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जोगी के बिना कांग्रेस ? कमजोर या मजबूत-दिवाकर मुक्तिबोध

छत्तीसगढ़ कांग्रेस क्या अपने दूसरे विभाजन की ओर बढ़ रही है। दिसंबर 2015 के अंतिम सप्ताह में अंतागढ़ उपचुनाव सीड़ी कांड के जाहिर होने के बाद जोगी परिवार पर पार्टी अनुशासन का कहर टूट पड़ा है। मरवाही से निर्वाचित अमित जोगी को 6 वर्ष के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है और उनके पिता पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी के लिए भी पार्टी हाईकमान से ऐसी ही सिफारिश की गई है। अजीत जोगी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी में है लिहाजा उन पर फैसले का अधिकार प्रदेश कमेटी को नहीं है अलबत्ता वह अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए प्रस्ताव जरुर पारित कर सकती है। 6 जनवरी 2016 को प्रदेश कार्यालय में कार्यकारिणी की बैठक में उन्हें भी 6 वर्ष के लिए पार्टी से बाहर करने का निर्णय लिया गया। अब गेंद पार्टी हाईकमान के पाले में है। केंद्रीय अनुशासन समिति चाहे तो प्रदेश कमेटी के फैसलों को रद्द कर सकती है या अमित जोगी के निष्कासन पर मुहर लगाते हुए अजीत जोगी के खिलाफ कार्रवाई नामंजूर कर सकती है या स्थगित रख सकती है। जोगी पिता-पुत्र की आस अब मूलत: पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी एवं उपाध्यक्ष राहुल गांधी पर टिकी हुई है जिनकी सहानभूति उन्हें प्राय: हर कठिन परिस्थितियों में मिलती रही है। ऐसा उनका दावा है और यह काफी हद तक सही भी है।
छत्तीसगढ़ कांग्रेस में पहला विभाजन वर्ष अप्रैल 2003 में हुआ था जब श्री विद्याचरण शुक्ल ने पार्टी से बगावत करके शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में शामिल होने का ऐलान किया था। इसे विभाजन ही कहा जाएगा क्योंकि उनके साथ बड़ी संख्या में कांग्रेसजनों ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। प्रदेश कांग्रेस में यह बड़ी टूट-फूट थी जिसका नतीजा उसे राज्य विधानसभा चुनाव में देखने को मिला। नवंबर-दिसंबर 2003 में हुए चुनाव में विद्याचरण शुक्ल के नेतृत्व में एनसीपी ने अच्छा प्रदर्शन किया। उसे लगभग 7 प्रतिशत वोट मिले। यद्यपि पार्टी का एक ही प्रत्याशी जीत सका किन्तु उसने कांग्रेस को ऐसा नुकसान पहुंचाया कि अब तक वह इससे उबर नहीं सकी है। 2003 के बाद कांग्रेस अगले दो चुनाव भी हार गई पर 2008 एवं 2013 में पराजय की मुख्य वजह रही गुटीय प्रतिद्वंद्विता, प्रत्याशियों के चयन में गड़बड़ी एवं चुनाव के दौरान भितरघात। भाजपा, जिसका अविभाजित मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ अंचल में कोई खास जनाधार नहीं था। वह पिछले 12 वर्षों से सत्ता में मात्र इसलिए है क्योंकि कांग्रेस एकजुट नहीं है और वह कोई सबक लेती नजर भी नहीं आ रही है।
दरअसल वर्ष 2003 की पराजय के बाद से कांग्रेस दो खेमों में बंटी रही है। सत्ता से बेदखली के बाद संगठन की लगाम अपने हाथ में न रख पाने तथा उसे अपने इशारे पर न नचा पाने का क्षोभ अजीत जोगी को इस कदर उद्वेलित करता रहा कि उन्हें कोई भी नेतृत्व बर्दाश्त नहीं हुआ चाहे वे चरणदास महंत रहे हो या नंदकुमार पटेल या फिर अब भूपेश बघेल। वे एक तरह से समानांतर कांग्रेस चलाते रहे हैं। पिछले एक दशक से उनका गुट इतना प्रभावशाली था कि वह संगठन पर हावी रहा। भूपेश बघेल के नेतृत्व संभालने के बाद यद्यपि उनका गुट कमजोर पड़ गया है पर कांग्रेस की दो मोर्चो पर लड़ाई जारी है। एक आतंरिक दूसरा बाहरी। बाहरी मोर्चा सत्ता पर हमला करता है पर उसमें भी सत्ताधारियों से कांग्रेसियों की मिलीभगत की बातें सामने आती रही हैं। यानी विधानसभा के भीतर और बाहर नूरा-कुश्ती चलती हैं, ऐसा कहना शायद ज्यादा मुनासिब होगा। इस नूरा कुश्ती का एक उदाहरण टेप कांड के रुप में सामने आया है जिसके तीन किरदार हैं – कांगे्रस के दोनों खेमे और भाजपा। दिलीप सिंह जूदेव के बाद यह दूसरा टेप कांड है जिसने प्रदेश कांग्रेस की राजनीति में जबरदस्त हलचल मचाई है और जिसकी धमक दिल्ली तक पहुंच गई है। दिलीप सिंह जूदेव को 17 नवंबर 2003 को रिश्वत संबंधी टेप कांड के उजागर होने के बाद केंद्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा था। इस कांड के पीछे अमित जोगी का हाथ बताया गया। वर्ष 2005 में सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई ने जो रिपोर्ट दाखिल की थी उसमें कहा गया था जूदेव सीडी कांड के साजिश के पीछे अमित जोगी की संलिप्तता हैं जिन्होंने आगामी विधानसभा चुनाव को ध्यान में रखते हुए अपने पिता को मदद पहुंचाने की दृष्टि से जाल रचा था ताकि कांग्रेस को माइलेज मिल सके। और अब अतांगढ़ उपचुनाव टेप कांड में भी उनका नाम सामने आया है।

बहरहाल कांग्रेस 2003 में हुई टूट-फूट के झटके से उबर चुकी है और राजनीतिक परिस्थितियां भी काफी कुछ बदल गई है। कांग्रेस में वापसी के बाद विद्याचरण शुक्ल झीरमघाटी नक्सली (25 मई 2013) हमले में मारे गए तथा एनसीपी भी राज्य में अपना अस्तित्व लगभग खो बैठी। प्रदेश कांगे्रस फिर अपने मूल रुप में है किन्तु गहरे आपसी मनमुटाव और खेमेबाजी से वह एक बार फिर विभाजन की दहलीज पर खड़ी है। वर्ष 2003 में तब के मुख्यमंत्री अजीत जोगी से खफा विद्याचरण शुक्ल टूट के कारण बने थे तो अब वर्ष 2016 में प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल की वजह से अजीत जोगी पार्टी के उस दरवाजे पर खड़े है जो सीधा बाहर की ओर जाता है। यदि हाईकमान ने बाप-बेटे को पार्टी से बेदखल कर दिया तो यह तय है वर्ष 2018 में होने वाले राज्य विधानसभा के चुनाव में एक और कांग्रेस नजर आएगी जो जोगी के नेतृत्व की होगी। यानी 2003 जैसा दृश्य 2018 में भी नजर आ सकता हैं और तब चुनाव का परिणाम क्या होगा, यह अभी कहना तो मुश्किल है पर पार्टी के अंदर हो रहे इन घटनाक्रमों से भाजपा की बांछे जरुर खिली हुई हैं।
कांग्रेस में अंदरुनी झगड़ों का सतह पर आना नई बात नहीं है। उसका इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा पड़ा है जिसमें प्रतिद्वंद्वी गुटों के नेताओं ने एक-दूसरे पर तेज हमले किए, आरोप-प्रत्यारोप से लहुलूहान किया। याद आता वर्ष 1982 में अविभाजित मध्यप्रदेश में जब कांग्रेस में शुक्ल बंधुओं का बोलबाला था, पार्टी के तत्कालीन महासचिव अजीज कुरैशी की शामत आ गई थी। मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री स्व. रविशंकर शुक्ल के संबंध में उन्होंने भोपाल में कथित अप्रिय टिप्पणी की थी। नतीजन जब एक दिन वे पार्टी के कामकाज के सिलसिले में रायपुर के लिए निकले तो रायपुर रेलवे स्टेशन पर ही विद्याचरण शुक्ल के समर्थकों ने उन्हें जूतों की माला पहनाई, झूमा-झटकी की और वापस लौटने विवश कर दिया। कांग्रेस भवन में पार्टी बैठकों में तो गाली-गलौज, मारपीट, तोड़फोड़ व एक-दूसरे पर कुर्सियों को उछालने की घटनाएं गुटबाजी के चरम की ओर इशारा करती रही है। और तो और यूपीए के तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को उनके रायपुर प्रवास के दौरान पार्टी के गुटबाजों ने नहीं बख्शा। भरी सभा में जोगी समर्थकों ने जबरदस्त शोरगुल और नारेबाजी करके अपने गुस्से का इजहार किया। अपनी ताकत दिखाने एवं अनुशासन को तार-तार करने का यह अप्रतिम दुस्साहस था। प्रदेश कांग्रेस फिर उसी दौर में है। अंतागढ़ उपचुनाव के करीब डेढ़ वर्ष बाद बाहर आई सीडी से यह स्थिति बनी है।
सितंबर 2014 को हुए अंतागढ़ उपचुनाव में कांग्रेस के अधिकृत प्रत्याशी मंतूराम पवार ने नामांकन वापसी की तिथि बीतने के बाद 29 अगस्त 2014 को अप्रत्याशित रुप से चुनाव मैदान से हटने की घोषणा कर दी थी। प्रदेश कांगे्रस के लिए यह जबरदस्त झटका था विशेषकर भूपेश बघेल के लिए। वे ताजे-ताजे कांग्रेस अध्यक्ष नियुक्त हुए थे। जाहिर है मंतूराम पवार के मैदान से हटने से भाजपा प्रत्याशी भोजराज नाग को एकतरह से वाकओहर मिल गया। मजे की बात यह थी एक-एक करके अन्य दस निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव समर से हट गए। केवल एक प्रत्याशी अंबेडकराइड पार्टी ऑफ इंडिया के रुपधर पुडो डटे रहे। भाजपा प्रत्याशी की रिकार्ड 50 हजार से अधिक मतों से जीत हुई। लेकिन इस घटना से लोकतांत्रिक परंपराओं को ऐसा आघात पहुंचा जिसकी कल्पना करना भी कठिन है। विधायक खरीद-फरोख्त की मिसालें राज्य में पहले भी रही है किन्तु गुटीय प्रतिद्वंद्विता में इस कदर नीचे गिरने की यह पहली घटना है। मंतूराम पवार जोगी समर्थक रहे है। अनुसूचित जनजाति के लिए सुरक्षित अंतागढ़ सीट से वे पहले भी चुनाव लड़ चुके थे। उन्हें कांग्रेस ने 5 बार टिकट दी। दो में वे हारे, दो जीते और एक में मैदान से हट गए। उपचुनाव में उनके मैदान छोड़ने के बाद यह आम चर्चा रही कि उन्हें भारी भरकम रकम देकर मैदान से हटाया गया और इस खेल में मुख्य रुप से अजीत जोगी के चिरंजीव व विधायक अमित जोगी की भाजपा से सांठगांठ रही।
मंतूराम को ऐन वक्त पर मैदान से हटाने के पीछे पैसों के साथ-साथ जोगी समर्थकों को उद्देश्य भूपेश बघेल के नेतृत्व पर सवालिया निशान था। प्रदेश कांग्रेस के इतिहास में ऐसी घटना पहले कभी नहीं हुई। जाहिर है यह अनुशासनहीनता की पराकाष्ठा थी लेकिन जोगी पर कोई कार्रवाई इसलिए नहीं हो सकी क्योंकि साजिश का कोई प्रमाण नहीं मिला था। अब मंतूराम पवार भाजपा में है तथा इसी कांड की सीडी सार्वजनिक हुई है जिसमें लेन-देन सहित अमित जोगी, अजीत जोगी व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के दामाद डा. पुनीत गुप्ता की कथित रुप से आवाज है, बातचीत है।
इस सीडी के बाहर आते ही भूपेश बघेल ने यद्यपि मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह एवं भाजपा पर निशाना साधा किन्तु उनका लक्ष्य पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी और उनके पुत्र विधायक अमित जोगी को दिन में तारे दिखाने का था। तारे उन्होंने दिखाए दिए है। 2003 में भाजपा विधायकों की खरीद-फरोख्त की कोशिशें उजागर होने के बाद जैसी स्थिति अजीत जोगी की हुई लगभग वैसे ही अब अंतागढ़ उपचुनाव टेप कांड से हुई है। उस समय केंद्रीय नेतृत्व ने उन्हें निलंबित कर दिया था, बाद में वे बहाल हुए। पार्टी ने उन पर पुन: विश्वास व्यक्त किया। और अब प्रदेश कांग्रेस ने उनके खिलाफ निष्कासन का प्रस्ताव पारित कर आलाकमान को भेजा है। गेंद पुन: केंद्र के पाले में है। फैसला करना उसके लिए कतई आसान नहीं क्योंकि अजीत जोगी का प्रदेश में व्यापक जनाधार है और इस समय तमाम गुटबाजी के बावजूद कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन कर रही हैं, स्थानीय निकायों के चुनावों में उसकी सफलता इसका प्रमाण है। हालांकि भूपेश बघेल एवं नेता प्रतिपक्ष टी.एस. सिंहदेव आश्वस्त हैं कि जोगी को पार्टी से बाहर करने से संगठन की एकता मजबूत होगी और उसकी चुनावी संभावनाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
बहरहाल अंतागढ़ उपचुनाव टेप कांड ने कई सवाल खड़े किए हैं। एक के बाद और भी टेप सामने आ रहे है। जिनकी विश्वसनीयता संदिग्ध है। तकनीकी जांच के बाद सत्य सामने आएगा पर उपचुनाव के करीब डेढ़ साल बाद हुए विस्फोट से किस तरह की कानूनी कार्रवाई संभव होगी, फिलहाल कहना मुश्किल है। उपचुनाव में निर्वाचित भाजपा विधायक भोजराज नाग के लिए भी शायद कोई चुनौती नहीं होगी। अलबत्ता मंतूराम पवार को पैसों से खरीदकर लालच देकर मैदान से हटाया गया, यदि यह आरोप सिद्ध हुआ तो कार्रवाई के लिए कानूनी आधार बनेगा वरना इस कांड को प्रदेश कांग्रेस के आंतरित संघर्ष का परिणाम कहा जाएगा जिसका उद्देश्य जोगी गुट का सफाया करना है। यह अलग बात है कि टेप प्रकरण जिसकी बुनियाद में जोगी पिता-पुत्र की कथित संलिप्तता का आरोप है, में भाजपा की कम से कम इतनी भूमिका तो है कि उसने कथित रुप से वांछित धन उपलब्ध कराया हैं। इस सौदेबाजी में पार्टी को फायदा इस मायने में था कि उसके प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित हो गई थी।
इस प्रकरण में सर्वाधिक प्रखर भूमिका अवसरवादी नेता फिरोज सिद्दिकी की रही है। कभी अजीत जोगी एवं अमित जोगी के लिए रहस्यमय ढंग से काम करने वाले फिरोज जग्गी हत्याकांड में सजायाफ्ता हैं और फिलहाल जमानत पर है। आरोप है कि फिरोज सिद्दिकी ने प्रदेश अध्यक्ष के साथ सौदेबाजी की। परिणाम स्वरुप टेप सार्वजनिक हो गया। सिद्दिकी का दावा है कि उसके पास और भी टेप है जो कई नेताओं को बेनकाब करेंगे। इस दावे के परिप्रेक्ष में कुछ और टेप सामने भी आए। 11 जनवरी 2016 को एक ऐसे ही टेप से अजीत जोगी को बड़ी राहत मिलने की संभावना है। इसमें फिरोज सिद्दिकी एवं प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल के बीच जोगी संबंधी टेप के संदर्भ में हुई बातचीत रिकार्ड है जिसमें सिद्दिकी को पार्टी का महामंत्री बनाने का ऑफर दिया गया है। भूपेश बघेल ने स्वीकार किया है कि टेप में आवाज उनकी है किन्तु संदर्भ अलग है।
प्रदेश कांग्रेस में भूपेश बघेल एवं अजीत जोगी के बीच घात-प्रतिघात के इस खेल में नुकसान जाहिर है पार्टी का हो रहा है। कांग्रेस हाईकमान के सामने इस मामले को लेकर विकट स्थिति है। भूपेश बघेल एवं टी.एस. सिंहदेव का दावा हैं कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के ”सफाई अभियान” के तहत ही पार्टी के विरुद्ध काम करने वालों को पार्टी से बाहर किया गया है। यदि इस दावे में सच्चाई तो संभव है जोगी पिता-पुत्र को कोई राहत न मिले। लेकिन जोगी समर्थकों की जवाबी कार्रवाई की अनदेखी करना भी केंद्रीय नेतृत्व के लिए कठिन होगा। पर यह तय है, यह लड़ाई अब ऐसे पड़ाव पर पहुंच गई है जहां एकता की बातें दिवा स्वप्न की तरह है। लिहाजा आने वाले दिन प्रदेश कांग्रेस के लिए निश्चय ही महत्वपूर्ण रहेंगे।

 

सम्प्रति-लेखक श्री दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार है।कई प्रमुख समाचार पत्रो के सम्पादक रह चुके है।