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छत्तीसगढ़ में आवास व कल्याण योजनाओं में कैग ने वित्तीय अनियमितताओं को किया उजागर

रायपुर 17 दिसम्बर।भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने छत्तीसगढ़ में प्रमुख आवास एवं श्रमिक कल्याण योजनाओं के क्रियान्वयन में गंभीर कमियों को उजागर किया है।

  कैग ने अपनी ताज़ा रिपोर्ट में अपात्र लाभार्थियों को लाभ, योजनागत धनराशि के लंबे समय तक अवरुद्ध रहने, कमजोर निगरानी तंत्र और टाली जा सकने वाली वित्तीय हानियों को रेखांकित किया है। ये निष्कर्ष मार्च 2023 को समाप्त अवधि के लिए प्रदर्शन एवं अनुपालन ऑडिट (सिविल) पर कैग की रिपोर्ट में दर्ज हैं, जिसे संविधान के अनुच्छेद 151 के तहत आज 17 दिसम्बर को छत्तीसगढ़ विधानसभा में प्रस्तुत किया गया।

  रिपोर्ट संख्या 06, वर्ष 2025, में सामान्य, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों से संबंधित विभागों के व्यय का समग्र आकलन किया गया है। इसमें प्रधानमंत्री आवास योजना–शहरी के क्रियान्वयन पर प्रदर्शन ऑडिट, श्रम विभाग द्वारा संचालित कल्याण योजनाओं पर अनुपालन ऑडिट, छत्तीसगढ़ अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी के माध्यम से सोलर पंप स्थापना पर एक विस्तृत ऑडिट अनुच्छेद तथा लोक निर्माण विभाग से संबंधित अनुपालन ऑडिट शामिल है।

    प्रधानमंत्री आवास योजना–शहरी, जिसे भारत सरकार ने जून 2015 में शुरू किया और जिसे आवासन एवं शहरी कार्य मंत्रालय द्वारा लागू किया जा रहा है, का उद्देश्य शहरी क्षेत्रों में झुग्गीवासियों तथा आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग, निम्न आय वर्ग और मध्यम आय वर्ग के लोगों को किफायती आवास उपलब्ध कराना है। यह योजना चार घटकों—साझेदारी में किफायती आवास, लाभार्थी-नेतृत्वित निर्माण, स्थल पर झुग्गी पुनर्विकास और क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना—के माध्यम से लागू की जा रही है।

   कैग की जांच में बिलासपुर, रायपुर और कोरबा नगर निगम तथा प्रेमनगर नगर पंचायत सहित चार नगरीय निकायों में यह पाया गया कि ₹3 लाख से अधिक वार्षिक आय वाले 71 अपात्र लाभार्थियों को लाभार्थी-नेतृत्वित निर्माण और साझेदारी में किफायती आवास घटकों के अंतर्गत मकान आवंटित किए गए। इसके अलावा, 250 लाभार्थियों को ₹4.05 करोड़ की सहायता राशि भूमि स्वामित्व सुनिश्चित किए बिना जारी कर दी गई।

   ऑडिट में यह भी सामने आया कि प्रधानमंत्री आवास योजना–शहरी और प्रधानमंत्री आवास योजना–ग्रामीण के प्रबंधन सूचना तंत्र आपस में जुड़े न होने के कारण 99 लाभार्थियों ने दोनों योजनाओं का लाभ उठाया। इसके अतिरिक्त, 35 ऐसे लाभार्थी भी पाए गए जिन्होंने पहले एकीकृत आवास एवं झुग्गी विकास कार्यक्रम के तहत लाभ लेने के बावजूद योजना के लाभार्थी-नेतृत्वित निर्माण घटक के अंतर्गत पुनः सहायता प्राप्त की।

  साझेदारी में किफायती आवास परियोजनाओं के तहत आवास इकाइयों के निर्माण में देरी के कारण ₹230.05 करोड़ की योजनागत राशि अवरुद्ध रही। झुग्गीवासियों से वसूली योग्य राशि में से नगरीय निकाय केवल ₹22.13 करोड़ ही वसूल सके, जबकि मार्च 2025 तक ₹17.23 करोड़ की राशि वसूल नहीं की जा सकी। लाभार्थी-नेतृत्वित निर्माण के तहत स्वीकृत 2.77 लाख मकानों में से 66,383 मकान समर्पित या निरस्त कर दिए गए। शेष 2.11 लाख मकानों में से अप्रैल 2025 तक केवल 1.84 लाख मकान ही पूर्ण हो सके।

   क्रेडिट लिंक्ड सब्सिडी योजना के अंतर्गत लाभार्थियों द्वारा प्रस्तुत 2.49 लाख सब्सिडी दावों में से केवल 37,374 दावों को स्वीकृति दी गई और 2016–17 से 2022–23 के दौरान ₹820.93 करोड़ की सब्सिडी जारी की गई। कैग ने 29 मामलों में दोहरी सब्सिडी प्राप्त करने की भी पुष्टि की है।

  महिला सशक्तिकरण पर विशेष जोर के बावजूद, 2016–17 से 2023–24 के बीच केवल 50 प्रतिशत मकान ही महिला लाभार्थियों के नाम पर स्वीकृत किए गए, जो योजना के उद्देश्यों से कम है। निगरानी व्यवस्था में भी गंभीर खामियां पाई गईं, जिनमें गलत जियो-टैगिंग, अन्य लाभार्थियों के मकानों की तस्वीरों का उपयोग और सामाजिक ऑडिट में देरी शामिल है।

  श्रम विभाग की कल्याण योजनाओं के अनुपालन ऑडिट में यह पाया गया कि असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए आवंटित ₹329.41 करोड़ में से केवल 64 प्रतिशत राशि का उपयोग हुआ। संगठित क्षेत्र के लिए उपलब्ध ₹44.86 करोड़ में से मात्र ₹21.27 करोड़ ही खर्च किए गए। वहीं, भारत सरकार के ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 76.33 लाख श्रमिकों के मुकाबले राज्य पोर्टल पर केवल 22 प्रतिशत श्रमिक ही दर्ज पाए गए।