अवैध धर्मांतरण का आरोपी छांगुर पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मिलकर जमीनों पर कब्जे की साजिश करता था। मामले का खुलासा एटीएस की जांच में हुआ है। वहीं, जिलाधिकारी की रिपोर्ट से गड़बड़ियों की पुष्टि हुई है।
अवैध धर्मांतरण का मुख्य आरोपी छांगुर उर्फ जमालुद्दीन सिर्फ धार्मिक गतिविधियों तक सीमित नहीं था। वह सत्ता और सिस्टम के गठजोड़ से पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की जेब भरकर जमीनों पर कब्जे की बड़ी साजिश का भी सूत्रधार था। एटीएस की जांच में सामने आया है कि बलरामपुर में छांगुर और एक पूर्व विधायक ने राजस्व विभाग के कुछ कर्मचारियों की मिलीभगत से सरकारी व विवादित जमीनें हड़पी हैं। अब तहसील स्तर के उन कर्मचारियों की भूमिका संदेह के घेरे में है, जो दस्तावेज में हेरफेर कर छांगुर और उसके नेटवर्क को फायदा पहुंचाते थे। इस काम में सहयोग करने वाले तबके थानेदार और चौकी प्रभारी तक ने पूरा खेल किया।
एटीएस ने जिन दस्तावेज की जांच शुरू की है, उनमें विवादित जमीनों की रजिस्ट्री, खसरा-खतौनी में बदलाव के कागजात, संदिग्ध ट्रस्टों के बैंकिंग लेनदेन और योजनाओं के लाभार्थियों की सूची शामिल है। अधिकारियों का मानना है कि यही वह रास्ता था, जिससे छांगुर और पूर्व विधायक ने अपनी जड़ें मजबूत कीं। नेपाल सीमा से सटे संवेदनशील क्षेत्र में धर्मांतरण का विस्तार किया।
ऐसा नहीं कि इस सब से पुलिस अनजान थी, लेकिन सिस्टम के गठजोड़ से छांगुर का साम्राज्य बढ़ता गया। बलरामपुर से उपलब्ध रिकॉर्ड गवाही दे रहे हैं कि किस तरह सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर धर्मांतरण की आड़ में जमीनों पर कब्जा किया गया। छांगुर को हर स्तर से संरक्षण दिया गया।
डीएम की रिपोर्ट ने पुलिस के साथ राजस्व विभाग की भी खोली थी पोल
साल 2024 में बलरामपुर के तत्कालीन जिलाधिकारी अरविंद सिंह ने शासन को भेजी रिपोर्ट में पुलिस के साथ ही तहसील प्रशासन की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए थे। उतरौला, गैड़ास बुजुर्ग और सादुल्लानगर क्षेत्र में कई जमीनों के मामले जानबूझकर लटकाए गए या कमजोर जांच की गई, जिससे कि एक पक्ष विशेष को फायदा पहुंचे। रिपोर्ट में तत्कालीन थानाध्यक्षों के साथ ही राजस्व निरीक्षकों और तत्कालीन नायब तहसीलदार की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई थी। अब छांगुर मामले की जांच कर रही एटीएस भी डीएम की रिपोर्ट की पुष्टि करती नजर आ रही है।
गिरोह की तरह काम करता था नेटवर्क
इस खेल में सिर्फ छांगुर ही नहीं था। उसका नेटवर्क एक संगठित गिरोह की तरह काम करता था, जिसमें तहसील के कर्मचारी, स्थानीय राजस्व निरीक्षक, पुलिस और कुछ राजनीतिक चेहरे शामिल थे। सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों की सूची से लेकर ट्रस्टों की आड़ में जमीन खरीद-फरोख्त तक सब कुछ योजनाबद्ध ढंग से अंजाम दिया गया।
एटीएस ने इनपर भी शुरू किया काम
पूछताछ की तैयारी, दो अधिकारियों की संपत्ति भी जांच के दायरे में
विवादित जमीनों की रजिस्ट्री व दाखिल-खारिज के दस्तावेज
संदिग्ध ट्रस्टों के रजिस्ट्रेशन व बैंकिंग रिकॉर्ड
सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों की सूची
पुराने शिकायतपत्र व बयान-धर्मांतरण मामले की केस डायरी
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