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2-जी स्पैक्ट्रम: काले धन के पाताल-लोक में दैत्यों का नया अवतार – उमेश त्रिवेदी

उमेश त्रिवेदी

सीबीआई की विशेष अदालत में 1 लाख 76 हजार करोड़ के 2-जी स्पैक्ट्रम घोटाले में सभी आरोपियों के छूट जाने के बाद यह खबर आम जनता के मन में कोई गुदगुदी या उम्मीदें पैदा नहीं कर पा रही है कि समाजसेवी अण्णा हजारे 23 मार्च 2018 में एक मर्तबा फिर दिल्ली के जंतर-मंतर पर भ्रष्टाचार के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की शुरुआत करने वाले हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ ऩाउम्मीदी का माहौल अकारण नहीं है। राजनीतिक और प्रशासनिक निर्ममता के आगे बेबस लोगों के लिए समझना मुश्किल है कि वो कहां जाएं और किसके आगे गुहार लगाएं? हालिया गुजरात विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ने अपने चुनाव-अभियान में जो पैसा खर्च किया है, उसके आंकड़े स्पष्ट कहते हैं कि देश में भ्रष्टाचार का शिकंजा इतना मजबूत और जानलेवा क्यों है? खर्च के अधिकृत आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन गुजरात के चुनाव को नजदीक से देखने वाले लोगों का कहना है कि भाजपा ने इस चुनाव में 1500 करोड़ से ज्यादा रूपए खर्च किये हैं। भाजपा के मुकाबले कांग्रेस के खर्च का आंकड़ा 750 करोड़ रुपयों तक पहुंच रहा है।

गुजरात चुनाव में एक ओर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी थे। दूसरी ओर उनके सामने राहुल गांधी खड़े थे। देश की दो प्रमुख पार्टियों के दोनों शीर्षस्थ नेताओं को क्या यह समझ में नहीं आ रहा था कि उनके चुनाव-अभियान के भव्य और आकर्षक जहाज रुपयों के काले समुन्दर में उतरा रहे हैं ? यहां 1 लाख 76 हजार करोड़ के घोटाले के मुकाबले गुजरात चुनाव में खर्च होने वाली 1500 करोड़ या 750 करोड़ की रकम काफी मामूली लगती है, लेकिन यही वह अदृश्य बीज है, जो अमर-बेल की तरह दिन दूना, रात-चौगुना आकार ग्रहण करता है।

2-जी स्पैक्ट्रम का फैसला देश के बुनियादी राजनीतिक और प्रशासनिक चरित्र पर प्रश्न-चिन्ह चस्पा कर रहा है। कल्पना करना कठिन है कि काले धन के पाताल-लोक में पलने और बढ़ने वाली राजनीति का चरित्र दैत्य-दानव, यक्ष और नाग की नैसर्गिक प्रवृत्तियों से अलग कैसे होगा? लोकतंत्र के राजनीतिक और संवैधानिक आख्यानों के अनुसार भारत में जनता के लिए राम-राज्य का अवतरण होने वाला है, जबकि काले धन के पाताल-लोक में दैत्य-प्रवृत्तियों का जिक्र खुलासा करता है कि यह झूठ है। राम-राज्य के सच को हासिल करने वाली आदर्शवादी परिकल्पनाएं वर्तमान राजनीति के निहितार्थ नहीं हैं। जो लोग इन सपनों की बुनियाद पर आम लोगों से ठगी कर रहे हैं, वो अन्याय कर रहे हैं। देश के बुनियादी सवाल आज भी ज्यों के त्यों मौजूद हैं। समझना जरूरी है कि आम लोगों के बुनियादी सवालों से देश का रुख मोड़ने वाली ताकतें सफल क्यों और कैसे हो रही हैं ? यह बात गले उतरना मुश्किल है कि देश के राजनीतिक इतिहास को उलट-पुलट कर देने वाला घोटाला हवा-हवाई कैसे हो सकता है ? 2-जी स्पैक्ट्रम के कंधों पर बैठकर सत्ता हासिल करने वाली भाजपा इसके अंजामों को लेकर इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है ? क्या भाजपा को यह अनुमान नहीं था कि विशेष न्यायालाय में सीबीआई की असफलता प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उन भाषणों की गंभीरता में खोट पैदा करेगी ?  मीडिया की विश्वसनीयता पर भी यह फैसला सवाल खड़े करता है कि सभी टीवी चैनलों पर मीडिया-ट्रायल कार्पोरेट साजिशों का हिस्सा था या आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण उसने सभी लक्ष्मण-रेखाओं को भुला दिया ? उस वक्त भारत के ऑडिटर-जनरल विनोद राय थे, जिनकी प्रशासनिक दक्षता का लोहा सभी लोग मानते हैं, लेकिन इस घोटाले के जमींदोज हो जाने के बाद उनकी सारी उपलब्धियां मटमैली दिखने लगी हैं। लोग उनके पद्म भूषण सम्मान पर भी सवाल उठाने लगे हैं। पाताल-लोक की पौराणिक-कथाओं में दैत्य-असुर और यक्षों का संघर्ष खुला था लेकिन यहां तो राजनेता, अधिकारी और मीडिया की सामूहिक और गड्डमड्ड भूमिकाओं में सुर-असुर और दैत्य-अदैत्य में फर्क कर पाना मुश्किल है।

2-जी स्पैट्रम का फैसला सुनने के बाद सोशल-मीडिया पर एक राजनीतिक कटाक्ष सबसे बड़े मजाक के रूप में खूब ट्रोल हो रहा है। कटाक्ष इस प्रकार है- ‘सात साल पहले एक आदमी ने कहा कि एक लाख छिहत्तर हजार करोड़ का घपला हुआ है। दूसरे आदमी ने इस घोटाले को समझाने के लिए आंदोलन चलाया। उसके साथ तीसरी महिला, चौथा आदमी भी जुड़ा। पांचवें आदमी ने घोटाले को जनता को समझाने के लिए एक और आंदोलन चलाया। छठा आदमी इसे सुप्रीम कोर्ट में लेकर गया। सातवें आदमी ने इन लोगों की मेहनत को सूत्रबध्द करके जनता से घोटाले के खिलाफ वोट मांगा। आज सभी आरोपी बरी हो गए हैं।

  अब पहला आदमी विनोद राय पद्मभूषण पाने के बाद बीसीसीआई का बॉस बना हुआ है। दूसरा आदमी दिल्ली का सीएम है, तीसरी महिला पांडिचेरी में उप-राज्यपाल है। चौथा आदमी जनरल वीके सिंह मंत्री है, पांचवा आदमी बाबा रामदेव कामयाब बिजनेसमेन है,छठे आदमी सुब्रमण्यम स्वामी सांसद हैं और सातवां आदमी देश का प्रधानमंत्री है। और आप… सही मायने में मजाक इसी को कहते हैं… मुस्कराइये, आप भारत में हैं..।’

 

सम्प्रति – लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के आज 25 दिसम्बर के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।