Thursday , November 14 2024
Home / MainSlide / जनधन की लूट का अटूट सिलसिला – रघु ठाकुर

जनधन की लूट का अटूट सिलसिला – रघु ठाकुर

रघु ठाकुर

स्व. इंदिरा गांधी ने 1976 में आपातकाल में पूर्व सांसदों को पेंशन देने का कानून पारित किया था। यद्यपि मेरी राय में यह संवैधानिक नहीं था क्योंकि संविधान में उन पदों का नाम सहित उल्लेख है जिन्हें पेंशन देने का नियम सरकार बना सकती है। उसके बाद यह सिलसिला राज्यों में पहुंचा और राज्य सरकारों ने भी पूर्व विधायकों की पेंशन के कानून पारित किये। मैंने इसके विरूद्ध याचिका दायर की थी। जिस पर म0प्र0 उच्च न्यायालय पर तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश श्री झा ने स्थगन आदेश जारी किया था जो काफी समय तक लागू रहा। बाद में जब जस्टिस माथुर म0प्र0 उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने तब बगैर निर्धारित तिथि के उन्हांने याचिका पर बिना सुनवाई किये स्थगन आदेश निरस्त कर दिया।

जस्टिस माथुर जोकि स्व0 श्री शिवचरण माथुर पूर्व मुख्यमंत्री राजस्थान के बेटे थे और उनके संबंध तत्कालीन म0प्र0 के मुख्यमंत्री के साथ बहुत गहरे थे, इसलिए उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री के कहने पर यह कदम उठाया। जब मुझे यह जानकारी मेरे वकील स्व0 एन.एस. काले के द्वारा मिली तो वे भी आश्चर्य चकित थे और मैं भी। मैंने इसके विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट में एस.एल.पी. दायर की थी जिसकी सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस जे.एस. वर्मा की बेंच में हुई थी। जस्टिस वर्मा ने यह कहते हुए मेरी एस.एल.पी. को रद्द कर दिया कि यद्यपि श्री रघुठाकुर के तर्क में काफी मजबूती है परन्तु न्यायपालिका इस विवाद में क्यों दखल दे इसका निर्णय विधायिका पर ही छोड़ा जाये। मैंने उनकी इस टिप्पणी पर उन्हें एक व्यक्तिगत पत्र भी लिखा था जिसका उत्तर उन्हांने नहीं दिया। मैं उम्मीद कर रहा था कि वह मेरे पत्र को लेकर मेरे विरूद्ध न्यायपालिका की अवमानना की कार्यवाही करेगें परन्तु उन्होंने वह भी नहीं की। हालांकि यह उनका बड़प्पन था कि जिस दिन उनका रिटायर्टमेन्ट हुआ यानि 1 मई को तथा जब वे मधुलिमये स्मृति व्याख्यान देने आये थे, तब उन्होंने मुझसे निजी तौर पर खेद व्यक्त किया और अपनी न्यायिक सीमाओं का जिक्र किया।

पूर्व सांसदों और पूर्व विधायकों की पेंशन मेरी राय में असंवैधानिक है क्योंकि यदि इसका प्रावधान संविधान में होता तो 1976 के पूर्व में सांसदों और विधायकों को भी पेंशन मिली होती। स्व0 इंदिरा गांधी के पिता और भारत के प्रथम प्रधानमंत्री स्व0 नेहरू के जमाने में ही यह लागू होती। 29 वर्षों तक पूर्व सांसद और पूर्व विधायक बगैर पेंशन के क्यों रहते। दूसरे राजनीति जनसेवा है नौकरी नहीं। अगर किसी व्यक्ति को 5 वर्ष के बाद जनमत ने नकार दिया या उसके दल ने भी उसे योग्य नहीं माना तो उसे पेंशन या अन्य सुविधायें देना न केवल राजकोष  की लूट है वरन् यह अलौकतांत्रिक भी है। देश की जनता का कितना धन  इन पूर्व माननीयों के पेंशन पर खर्च हो रहा है, इसका अनुमान हाल ही में हरियाणा प्रदेश की पेंशन के एक मीडिया में छपे आंकड़े से समझा जा सकता है, हरियाणा एक छोटा प्रदेश है। जहाँ मात्र 90 विधानसभा क्षेत्र है, और इसमें एक वर्ष में इन माननीय पूर्व सांसदों व विधायकों की पेंशन पर लगभग 23 करोड़ रूपया खर्च हो रहा है, अगर पूरे देश के माननीयों के पेंशन के खर्च का आंकलन किया जाये तो वह राशि एक हज़ार करोड़ के आसपास होगी। फिर जिसे जनमत ने नकार दिया तो उसका खर्च जनता क्यों उठाये?

क्रमशः यह सिलसिला बढ़ता ही जा रहा है इसके बाद राजधानियों में पूर्व सांसदों और विधायकों को जिनके पास बड़ी बड़ी जमीदारियां है उन्हें लगभग निःशुल्क जमीन दी गई और जिन पर वे मकान बनाकर रह भी रहे है और लाखों रूपये महीना उससे आमदनी भी प्राप्त कर रहे हैं। इसके बाद सरकारी खर्च से ही मकान बनाकर, सस्ते दरों पर और किस्तों पर आवंटित किये जा रहे है। यह सिलसिला केन्द्र से लेकर राज्यों तक निर्वाध रूप से जारी है।

अब इसकी नकल स्वायत संस्थाओं में भी होने लगी है और जिला पंचायतों तथा नगर निगमों में भी पार्षदों और पंचों को वेतन या मानदेय की परम्परा शुरू हुई है और किसी दिन यह भी हो सकता हैं कि स्वायत संस्थाओं के निर्वाचित सदस्यों को भी पेंशन और जमीन आदि मिलने का सिलसिला शुरू हो जाये।

इसके बाद पूर्व सांसदों को आजीवन रेलवे के यात्रा पास शुरू हुए और ए.सी. प्रथम में उनके लिए तथा स्लीपर में उसके सहयोगी के लिए यात्रा पास मिलने लगे। इसी क्रम में पूर्व विधायकों को भी अलग अलग राज्यों में अलग अलग नियम बनाकर रेल यात्रा के मुफ्त पास देना शुरू हुआ। अभी हाल में म0प्र0 विधानसभा के द्वारा बनायी गयी विधायकों की सुविधा निर्धारण संबंधी समिति ने तो जो सिफारिशें की है वे तो और भी चिन्ताजनक है। अभी केवल विधायकों को रेस्ट हाउस में ठहरने के लिए 4/- रू0 प्रतिदिन तथा 3 दिन के बाद 20/- प्रतिदिन और उसके बाद 100/- प्रतिदिन का किराया निर्धारित था। परन्तु अब इस समिति ने सुझाव दिया है कि यह मामूली सा किराया भी समाप्त कर दिया जाये तथा शासकीय अतिथि-गृहों में पूर्व विधायकों को चाय नाश्ता भी मुफ्त में दिया जाये। पिछले दो दशकां से निर्वाचित प्रतिनिधि अत्यधिक भयभीत रहते है और सरकार से सुरक्षा मांगते है व लेते है। इस सुरक्षा का खर्च भी सरकार वहन करती है। यानि अतंतः जनता को ही हारे या हटाये गये जनप्रतिनिधियों की सुरक्षा व्यय का बोझ सहना होता है। समूचे देश में कम से कम 20 हज़ार पुलिसकर्मी इन पूर्व सांसदों, विधायकों की सुरक्षा में लगे होंगे। इनका वेतनभत्ता यात्रा व्यय आदि की राशि भी अरबों में होगी।जाहिर है कि सुरक्षा कर्मचारी पूर्व माननीयों के साथ यात्रा करेंगें और उनका यात्रा खर्च भी सरकारी खजाने से दिया जायेगा। सुरक्षा कर्मी को यात्रा खर्च के साथ वेतन भत्ता आदि भी देना होगा। सुरक्षा कर्मी भी इनके साथ सरकारी रेस्ट हाउसों में रूकेगे और उन सबका नाश्ता भी मुफ्त होगा। आखिर यह भारी भरकम खर्च का बोझ प्रदेश और देश की जनता को सहना होगा। यह आश्चर्यजनक है कि भारत सरकार जनता की जरूरी चीजों पर अनुदान कम करती जा रही है या खत्म करने की योजना बना रही है। रसोई गैस का अनुदान, बिजली का अनुदान, पेट्रोलियम पदार्थों का अनुदान, रेल यात्रा में पत्रकारों, बुजुर्गों, महिलाओं, बीमारों, को दी जाने वाली रियायत भी यह कहकर बंद कर दी गयी कि यह जनता पर बोझ है परन्तु संतुष्टिकरण और एक प्रकार के वर्ग हित संरक्षण की कुत्सित भावना से सरकारें जनधन को लुटाने का अटूट सिलसिला चलाये हुए हैं। आज कल सरकारों का राजधर्म और राजमंत्र वैश्वीकरण हो गया है। मैं उन्हें याद दिलाऊं कि यूरोप के देशों में सम्पन्नता के वाबजूद भी यह व्यवहारिक और नैतिक चलन है कि वहां सांसदों के वेतन का एक अंश सांसद पेंशन के लिए काटकर जमा किया जाता है और पेंशन केवल उन्हें ही दी जाती है जो आर्थिक विषमता के आधार पर पेंशन का आवेदन करते है। याने पेंशन पूर्व सांसदों का अधिकार नहीं है वरन् उनकी आवश्यकता पर उन्हीं के पैंसों से दी जाती है।

आजकल भारत सरकार, राज्य सरकारें, नवाचार मंत्र का पाठ करती रहती है। मैं केन्द्र और राज्यों से आग्रह करूंगा कि पूर्व सांसदों और विधायकों के मामलों में नवाचार शुरू करें और- (1) पूर्व सांसदों और विधायकों की पेंशन तथा मुफ्त रेल पास या टिकिट की सुविधायें बंद करें। (2) राजधानियों में मुफ्त प्लाट और सस्ते मकानों के निर्माण और आवंटन बंद करे तथा जिन्हें पूर्व में आवंटित किये गये है उनकी बाजार मूल्य के आधार पर कीमत तय कर उनसे यह कीमत ले भले ही वह किस्तों में ली जाये। (3) पूर्व सांसदों, विधायकों की सुरक्षा का खर्च सामान्य लोगों के समान उनसे लिया जाये। (4) पूर्व प्रधानमंत्रियों और  मुख्यमंत्रियों को दी जाने वाली सुविधाओं को कानून रद्द किया जाये।

 

सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर देश के जाने माने समाजवादी चिन्तक है।प्रख्यात समाजवादी नेता स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के संस्थापक भी है।