Thursday , October 30 2025

आदिवासी युवाओं ने जगतसुख पीक पर खोला नया मार्ग, नाम रखा ‘विष्णु देव रूट’

जशपुर/रायपुर, 30 अक्टूबर।छत्तीसगढ़ के जशपुर ज़िले के आदिवासी युवाओं ने भारतीय पर्वतारोहण इतिहास में नया अध्याय जोड़ दिया है। हिमाचल प्रदेश की दूहंगन घाटी (मनाली) में स्थित 5,340 मीटर ऊँची जगतसुख पीक पर इन युवाओं ने एक नया आल्पाइन रूट खोला है, जिसे छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की पहल के सम्मान में “विष्णु देव रूट” नाम दिया गया है।

     यह दल केवल 12 घंटे में बेस कैंप से शिखर तक पहुँचा, वह भी आल्पाइन शैली में — जो पर्वतारोहण की सबसे कठिन और आत्मनिर्भर तकनीक मानी जाती है।

ऐतिहासिक अभियान, जशपुर प्रशासन की पहल

   यह उपलब्धि सितंबर 2025 में आयोजित विशेष अभियान के दौरान हासिल हुई, जिसे जशपुर प्रशासन ने पहाड़ी बकरा एडवेंचर के सहयोग से आयोजित किया। अभियान को हीरा ग्रुप सहित कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थानों का सहयोग मिला।

     दल के पाँचों सदस्य पहली बार हिमालय की ऊँचाइयों पर पहुँचे थे। सभी ने “देशदेखा क्लाइम्बिंग एरिया”, जशपुर में प्रशिक्षण लिया — यह भारत का पहला प्राकृतिक एडवेंचर प्रशिक्षण क्षेत्र है, जिसे जशपुर प्रशासन ने विकसित किया है।

विशेषज्ञों का मार्गदर्शन और प्रशिक्षण

     इस प्रशिक्षण कार्यक्रम का नेतृत्व बिलासपुर के पर्वतारोही स्वप्निल राचेलवार, न्यूयॉर्क (USA) के रॉक क्लाइम्बिंग कोच डेव गेट्स, और रनर्स XP के निदेशक सागर दुबे ने किया।दो महीने की कठोर तैयारी और बारह दिनों के अभ्यास पर्वतारोहण के बाद यह टीम जगतसुख की चुनौतीपूर्ण चोटी तक पहुँची।

अभियान प्रमुख स्वप्निल राचेलवार ने बताया —

“यह मार्ग तकनीकी रूप से अत्यंत कठिन था। मौसम खराब था, दृश्यता कम थी, और ग्लेशियरों की दरारें लगातार बाधा बन रहीं थीं। इसके बावजूद टीम ने बिना किसी सपोर्ट स्टाफ के पूरी तरह आत्मनिर्भर रहते हुए चढ़ाई पूरी की — यही असली आल्पाइन शैली है।”

 अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली सराहना

स्पेन के प्रसिद्ध पर्वतारोही टोती वेल्स, जो इस अभियान की तकनीकी कोर टीम का हिस्सा थे, ने कहा — “इन युवाओं ने, जिन्होंने पहले कभी बर्फ नहीं देखी थी, हिमालय में नया मार्ग खोला है। यह दर्शाता है कि सही प्रशिक्षण और अवसर मिलने पर ये पर्वतारोही विश्वस्तर पर प्रदर्शन कर सकते हैं।”

नई चोटियाँ और नए मार्ग

“विष्णु देव रूट” के साथ-साथ टीम ने दूहंगन घाटी में सात नई क्लाइम्बिंग रूट्स भी खोले।
इनमें सबसे उल्लेखनीय है एक अनक्लाइम्ब्ड (पहले कभी न चढ़ी गई) 5,350 मीटर ऊँची चोटी ‘छुपा रुस्तम पीक’ की सफल चढ़ाई।
इस पर बनाए गए मार्ग को ‘कुर्कुमा (Curcuma) नाम दिया गया — जो हल्दी का वैज्ञानिक नाम है और भारतीय परंपरा में सहनशक्ति व उपचार का प्रतीक है।

 गाँवों से वैश्विक ऊँचाइयों तक

यह अभियान इस सोच का प्रतीक है कि यदि दिशा, अवसर और संसाधन मिलें तो भारत के गाँवों और आदिवासी इलाकों से भी विश्वस्तरीय पर्वतारोही तैयार हो सकते हैं।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने कहा —“भारत का भविष्य गाँवों से निकलकर दुनिया की ऊँचाइयों तक पहुँच सकता है।”

 टीम और सहयोगी संस्थान

अभियान का नेतृत्व स्वप्निल राचेलवार ने किया, सह-नेता राहुल ओगरा और हर्ष ठाकुर रहे।जशपुर टीम के सदस्य थे — रवि सिंह, तेजल भगत, रुसनाथ भगत, सचिन कुजुर और प्रतीक नायक।प्रशासनिक सहयोग डॉ. रवि मित्तल (IAS), रोहित व्यास (IAS), शशि कुमार (IFS) और अभिषेक कुमार (IAS) से मिला।
तकनीकी सहयोग डेव गेट्स, अर्नेस्ट वेंटुरिनी, मार्टा पेड्रो (स्पेन), केल्सी (USA) और ओयविंड वाई. बो (नॉर्वे) ने दिया।
पूरे अभियान का डॉक्यूमेंटेशन ईशान गुप्ता की कॉफी मीडिया टीम ने किया।