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क्या अब प्रतिभा पलायन पर अंकुश लगेगा ? – डा.संजय शुक्ला

हाल ही में अमेरिकी संसद की प्रतिनिधि सभा द्वारा एच-1बी वीजा से संबंधित एक नया विधेयक पेश किया गया है,जिसमें यह प्रावधान किया गया है कि यह वीजा उन गैर अमेरिकियों को मिलेगा जिन्हें अमेरिकी अथवा विदेशी कंपनियों से अमेरिका में न्यूनतम 1 लाख 30 हजार डालर यानि लगभग 88 लाख रूपये के पैकेज (वेतन) प्राप्त होते हों।अब तक यह वीजा न्यूनतम 60 हजार डालर यानि 40.8 लाख रूपए प्राप्त करने वालों को देने का प्रावधान है।इस विधेयक से सर्वाधिक असर अमेरिका में बसे भारतीय इंजीनियरों तथा भारतीय आई.टी. कंपनियों पर पडे़गा,क्योंकि एच-1 बी वीजा प्राप्त करने वाले गैर अमेरिकियों में सबसे ज्यादा दो तिहाई हिस्सेदारी भारतीयों की रहती है।

    दरअसल अमेरिकी एवं भारतीय कंपनियों को अभी कम वेतन में ही भारतीय आई.टी. इंजीनियर मिलते हैं जबकि इसके तुलना में अमेरिकी इंजीनियरों की उपलब्धता कम है।इस विधेयक का सीधा असर एक ओर जहां ऐसे भारतीय प्रतिभाओं पर पडे़गा जो ऊंचे वेतन की चाह में अमेरिका जाना चाहते हैं वहीं दूसरी ओर भारतीय आई.टी. कंपनियों पर भी इसका प्रभाव पडे़गा क्योंकि अमेरिका उनके लिए सबसे बड़ा बाजार है।बहरहाल अमेरिकी संसद के प्रस्तावित बिल के चलते अब भारतीय प्रतिभाओं के विदेश पलायन पर अंकुश लगने की संभावना बलवती हुई है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के ‘मेक इन इंडिया’, ‘स्टार्ट अप इंडिया-स्टैंड अप इंडिया’ कार्यक्रम के बावजूद भारतीय छात्रों एवं युवाओं का पढ़ाई और रोजगार के नाम पर विदेश पलायन नहीं रूक पा रहा है।

   श्री मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री अपने पहले अमेरिका प्रवास के दौरान भारतीय समुदाय से रूबरू होते हुए यह विचार व्यक्त किया था कि भारतीय प्रतिभाओं का उच्च शिक्षा और नौकरी के लिए देश से बाहर जाना ‘ब्रेन ड्रेन’ यानि प्रतिभा पलायन नहीं अपितु ‘ब्रेन गेन’ यानि प्रतिभा लाभ है जो उचित समय पर भारत की सेवा करेगी। सही मायनों में यह उचित समय अब आ गया है जब भारत सूचना प्रौद्योगिकी से लेकर चिकित्सा, इंजीनियरिंग तथा बैंकिंग के क्षेत्र में पूरी दुनिया को अपनी ताकत दिखा सकता है।

   अमरीका सहित ब्रिटेन, आस्ट्रेलिया, कनाडा, जर्मनी, रूस, चीन, सिंगापुर, साउदी अरब, यू.ए.ई.देशों के आई.टी., चिकित्सा, इंजीनियरिंग, वैज्ञानिक, बैंकिंग, प्रबंधन, नर्सिंग एवं होटल क्षेत्र सहित बतौर मजदूर लगभग तीन करोड़ भारतीय काम कर रहे हैं।केवल अमेरीका में ही भारतीयों की तदाद 60 लाख से ज्यादा है।यहां के आई.टी. हब सिलिकान वैली के कुल कंपनियों में से 65 प्रतिशत का नेतृत्व भारतीयों के पास है जहां लगभग नब्बे हजार भारतीय कार्यरत हैं। भारतीय प्रतिभाओं के पलायन के दो अहम कारण है पहला उच्च शिक्षा और दूसरा बेहतर रोजगार के अवसर, भारत के पास भले ही दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा एजुकेशन सिस्टम हो लेकिन दुनिया के शीर्षस्थ 200 यूनिवर्सिटी में भारत की एक भी यूनिवर्सिटी नहीं है।     

    यदि आई.आई.टी.और आई.आई.एम.को छोड़ दे तो हमारे देश में ऐसे संस्थानों की कमी है जो विश्वस्तरीय हों। आश्चर्यजनक यह कि भारत में बड़े संस्थानों की अनारक्षित सीटों पर प्रवेश की प्रक्रिया और प्रतिस्पर्धा दुनिया के शीर्ष 20 यूनिवर्सिटी से ज्यादा कठिन है तथा देश के कई संस्थानों में पढ़ाई की लागत अप्रत्यक्ष तौर पर विदेशी संस्थानों के बराबर है।चूंकि भारत सहित विदेशों में नौकरियों के लिए विदेशी डिग्रियों का महत्व ज्यादा है इसलिए उपरोक्त तथ्यों के मद्देनजर उच्च मध्यम और मध्यम वर्गीय अभिभावक अपने बच्चों को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेज रहे हैं। भारत में उच्च शिक्षा के गुणवत्ता में सुधार को तमाम दावों के बावजूद अमरीका में पढ़ रहे भारतीय छात्रों की संख्या शैक्षिक सत्र् 2015-16 में 1 लाख 65 हजार से ज्यादा हो गयी जो पिछले वर्ष की तुलना में 25 फीसदी ज्यादा है। अमेरिका में अंतर्राष्ट्रीय छात्रों के मामले में भारत दूसरे नम्बर पर है। वहीं जर्मनी में 2010-16 के बीच भारतीय छात्रों की संख्या तीन गुना हो गयी।

      हम इसे इतिहास की विडंबना ही कह सकते हैं कि प्राचीन काल में हमारे देश के नालंदा, तक्षशिला और पुष्पागिरी विश्वविद्यालय शिक्षा के बहुत बड़े केन्द्र थे, दूर-दराज के देशों के छात्र विशिष्ट शिक्षा प्राप्त करने के लिए आते थे लेकिन अब हमारे छात्र उच्च शिक्षा के लिए विदेश जा रहे हैं।दरअसल विदेश जाकर पढ़ाई करने का मोह या मजबूरी ही प्रतिभा पलायन का पहला कदम है।एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2003 की तुलना में 2015 में भारत से विदेश जाने वाले वैज्ञानिक व इंजिनियरों की संख्या में 85 फीसदी का इजाफा हुआ है। जानकारी के अनुसार लगभग 2.64 लाख भारतीय छात्र विदेशों में पढ़ाई करे रहे हैं।दरअसल विदेशों में शिक्षा ग्रहण करना भारत में हमेशा से बड़े गर्व की बात समझी जाती रही है लेकिन पहले के दौर में ये प्रतिभायें वापस लौटकर देश को सेवा देती रही हैं लेकिन अब स्थिति बदल रही है।

     भारतीय छात्रों के विदेश पलायन के पीछे वैयक्तिक कारण विकसित देशों की चकाचौध, ऊंचा वेतन और बेहतर जीवन भी है।इन आकर्षणों के चलते ही विदेशों से मास्टर व डाक्टरेट डिग्री लेने के बाद भारतीय छात्र इन देशों में बसना पसंद कर रहे हैं। यू.एस.नेशनल साइंस फाउंडेशन के सर्वे के अनुसार डाक्टरेट या अन्य उच्चतर विशेषज्ञता हासिल करने अमरीका आने वाले 80 फीसदी भारतीय छात्र स्वदेश नहीं लौटते कमोबेश यही आंकड़े समूचे दक्षिण एशियाई देशों के हैं।

     विचारणीय है कि भारत में बुनियादी स्वास्थ्य सेवा अत्यंत लचर है तथा देश में डाक्टरों की भारी कमी है लेकिन पिछले तीन वर्शों के दौरान विशेषज्ञता शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले लगभग 3000 मेडिकल स्नातकों में से कोई भी भारत नहीं लौटा।इन्हीं परिस्थितियों के मद्देनजर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने उच्चतर शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले मेडिकल छात्रों के लिए जरूरी ‘नो आब्लिगेशन टू रिटर्न सर्टिफिकेट’ यानि भारत वापस लौटने की बाध्यता नहीं प्रमाण पत्र को रद्द करते हुए उन्हे वापस लौटने के लिए बाध्य करने का फैसला किया है।

    निःसंदेह भारतीय प्रतिभाओं ने विदेशों में अपने ज्ञान, कौशल, मेहनत हिम्मत और हौसले से भारतीय मेधा का लोहा मनवाया है तथा भारत का झंडा बुलंद किया है लेकिन इसकी कीमत भारत ने चुकाई है। विडंबना है कि जिन प्रतिभाओं को तैयार करने के लिए देश ने अपने सारे संसाधन झोक दिए आज वही प्रतिभायें अपना भविष्य विदेशों में तलाशने लगे हैं, जबकि देश की नयी पीढ़ी को इन प्रतिभाओं से मार्गदर्शन, ज्ञान व अनुभवों की दरकार है।

    प्रतिभा पलायन से भारत को हर वर्ष लगभग 25 अरब डालर का नुकसान होता है। प्रतिभा पलायन का असर केवल देश के विकास और अर्थव्यवस्था पर ही नहीं पड़ रहा है अपितु इसका दुष्प्रभाव सांस्कृतिक, सामाजिक एवं पारिवारिक स्तर पर भी दृष्टिगोचर हो रहा है। विदेशों में बसे युवाओं के दाम्पत्य जीवन में तनाव, तलाक और आत्महत्या भारतीय समाज के सामने दिक्कते पैदा कर रही है वहीं बुजुर्ग माता-पिता के बुढ़ापे की लाठी भी छिन रही है।प्रवासी एवं अप्रवासी भारतीयों के लिए परदेस में अपने संस्कार एवं संस्कृति को बचाए रखना अहम चुनौती है। भारतीय प्रतिभाओं के पलायन के लिए उच्चशिक्षा और रोजगार ही कारण नहीं है अपितु इसके लिए राजनीतिक, सामाजिक और वैयक्तिक कारण भी जवाबदेह है।मेधावी युवाओं को नौकरी में संतुष्टी नहीं मिलना, रूचि के अनुसार कार्य न मिलना, उत्कृष्ट काम के बावजूद सम्मान नहीं मिलना, पर्याप्त संसाधनों का अभाव, इसके अलावा शोध संस्थानों में राजनीतिक एवं अनावश्यक प्रशासनिक दखल के साथ-साथ पाश्चात्य भोगवादी जीवन पद्धति की लालसा भी इसलिए जवाबदेह है।प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति ही किसी समाज या राष्ट्र की वास्तविक संपदा होती है, इस बौद्धिक संपदा पर ही देश की दशा और दिशा निर्भर होती है।देश के विकास को गति देने के लिए प्रतिभा पलायन को रोकना अतिआवश्यक है इसके लिए सरकार व समाज को उपयुक्त परिस्थितियां और वातावरण बनाना होगा तथा उच्च शिक्षा संस्थानों के गुणवता को विकसित करना भी अत्यावश्यक है।विदेशों में बसे भारतवंशियों से भी अपेक्षा है कि वे अपने प्रतिभा और कौशल का उपयोग अपनी मातृभूमि के लिए करें।कहा भी गया कि ‘‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी’’ इसलिए देश के प्रतिभाओं से यही अपेक्षा है कि वे इस उक्ति को चरितार्थ करे।

 

सम्प्रति- लेखक डा.संजय शुक्ला शासकीय आर्युवेदिक कालेज रायपुर में व्याख्याता है।