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कांग्रेस नेता राहुल गांधी के मुस्मिल लीग को धर्मनिरपेक्ष बताने के बाद देश में राजनीति चरम पर, आइए जानें…

राहुल गांधी ने अपने अमेरिका दौरे पर मुस्लिम लीग को धर्मनिरपेक्ष बताया, जिसके बाद से भारत की राजनीति में हंगामा मचा है। बयान के बाद से भाजपा राहुल पर हमलावर है और उन्हें इतिहास पढ़ने की बात कह रही है। भाजपा ने इसी के साथ मुस्लिम लीग को जिन्ना की पार्टी  के साथ देश के बंटवारे की सूत्रधार भी बताया।

हालांकि, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने अमेरिका में दिए बयान में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग का जिक्र किया था, जिससे पार्टी ने केरल में गठबंधन भी कर रखा है, लेकिन हंगामा मुस्लिम लीग पर मचा है। आइए, जानें मुस्लिम लीग और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग में अंतर और इसका नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना से क्या था सम्बंध।

मुस्लिम लीग का इतिहास

  • ऑल इंडिया मुस्लिम लीग (AIML) पार्टी बनाने के लिए 30 दिसंबर 1906 को बांग्लादेश में 3000 मुस्लिम अलगावादियों की मौजूदगी में एक प्रस्ताव पारित हुआ था और यहीं से इसकी शुरुआत हुई।
  • AIML देश की पहली राजनीतिक पार्टी थी, जो मुस्लिमों के लिए बनी थी।
  • आगा खान मुस्लिम लीग के पहले अध्यक्ष थे। इसका हेडक्वाटर अलीगढ में था, लेकिन लंदन में भी इसकी शाखा थी।
  • बंगाल के 1905 में विभाजन के बाद से अलग मुसलमान देश बनाने की मांग तेज हो गई थी और इसी लिए मुस्लिम लीग पार्टी को बनाया गया।
  • हालांकि, राहुल ने अपने बयान में मुस्लिम लीग का जिक्र तो नहीं किया था, लेकिन मुस्लिमों के लिए बनी मुस्लिम लीग किसी भी तरह से धर्मनिरपेक्ष नहीं थी। 

जिन्ना ने मुस्लिम लीग के लिए कांग्रेस से दिया इस्तीफा

मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग की सदस्यता 1913 में ली थी, हालांकि उस समय वो कांग्रेस पार्टी का भी हिस्सा थे। इसके बाद 1920 में कांग्रेस अधिवेशन में जिन्ना ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया।

मुस्लिम लीग के अधिवेशन में अलग देश की मांग

वर्ष 1930 में देश में पहली बार मुस्लिम लीग के अध्यक्ष मोहम्मद इकबाल ने आधिकारिक तौर पर अलग मुस्लिम देश बनाने का प्रस्ताव पेश किया। इसके बाद 1940 में मोहम्मद अली जिन्ना ने मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में हिंदू और मुस्लिमों के लिए अलग देश की मांग की। इसका पार्टी के कुछ नेताओं ने विरोध भी किया और उन्होंने अलग पार्टी ऑल इंडिया मुस्लिम लीग (AIML) बना ली। 

मुस्लिम लीग की मांग पर ही भारत का बंटवारा हुआ था और इसी के नेताओं ने इस दौरान हिंदुओं का नरसंहार किया था। AIML को बंटवारे के बाद भंग कर दिया गया था।

केरल की IUML की स्थापना की उठी मांग

देश के आजाद होने के बाद मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद इस्माइल पाकिस्तान नहीं गए और उन्होंने फिर से भारत में नई पार्टी इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) बनाने की सोची। हालांकि, बंटवारे पर हुई हिंसा के कारण फिर से देश में ये पार्टी बनाने के कोई पक्ष में नहीं आया। 

नेहरू ने भी किया विरोध 

दरअसल, नेहरू धर्म के आधार पर बने पाकिस्तान के बाद भारत में समुदाय विशेष पार्टी बनाने के पक्ष में नहीं थे। उनका कहना था कि भारतीय मुस्लिमों को ऐसी पार्टी की जरूरत नहीं है। उनका मानना था कि भारत के लिए सांप्रदायिक और कट्टरपंथी विचार अब सही नहीं है।

1948 में IUML की स्थापना

इसके बाद मुस्लिम समुदाय की प्रगति के नाम पर एक संगठन बनाने की बात उठी और बाद में इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग नाम की पार्टी 1948 में बना ली गई। हालांकि, इस पार्टी ने भारत के संविधान को अपनाया, लेकिन इसे खत्म करने के विचार में थे।

जिन्ना की पार्टी से कैसे अलग है IUML

  • ऑल इंडिया मुस्लिम लीग को ही आजादी के बाद इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग नाम दिया गया था, जिसने जिन्ना की मुस्लिम लीग का एक समय पर विरोध किया था।
  • IUML ने बाद में भारत के संविधान में हिस्सा लेते हुए चुनाव भी लड़ा और लोकसभा में उसके सांसद भी रहे। 
  • केरल और तमिलनाडु में तो पार्टी का अच्छा प्रभाव भी है। चुनाव आयोग ने आईयूएमएल को केरल में राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा भी दे रखा है। इस समय केरल विधानसभा में पार्टी के 18 विधायक भी है।

BJP भी कर चुकी गठबंधन 

भाजपा भी IUML के साथ गठबंधन कर चुकी है। 2012 में नागपुर म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन के चुनाव में भाजपा ने अपना मेयर बनाने के लिए इसी पार्टी का साथ लिया था। नागपुर में अपना मेयर बनाने के लिए इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के 2 विधायकों ने भाजपा का समर्थन किया था।