श्रीदेवी भले ही अब इस दुनिया में नही रही लेकिन एक बेहतरीन अदाकारा के तौर पर भारतीय सिनेमा में उनके अद्वतीय योगदान को कभी भुलाया नही जा सकता है।शोहरत ने उनके कदम चूमे और अब तक वे अपने काम के दम पर बॉलीवुड में कायम रही।
श्रीदेवी 12 साल की उम्र में ही दक्षिण की फिल्मों में बड़ा नाम बन चुकी थी। 1978 में एक फिल्म ‘सोलहवां सावन’ आई ये सुपरहिट फिल्म ’16 वयातिनील का रीमेक थी, जिसमें श्रीदेवी के साथ रजनीकांत और कमल हासन नजर आए थे।तमिल में फिल्म सुपरहिट रही थी, लेकिन हिंदी में जबरदस्त फ्लॉप रही।श्रीदेवी इस सबके बीच दक्षिण में अपनी एक्टिंग का डंका बजाती रहीं।
बॉलीवुड में 1983 का साल उनके लिए लकी रहा और सदमा फिल्म के नेहालता के कैरेक्टर ने उन्हें पहचान दिलाने का काम किया।इसी साल आई ‘हिम्मतवाला’ ने उन्हें बॉलीवुड में स्थापित किया। जीतेंद्र के साथ उनकी जोड़ी सुपरहिट रही।जीतेन्द्र के साथ उन्होने सर्वाधिक फिल्में भी की।
श्रीदेवी ने जब बॉलीवुड में कदम रखा तो उन्हें हिंदी तक नहीं आती थी और एक्ट्रेस नाज उनके लिए डबिंग करती थीं. लेकिन ‘चांदनी (1989)’ फिल्म में पहली बार उन्होंने खुद के लिए डबिंग की और यश चोपड़ा की ये फिल्म सुपरहिट रही थी। इसी तरह 1986 की उनकी हिट फिल्म ‘नगीना’ इच्छाधारी नागिनों की फिल्मों के मामले में आज भी टॉप फिल्मों में शुमार होती है।
‘जूली (1975)’ में दक्षिण की टॉप एक्ट्रेस लक्ष्मी की बहन का किरदार निभाने से लेकर 2017 में ‘मॉम’ की एक बदला लेने वाली मां की कहानी तक, उन्होंने हिंदी सिनेमा में ऐसा लंबा सफर तय किया जिसे भुलाया नहीं जा सकता. इस सफर में उन्होंने ‘सदमा’, ‘हिम्मतवाला’, ‘मि. इंडिया’, ‘चांदनी’, ‘लम्हे’ और ‘नगीना’ जैसी यादगार फिल्में दीं।
जुदाई में काम करने के बाद उन्होंने फिल्मों से 15 साल का ब्रेक लिया। 2012 में फिल्म इंगलिश-विंगलिश के साथ जब वह वापस आई तो एक बार फिर उन्होंने दर्शकों का दिल जीत लिया। वह आखिरी बार 2017 की फिल्म मॉम में नजर आई।
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