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PIL से नाराज सुप्रीम कोर्ट ने ठोका पांच लाख का जुर्माना,जाने क्यों

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट जज की शपथ पर सवाल खड़ा करने और ‘दोषपूर्ण शपथ’ को चुनौती देने पर नाराजगी जताई है। शीर्ष अदालत ने पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।

बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की ‘दोषपूर्ण शपथ’ को चुनौती देने पर नाराजगी जताई है। शीर्ष अदालत ने याचिका दायर करने वाले व्यक्ति पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाया है। एक जनहित याचिका में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष कहा गया कि बंबई उच्च न्यायालय के चीफ जस्टिस की शपथ दोषपूर्ण थी। शीर्ष अदालत ने पांच लाख का जुर्माना लगाते हुए कहा, प्रचार पाने के लिए यह एक तुच्छ प्रयास था।

चीफ जस्टिस की अदालत में सुनवाई
उच्चतम न्यायालय में इस जनहित याचिका की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ में हुई। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश को शपथ राज्यपाल ने दिलाई है और शपथ दिलाए जाने के बाद ही सदस्यता ग्रहण की गई है, इसलिए अब हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की शपथ पर तरह की आपत्तियां नहीं उठाई जा सकतीं।

क्षेत्राधिकार का उपयोग तुच्छ प्रयास 
शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट जज की शपथ को चुनौती देना, याचिकाकर्ता की तरफ से प्रचार का एक प्रयास था। शीर्ष अदालत ने याचिका के प्रकार पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि इस मामले में जनहित याचिका के क्षेत्राधिकार का उपयोग तुच्छ प्रयास है।

शपथ राज्यपाल ने दिलाई है, अब…
कोर्ट ने कहा, “याचिकाकर्ता इस बात पर विवाद नहीं कर सकता, क्योंकि वह यह विवाद नहीं कर सकता कि पद की शपथ सही व्यक्ति को दिलाई गई या नहीं। अदालत ने साफ किया कि शपथ राज्यपाल ने दिलाई है और शपथ लेने के बाद ही नियुक्ति हुई है, ऐसे में ऐसी आपत्तियां नहीं उठाई जा सकतीं।

गंभीर मामलों से हटता है ध्यान
तीन जजों की पीठ ने कहा, “हमारा स्पष्ट मानना है कि इस तरह की तुच्छ जनहित याचिकाएं न्यायालय का समय और ध्यान बर्बाद करती हैं। इससे अदालत का ध्यान अधिक गंभीर मामलों से हट जाता है और न्यायिक जनशक्ति और न्यायालय की रजिस्ट्री के बुनियादी ढांचे का उपभोग होता है।

अदालत ने बताया सख्ती का कारण
कोर्ट ने कहा, अब समय आ गया है जब अदालत को सख्ती दिखाते हुए ऐसी तुच्छ जनहित याचिकाओं पर अनुकरणीय जुर्माना लगाना चाहिए। इसलिए याचिका को 5,00,000 रुपये की लागत के साथ खारिज किया जाता है। इसे याचिकाकर्ता को चार सप्ताह की अवधि के भीतर न्यायालय की रजिस्ट्री में जमा करना होगा।”

लखनऊ में कलेक्टर के माध्यम से वसूली
शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि चार हफ्ते में लागत जमा नहीं की जाती है, तो इसे लखनऊ में कलेक्टर और जिला मजिस्ट्रेट के माध्यम से भू-राजस्व के बकाया के रूप में वसूला जाएगा। बता दें कि शीर्ष अदालत अशोक पांडे की तरफ से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें कहा गया था कि वह बॉम्बे उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को दिलाई गई ‘दोषपूर्ण शपथ’ से व्यथित हैं।

शपथ पर आपत्तियों के समर्थन में दलीलें
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि मुख्य न्यायाधीश ने संविधान की तीसरी अनुसूची का उल्लंघन करते हुए शपथ लेते समय अपने नाम के पहले “मैं” शब्द का इस्तेमाल नहीं किया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि केंद्र शासित प्रदेश दादरा और नगर हवेली और दमन और दीव सरकार के प्रतिनिधियों और प्रशासक को शपथ समारोह में आमंत्रित नहीं किया गया था।