राम तेजी से बढ़ेगा। रूस के समर्थन के बाद ही ईरान ने परमाणु संधि से बाहर हटने का ऐलान किया है। हालांकि चीन ने ईरान की कोई विशेष मदद नहीं की, शिवाय राजनैतिक समर्थन के। शायद चीन, ईरान, रूस की निकटता से भी सावधान है। क्योंकि रूस व चीन के बीच भी सीमा विवाद है। वैसे भी दुनिया में कोई किसी का स्थायी साथी नहीं है, वैसे चीन, अमेरिका, इजराइल के खिलाफ है पर गाजा में इजराइल ने जो पुनर्निर्माण का काम शुरू किया है, उसमें चीनी कंपनी को ठेका दिया है तथा 6000 चीनी कर्मचारी वहाँ काम कर रहे हैं, व्यापार में इजरायल व चीन साथ हैं। यूक्रेन और रूस के बीच में जो लंबा युद्ध चल रहा है उसमें भी रूस यूरोप और अमेरिका के खिलाफ ही एक प्रकार से अप्रत्यक्ष युद्ध लड़ रहा है। अमेरिका युद्ध बंदी के नाम पर ब्लैकमेलिंग करना चाहता है और अपने आर्थिक, सामरिक हितों को और अपनी सैन्य श्रेष्ठता को कायम रखना चाहता है। पिछले लगभग दो दशकों से अमेरिका ने सीधे तौर पर किसी युद्ध में काम नहीं किया था परंतु यह इतने समय के बाद कि घटना है कि जब अमेरिका सीधा युद्ध में कूदा है। दुनिया में हथियार संपन्न देशों की दो धुरी बन रही है। एक में चीन, रूस और ईरान हैं और दूसरे में अमेरिका, इजराइल, यूक्रेन और यूरोप के फ्रांस, जर्मनी आदि देश शामिल हैं। इसी बीच में रूस ने पुनः एक बार यूक्रेन पर भारी हमला बोला और इससे बड़ी संख्या में जन-धन की हानि हुई है, यूक्रेन ने भी रूस के काफी अंदर जाकर परमाणु ठिकानों पर हमला किया।
अब अगर ईरान परमाणु हथियार बनाता है तो यह अमेरिका, इजराइल और यूरोप के देशों के लिये एक बड़ा खतरा है। ईरान ने इजराइल पर हमले में मिसाईल का इस्तेमाल किया था वह 8600 प्रति किमी की रफ्तार से चलने वाली थी। जिसमें 1500 किग्रा वारहेड होता है और 1500 किमी की दूरी तक वह मार कर सकती है। यह भी खबर आई थी कि ईरान ने जो हमला इजराइल पर किया था उसके बाद, उसके पास वारहेड की कमी हुई। याने संचित बारूद का भंडार घट गया, परंतु अब रूस उसकी क्षतिपूर्ति के लिये सामने आया है और इससे ईरान की सामरिक शक्ति पुनः खड़ी हो सकती। दूसरा एक आर्थिक पक्ष भी है कि 33 किमी होर्मुज समुद्री गलियारा, यह युद्ध का क्षेत्र बनेगा। क्योंकि दुनिया का कोई 26 प्रतिशत कच्चा तेल इसी गलियारे से जाता है। अमेरिका की भी बड़ी सप्लाई इस गलियारे से होती है। अगर ईरान इस गलियारे को युद्ध का क्षेत्र बनाता है तो समूची दुनिया में तेल की बड़ी कमी पैदा होगी और तेल के दाम बढ़ेंगे। इसका सीधा प्रभाव अमेरिकी अर्थव्यवस्था पर भी होगा।
मैं कई बार पूर्व में भी लिख चुका हूँ कि संयुक्त राष्ट्र संघ की कोई प्रभावी भूमिका नहीं बची। इस्लामिक देश भी कई कारणों से बंटे हुए हैं। वैसे तो अमेरिका हमले को रूस, चीन, पाक, सऊदी अरब और ओमान ने अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बताकर निंदा की है। परंतु यह निंदा फिलहाल शिया और सुन्नी के मध्य विभाजित है। पाकिस्तान जो अमेरिकी मदद के समर्थन पर जिंदा है। वह वैसे भी अपनी जीर्ण क्षीण अर्थव्यवस्था और आंतरिक जनविद्रोह के चलते कुछ मदद करने की स्थिति में नहीं है। उसने चीन को बन रोड वन बेल्ट के लिये अपना भूभाग उपलब्ध कराया है परंतु चीन का यह स्वप्नदर्शी योजना अभी केवल अमूर्तरूप में है। सऊदी अरब आदि देशों के मुखिया भी स्वतः युद्ध के लड़ने के पक्ष में नहीं है। चीन की जमीनी दूरी ईरान से इतनी अधिक है कि चीन भी कोई वास्तविक मदद पहुँचाने की स्थिति में नहीं है और यह युद्ध होता है तो रूस व चीन की इसमें भौतिक व वास्तविक भागीदारी नगण्य होगी, चीन की तो बिलकुल ही प्रतीकात्मक।
जहाँ एक तरफ दुनिया को इन समस्याओं का व्यावहारिक हल खोजना होगा वहीं युद्ध व हथियारों की वास्तविकताओं को भी समझना होगा। एक बड़ी समस्या यह है कि इस समय दुनिया और वैश्विक मीडिया भी एलगोरिदम का शिकार है और यह समस्या निरंतर बढ़ रही है। राजनीति व मीडिया का एक धड़ा इस्लामिक फोबिया से ग्रस्त है और उसके विचार व नीतियाँ भी उसी से प्रभावित है। इसके कारण न केवल मानसिक,विभाजन होता है बल्कि युद्ध के हालात बनते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप भी इससे प्रभावित हैं और हावर्ड विश्वविद्यालय की शैक्षणिक आजादी खत्म कर अपने वैचारिक पैमाने पर लाने के लिये जिस प्रकार के कदम उन्होंने उठाये हैं वह इसी बात का प्रमाण है। हाल ही में उनकी डेमोक्रेटिक पार्टी के न्यूयार्क मेयर के प्रत्याशी श्री ममदानी के चयन के बाद उन्होंने जो बयान दिया कि यदि ममदानी नहीं सुधरेंगे तो वे न्यूयार्क म्युनिसपल कारपोरेशन की सरकारी मदद बंद कर देंगे, यह भी इसी का प्रमाण है। ऐसा लगता है कि श्री ट्रंप दो युद्ध लड़ रहे हैं या लड़ने की तैयारी में हैं। एक वैश्विक जमीनी युद्ध और दूसरा अपने विचारों के बंद घेरे का युद्ध। इस दूसरे युद्ध के लिये उन्हें बाहर वालों से कम अपनों से अधिक लड़ना पड़ रहा है। उन्हें अपने देश, अपनी पार्टी और अपने देश की संस्थाओं से लड़ना पड़ रहा है। स्वाभाविक है कि इससे उनके प्रति अमेरिकी मानस में अभी तो विरोध बढ़ रहा है हालाँकि भविष्य में यह क्या स्वरूप लेगा, क्या अमेरिकी मानस ट्रंप के विचारों के साथ खड़ा रहेगा या अपनी वैचारिक स्वतंत्रता जो असीमित रही है, पर ही चलेगा, ये प्रश्न भविष्य के गर्भ में है।
परंतु युद्ध की इन संभावनाओं के चलते हथियारों और युद्ध की तैयारी पर जिस प्रकार खर्च बढ़ रहा है वह समूची दुनिया के विकास के लिये चिंता का विषय होना चाहिये। वर्ष 2024 में समूची दुनिया में 235 लाख करोड़ रुपया देशों के रक्षा बजट में रखा गया था और इस वर्ष प्राप्त सूचनाओं के अनुसार इसमें 20 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना है। परमाणु हथियारों पर ही लगभग 9 लाख करोड़ रुपया पिछले वर्ष खर्च हुए थे, अब और अधिक बढ़ेंगे। स्थिति यह है कि जो महाविनाशक हथियार हैं उन पर दुनिया में हर क्षण लगभग 3 लाख करोड़ रुपया खर्च हो रहे हैं। जितनी राशि पिछले वर्ष परमाणु हथियारों पर खर्च हुई है, उतनी राशि से 68 करोड़ लोगों को भोजन मिल सकता था। ऐसी नीतियों को दुनिया कब तक चलायेगी, कब तक सहेगी यह देखना है। क्या इसके विरुद्ध दुनिया खड़ी होगी या फिर दुनिया किसी एक परमाणु शक्तिशाली देश की, उस देश के एक शीर्ष शक्ति वाले व्यक्ति की गुलाम बन जायेगी। वैसे भी दुनिया के लगभग 150 देश आज विदेशी कर्जों के जाल में हैं। गरीब देशों या कर्जदार देशों पर लगभग 94 लाख करोड़ रुपया कर्ज का बकाया है और इसमें सबसे बड़ा साहूकार चीन है। इजराइल व हमास के युद्ध में और रूस व यूक्रेन के युद्ध में जो तबाही के मंजर सामने आये हैं वे कब और कैसे पूरे होंगे कहना कठिन है। संयुक्त राष्ट्र संघ की एजेंसी के अनुसार 15 जनवरी 2025 तक अकेले गाजा पटटी में 46710 लोग मारे गये हैं। याने हर पचास में से एक व्यक्ति मारा गया और हर 20 में से एक व्यक्ति घायल हुआ है। गाजा पटटी में ही अकेले 18000 निर्दोष बच्चे मारे गये हैं। रूस व यूक्रेन के युद्ध में भी हजारों मौतें हुई हैं और उसके साथ-साथ यूक्रेन के 69 लाख लोग देश छोड़ने को लाचार हुए। हथियार और युद्ध मानवता को मार रहे हैं। हथियार से, भूख से, विस्थापन से और युद्धजनित बीमारियों से। अमेरिकी समाचार पत्रों में गाजा में हाथों में कटोरे लिये भूखे नागरिकों व बच्चों के चित्र छप रहे हैं और उन्हें देखकर किसी भी इंसान के मन का भावविह्वल होना स्वाभाविक है, दुनिया में लगभग 473 मिलियन बच्चे युद्ध के कारण स्कूल नहीं जा पा रहे हैं।
मैं फिर एक बार कहूँगा कि दुनिया के इन मूद्दों और मानवता के सामने खड़े संकटों से बचने के दो ही रास्ते हैं, एक गाँधी और दूसरा डॉ.लोहिया के सपनों की विश्व संसद। देखें दुनिया किसे चुनती है, हथियार और युद्ध या गाँधी और लोहिया?
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर जाने माने समाजवादी चिन्तक और स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं।श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के भी संस्थापक अध्यक्ष हैं।