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वनाधिकार के दावे और भूमि की मान्यता देने में छत्तीसगढ़ का दूसरा स्थान

रायपुर 12 अगस्त।अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य परंपरागत वन निवासियों को उनके द्वारा काबिज वन भूमि की मान्यता देने के मामले में छत्तीसगढ़ पूरे देश में दूसरा राज्य बन गया है।

राज्य में 4 लाख से अधिक व्यक्तिगत वन अधिकार पत्रकों का वितरण कर 3 लाख 42 हजार हेक्टेयर वनभूमि पर मान्यता प्रदान की जा चुकी है वहीं सामुदायिक वनाधिकारों के प्रकरणों में 24 हजार से अधिक प्रकरणों में सामुदायिक वनाधिकार पत्रकों का वितरण करते हुए 9 लाख 50 हजार हेक्टेयर भूमि पर सामुदायिक अधिकारों की मान्यता दी गई है।

केन्द्रीय जनजातीय कार्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वनाधिकार पत्रकों के वितरण के मामले ओडिशा और वन भूमि की मान्यता प्रदान करने के मामले में महाराष्ट्र राज्य पहले नंबर पर है जबकि इन दोनो ही मामलें में छत्तीसगढ़ राज्य का पूरे देश में दूसरा स्थान है।

गौरतलब है कि राज्य की कुल जनसंख्या का 32 प्रतिशत से अधिक संख्या जनजातियों की है। प्रदेश में निवासरत अनुसूचित जनजातियां जल, जंगल, जमीन से नैसर्गिक तथा परंपरागत रूप से सदियों से जुड़ी रही है और अपनी सांस्कृतिक पहचान के रूप में इनकी रक्षा और संरक्षण भी करती रहीं है। परंपरागत रूप से अपनी आजीविका और निवास के रूप में वन भूमि पर पीढ़ियों से काबिज है। ऐसे स्थानीय समुदायों को काबिज भूमि पर मान्यता देने के लिए और उनके अधिकारों को अभिलिखित करने के उद्देश्य से वन अधिकार अधिनियम-2006 लागू किया गया है।