
जगदलपुर 17 अक्टूबर।छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग में नक्सल उन्मूलन की दिशा में एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज की गई है। राज्य शासन की ‘पूना मारगेम – पुनर्वास से पुनर्जीवन’ पहल के तहत दण्डकारण्य क्षेत्र के 210 माओवादी कैडरों ने आत्मसमर्पण कर समाज की मुख्यधारा में लौटने का निर्णय लिया है।
यह घटना न केवल विश्वास और सुरक्षा की दिशा में बड़ी सफलता मानी जा रही है, बल्कि हिंसा से संवाद और विकास की ओर बस्तर के बदलते माहौल का भी प्रतीक है।
इतिहास में दर्ज हुआ सबसे बड़ा आत्मसमर्पण
इस आत्मसमर्पण में एक सेंट्रल कमेटी सदस्य, चार डीकेएसजेडसी सदस्य, 21 डिविजनल कमेटी सदस्य सहित कई वरिष्ठ माओवादी शामिल हैं। उन्होंने कुल 153 आधुनिक हथियार – जिनमें AK-47, SLR, INSAS राइफल और LMG शामिल हैं – पुलिस को सौंपे।यह केवल हथियारों का समर्पण नहीं, बल्कि हिंसा के युग के अंत और शांति के नए दौर की शुरुआत का प्रतीक है।
मुख्यधारा में लौटने वाले प्रमुख नाम
आत्मसमर्पण करने वालों में सीसीएम रूपेश उर्फ सतीश, भास्कर उर्फ राजमन मांडवी, रनीता, राजू सलाम, धन्नू वेत्ती उर्फ संतू, और रतन एलम जैसे कई वांछित और इनामी कैडर शामिल हैं।
इन सभी ने संविधान पर आस्था व्यक्त करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था में सम्मानजनक जीवन जीने का संकल्प लिया।
आत्मसमर्पण कार्यक्रम का आयोजन
यह ऐतिहासिक कार्यक्रम जगदलपुर पुलिस लाइन परिसर में आयोजित किया गया, जहाँ आत्मसमर्पित कैडरों का स्वागत मांझी-चालकी परंपरा के तहत किया गया। उन्हें संविधान की प्रति और शांति के प्रतीक लाल गुलाब प्रदान कर सम्मानित किया गया।
डीजीपी अरुण देव गौतम ने कहा कि “पूना मारगेम केवल नक्सलवाद से दूरी का कार्यक्रम नहीं, बल्कि जीवन को नई दिशा देने का अवसर है। जो आज लौटे हैं, वे बस्तर में शांति और विकास के दूत बनेंगे।”
इस अवसर पर एडीजी विवेकानंद सिन्हा, कमिश्नर डोमन सिंह, आईजी सुंदरराज पी., कलेक्टर हरिस एस. सहित बस्तर संभाग के सभी वरिष्ठ अधिकारी और सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधि मौजूद थे।
पुनर्वास और नए जीवन की ओर कदम
राज्य शासन ने आत्मसमर्पित माओवादियों को पुनर्वास सहायता राशि, आवास और आजीविका योजनाओं से जोड़ा है। उन्हें कौशल विकास, स्वरोजगार और शिक्षा के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रयास जारी हैं।
मांझी-चालकी प्रतिनिधियों ने कहा कि बस्तर की परंपरा सदैव प्रेम, सहअस्तित्व और शांति का संदेश देती रही है — और अब लौटे साथी इस परंपरा को नई ऊर्जा देंगे।
कार्यक्रम का समापन संविधान की शपथ और ‘वंदे मातरम्’ की गूंज के साथ हुआ।यह क्षण केवल 210 माओवादी कैडरों के आत्मसमर्पण का नहीं, बल्कि बस्तर में विश्वास, विकास और शांति के नए युग की शुरुआत का प्रतीक बन गया।
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