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अब ‘दिग्विजय’ खुद को नहीं कांग्रेस को करेंगे बुलन्द – अरुण पटेल

अरूण पटेल

राजनीति में पारंगत राजनेता दिग्विजय सिंह अब धर्म और अध्यात्म से लैस होकर मध्यप्रदेश  की राजनीति में आगे क्या कदम उठायेंगे इसको लेकर न केवल कांग्रेसियों को बल्कि भाजपा खेमे में भी उत्सुकता से इंतजार है। यह सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि यात्रा की समाप्ति के अवसर पर जो नजारा था एक तो उसमें पूरी तरह से राजनीति, धर्म और अध्यात्म का संगम नजर आ रहा था तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कमलनाथ ने यह कहा कि दिग्विजय सिंह हमारी आन, बान और शान हैं और वे अब राजा नहीं संत हैं। वहीं दिग्विजय सिंह का कहना था कि अब वे प्रदेश में राजनीतिक यात्रा पर निकलेंगे और उनका मकसद कांग्रेसजनों को आपस में जोड़कर,फेवीकोल जैसा मजबूत जोड़ लगाना है। वास्तव में वे फेवीकोल की भूमिका में कांग्रेस को जिताने का संकल्प लेकर आगे बढ़ रहे हैं तो यह जोड़ उनके और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच लगना जरूरी है तभी कांग्रेस उतनी एकजुट व मजबूत हो पायेगी जिसका लक्ष्य दिग्विजय सिंह ने तय किया है। बाकी अन्य नेता तो किसी न किसी रूप में दिग्विजय से जुड़े रहे हैं, किसी और को एक साथ जोड़ने की जरूरत है तो वह ज्योतिरादित्य सिंधिया हैं।यह सवाल इसलिए उठता है क्योंकि यात्रा समाप्ति के अवसर पर न तो सिंधिया मौजूद थे और न ही उनका कोई अन्य सिपहसालार।दिग्विजय ने यह अवश्य साफ कर दिया कि राजनीति में उनकी क्या भूमिका होगी और शिवराज के मुकाबले कांग्रेस किस चेहरे को आगे करेगी या नहीं करेगी यह कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी तय करेंगे। यह कहा जा सकता है कि दिग्विजय का मकसद अब अपने लिए नहीं बल्कि कांग्रेस के लिए राजनीति करना है। दूसरे शब्दों में कहें तो वे अब खुद को नहीं कांग्रेस को बुलन्द करेंगे।

ऐसा माना जा रहा है कि जहां तक मध्यप्रदेश का सवाल है दिग्विजय सिंह की भूमिका रथ के सारथी की तरह होगी और इसमें अर्जुन की भूमिका में ज्योतिरादित्य सिंधिया या कमलनाथ होंगे या फिर पांच पांडवों की तरह एक साथ रथ में आरूढ़ होकर चुनावी समर में जीत की पटकथा लिखने की दिशा में कांग्रेस आगे बढ़ेगी। चूंकि दिग्विजय सिंह ने स्वयं कहा है कि वे मुख्यमंत्री पद की रेस में नहीं हैं और न ही वे मुख्यमंत्री का पद स्वीकार करेंगे तब फिर या तो कोई एक अर्जुन बनेगा या सभी मिलकर शिवराज का मुकाबला करेंगे। इस मुद्दे पर अभी शायद राहुल गांधी भी किसी अंतिम निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाये हैं। कमलनाथ का यह कहना कि दिग्विजय हमारी आन, बान, शान हैं और वे अब राजनेता नहीं संत हैं, इस मायने में सही है कि एक तो दिग्विजय सिंह से बड़ा कोई जनाधार वाला नेता कांग्रेस में नहीं है और यदि यह कहा जाए कि एक पलड़े पर दिग्विजय और दूसरे पर बाकी नेताओं को बिठा दिया जाए तो भी पलड़ा दिग्विजय सिंह का ही भारी रहेगा। दिग्विजय सिंह तो नर्मदा परिक्रमा के बाद संत बने हैं लेकिन अब तो राजनीति में धर्म का ऐसा घालमेल हो गया है कि संत सत्ता की कुर्सी पर बैठना अध्यात्मिक ताकत से ज्यादा बड़ा मानने लगे हैं। इन हालातों में दिग्विजय सिंह के लिए राजनीति में अभी कई नये रास्ते खुलने की संभावना बनी हुई है।

राजनीति में जो कहा जाता है वह होता नहीं है और जो होता है वह कई बार नजर नहीं आता। दिग्विजय सिंह नर्मदा यात्रा के पहले भी और बाद में भी यह कह चुके हैं कि वे मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे। भले ही कुछ लोगों के मन में यह आशंका है कि दिग्विजय मुख्यमंत्री भी बन सकते हैं लेकिन जहां तक दिग्विजय का सवाल है उनके बारे में एक बात साफ है कि वे जो कहते हैं उस पर अमल करते हैं और उन्होंने ऐसा किया भी है। 2003 के विधानसभा चुनाव के पूर्व दिग्विजय ने कहा था कि यदि कांग्रेस चुनाव हार जाती है तो वे दस साल तक सत्ता की राजनीति से दूर रहेंगे यानी भविष्य में न तो कोई चुनाव लड़ेंगे और न ही कोई सरकारी पद ग्रहण करेंगे। 2008 तक तो वे विधायक रहे लेकिन उसके बाद अपनी घोषणा के अनुसार उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा। राज्यसभा की सदस्यता भी लगभग दस साल के अंतराल के बाद ली। अब केवल कांग्रेस की सरकार बनाने के लिए राजनीति करने की उनकी मंशा इसलिए है क्योंकि उनका सोचना है कि यदि कांग्रेस उनके कारण चुनाव हारी तो कांग्रेस की सरकार बनाने का काम भी उन्हें ही करना है। लेकिन अब राह उतनी आसान नहीं है, क्योंकि सबसे बड़ी बात तो यह है कि कांग्रेसियों का यह आत्मविश्‍वास उछाल मारने लगा है कि उनकी सरकार बनने ही जा रही है और ऐसा आत्मविश्‍वास चुनाव में कई बार घातक हो जाता है। एक तो कांग्रेसियों को अंतिम समय तक सक्रिय रखना आसान नहीं है, दूसरे भाजपा में प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर चाहे कोई भी रहे भाजपा को जिताने की असली जुगलजोड़ी के रूप में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और केंद्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ही सक्रिय रहने वाले हैं। यह जोड़ी भाजपा के लिए अभी तक लकी साबित हुई है। शिवराज भी मीडिया के सामने एक सवाल के जवाब में यह कह चुके हैं कि उनकी और तोमर की जुगल जोड़ी थी, है और आगे भी बनी रहेगी भले ही हम लोग किसी भी पद पर रहें। इसका मतलब साफ है कि तोमर अध्यक्ष बनें या न बनें लेकिन भाजपा को चुनाव जिताने शिवराज के साथ वे भी एक अहम् किरदार होंगे।

दिग्विजय की आने वाली राजनीतिक यात्रा कब से शुरू होगी यह तो राहुल गांधी से उनकी चर्चा के बाद तय होगा लेकिन इतना वे साफ कह चुके हैं कि इस यात्रा में उनके साथ वे राजनेता होंगे जिनके मन में चुनाव लड़ने की जगह कांग्रेस को जिताने की लालसा होगी।कम से कम कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अजय सिंह और अरुण यादव को उनके नये रूप में सक्रिय होने से चिंतित होने की जरूरत नहीं है क्योंकि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर वे नहीं बैठने वाले हैं। दिग्विजय का वैसे भी राजनीति में कद काफी बड़ा था और अब धर्म, अध्यात्म का जो पहलू उनके भीतर छुपा हुआ था वह सबके सामने प्रकट हो गया है। यह हो सकता है कि दिग्विजय सिंह की स्वयं की दिलचस्पी भले ही न हो लेकिन मुख्यमंत्री की कुर्सी तक कौन पहुंचेगा इसमें वे अहम् भूमिका अदा कर सकते हैं। 300 संतों और राजनेताओं की उपस्थिति में 192 दिन की 3 हजार 325 किलोमीटर की नर्मदा परिक्रमा यात्रा का 9 अप्रैल को नरसिंहपुर जिले के बरमान घाट पर दिग्विजय सिंह ने अपनी धर्मपत्नी अमृता सिंह के साथ समापन किया। उनकी इस यात्रा में पूर्व लोकसभा सदस्य और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रामेश्‍वर नीखरा सह-यात्री के रूप में कदम से कदम मिलाकर चलते नजर आये। ऐसी मान्यता है कि नर्मदा की जो व्यक्ति पूरे भक्तिभाव से परिक्रमा करता है उसका कुछ न कुछ लाभ उसे अवश्य प्राप्त होता है और नीखरा को भी कुछ न कुछ अच्छा फल मिल सकता है। नीखरा का इस यात्रा में साथ चलना इसलिए भी उनकी जीवन्तता का प्रमाण माना जायेगा कि बायपास सर्जरी के बाद भी उन्होंने इतनी कठिन यात्रा को पूरा किया। देखने की बात यही होगी कि दिग्विजय अब अपने लिए नहीं कांग्रेस के लिए जो राजनीति करने वाले हैं वह कितनी फलितार्थ होगी, यह आगामी विधानसभा के चुनाव नतीजों से ही पता चल सकेगा। इतना तो अवश्य हुआ है कि उनके ऊपर जो अल्पसंख्यक परस्त और हिंदू विरोधी होने का जो आरोप चस्पा होता रहा है उससे उन्हें निजात मिल गयी है और एक सच्चे धर्म-परायण विधि-विधान को मानने वाले हिंदू के रूप में उनकी छवि जनमानस में अंकित हुई है। साफ्ट हिंदुत्व की जिस लाइन पर राहुल गांधी कांग्रेस को आगे बढ़ाना चाहते हैं उसे दिग्विजय के इस बदले हुए स्वरूप से भी कुछ न कुछ नई ऊर्जा कांग्रेस को मिलने की संभावना से इंकार नहीं किया  जा सकता।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।