रायपुर, 23 जुलाई।छत्तीसगढ़ की राज्यपाल अनुसुईया उइके ने कहा हैं कि प्रदेश के विश्वविद्यालयों को शोध कर गुमनाम महिला स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।
श्री उइके ने आज इंदिरा कला संगीत विश्वविद्यालय, खैरागढ़ द्वारा आजादी के 75वें वर्ष अमृत महोत्सव के अवसर पर ‘‘छत्तीसगढ़ की महिलाओं का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान’’ विषय पर आधारित ऑनलाईन व्याख्यान कार्यक्रम में कहा कि आजादी की लड़ाई में समाज के सभी वर्गों ने बराबरी से भाग लिया, किन्तु पुरूष स्वतंत्रता सेनानियों की तुलना में महिला वीरांगनाओं के नाम उतनी प्रमुखता से दर्ज नहीं हो पाए। इस विषय पर प्रदेश के विश्वविद्यालयों को शोध करना चाहिए ताकि गुमनाम महिला स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के नाम भी इतिहास के पन्नों में स्वर्णाक्षरों में लिखे जाएं। हमारी वीरांगनाओं के योगदान को पाठ्यक्रम में भी शामिल किया जाना चाहिए।
राज्यपाल ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सहित अनेक महानायकों के नेतृत्व में कई राष्ट्रीय आंदोलन किये गए, जिसमें पुरूषों के साथ-साथ महिलाओं ने भी अपना योगदान दिया। हमारे राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास में ऐसे कई महिलाएं हैं, जिन्होंने पारिवारिक भूमिका के साथ-साथ राष्ट्रवादी गतिविधियों में हिस्सेदारी की और वीरता एवं साहस का परिचय दिया। महात्मा गांधी स्वयं स्वीकार करते थे कि हमारी मां, बहनों के योगदान के बिना स्वतंत्रता का यह संघर्ष संभव नहीं होगा।शिक्षा का प्रसार तथा सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध आंदोलनों ने महिलाओं में जागृति पैदा की।
उन्होने कहा कि देश में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन में छत्तीसगढ़ के पुरूष स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ ही, यहां की अनेकों महिलाओं ने भी बराबरी से हिस्सा लिया। इनमें छत्तीसगढ़ से डॉ. राधा बाई, श्रीमती रोहिणी बाई परगनिहा, श्रीमती फूलकूंवर बाई, श्रीमती बेला बाई, श्रीमती केकती बाई बघेल, श्रीमती रूखमणी बाई एवं श्रीमती दया बाई का नाम उल्लेखनीय है। इनके अलावा भी असंख्य महिलाओं ने राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लिया, लेकिन उनके नाम इतिहास में कहीं दर्ज नहीं हुए।