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अपनों के रचे चक्रव्यूह को कैसे भेद पाएंगे ‘अजय’ – अरुण पटेल

अरूण पटेल

मध्यप्रदेश विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ‘राहुल भैया’ जब-जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाते हैं तब-तब यह देखने में आया है कि उनकी टांग खींचने में उनकी अपनी पार्टी के लोग या उनके परिवार के सदस्य ही उनके इर्द-गिर्द एक चक्रव्यूह बनाकर सामने आ जाते हैं। जब वे राष्ट्रीय राजनीति में प्रवेश करने की चाहत लेकर आगे बढ़ते हैं तब उनके मंसूबों पर बहुत ही कम वोटों के अन्तर से पानी फिर जाता है और इसमें भी अहम भूमिका उनकी अपनी ही पार्टी के  लोगों की या अपने परिजनों की होती है। ऐन मौके पर उनकी पार्टी के लोग विरोधी खेमे में खड़े नजर आते हैं और किसी को भनक भी नहीं लग पाती। अजय सिंह 20 जून को शिवराज सिंह सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की सूचना देने वाले थे उसके एक दिन पूर्व 19 जून को अर्जुन सिंह की धर्मपत्नी और अजय सिंह की माँ सरोज सिंह ने भोपाल के न्यायालय में एक परिवाद दायर कर अजय सिंह पर अपना इलाज न कराने सहित घेरलू हिंसा करने का आरोप लगा दिया। अजय सिंह के इर्द-गिर्द जो चक्रव्यूह बन रहा है उससे वे कैसे बाहर निकलेंगे यही देखने की बात होगी। लेकिन टाइमिंग को लेकर अजय सिंह का यह आरोप अपने आपमें अहमियत रखता है कि जब-जब वे अविश्वास प्रस्ताव लाते हैं तब-तब उनके विरुद्ध षड्यंत्र किया जाता है। जिस अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस अजय सिंह ने दिया है उस पर विधानसभा के इस सत्र में चर्चा हो पाती है या इस प्रस्ताव का हश्र भी 2013 में लाये गये अविश्वास प्रस्ताव की तरह होता है। क्योंकि सत्ताधारी पक्ष इस बात को उठाने का कोई अवसर हाथ से नहीं जाने देगा कि पहले वे अपनी माँ का इलाज करायें और परिजनों का विश्वास हासिल कर लें, बाद में सरकार के प्रति अविश्वास की बात करें।

अजय सिंह का कहना है कि जब-जब वे अविश्वास प्रस्ताव लाते हैं उनके साथ षड्यंत्र होता है पिछली बार कांग्रेस विधायक चौधरी राकेश सिंह पार्टी छोड़कर ऐन मौके पर भाजपा में चले गये थे और इस बार पारिवारिक विवाद सामने आया है। उनका कहना था कि इस मामले में जो वकील पेश हुए हैं वे वकील साहब किसके वकील हैं और किससे जुड़े हैं यह पता कर लें तो पता चल जायेगा कि षड्यंत्र में कौन-कौन शामिल हैं। उन्होंने इस बात से भी इन्कार नहीं किया कि इसमें माँ और बहन  भी शामिल हैं। यह एक बड़ी पुरानी कहावत है कि दूध का जला छाछ फूंक-फूंक कर पीता है तब अजय सिंह यह क्यों नहीं भांप पाये कि इस बार भी कुछ ऐसा हो सकता है जैसा कि पिछले समय हुआ था। उनका अपना उपनेता अविश्वास प्रस्ताव पेश होते समय ही दल बदल लेता है और उन्हें इसकी भनक तक नहीं लगती। क्या इससे यह संकेत नहीं मिलता कि उनके अपने संपर्क सूत्रों में भी कहीं न कहीं कमी है और उन्हें पता तब चलता है जब षड्यंत्र अंजाम तक पहुंच जाता है। लगता है राजनीतिक चुनौतियों से जूझने की अपनी शैली पर अजय सिंह को पुनर्विचार करना होगा और कुछ ऐसे चतुर राजनीति में पारंगत लोगों को अपने साथ जोड़ना होगा जो इस प्रकार के हथकंडों से निपटने और कब कैसे घात-प्रतिघात हो सकते हैं उसका पूर्वानुमान लगा सकें और होने वाले राजनीतिक नुकसान से उन्हें बचा सकें।

अजय सिंह का कहना है कि हर परिवार में कुछ न कुछ विवाद होता है लेकिन इसमें षड्यंत्र इसलिए है कि अभी ही यह मामला क्यों आया पहले भी आ सकता था। जहां तक उनकी बहन वीणा सिंह का सवाल है सारा प्रदेश जानता है कि उन्होंने 2008 का लोकसभा चुनाव निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में इसलिए लड़ा ताकि मुझे लोकसभा की टिकट न मिल पाये। इसके आगे की बात भले ही अजय सिंह ने न कही हो लेकिन एक बड़ा राजनीतिक खामियाजा उनके पिता अर्जुन सिंह को भी भुगतना पड़ा था और वे 2009 के बाद दुबारा बनी डॉ. मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार में यदि मंत्री नहीं बन पाये तो उसमें एक अहम कारण वीणा सिंह का निर्दलीय चुनाव लड़ना था। उनके चुनाव मैदान में होने के कारण ही कांग्रेस के इंद्रजीत पटेल लोकसभा चुनाव हार गये। वीणा सिंह ने इस बात का भी ख्याल नहीं रखा कि अर्जुन सिंह के सबसे नजदीकी व्यक्ति इंद्रजीत पटेल थे जो हमेशा उनके साथ रहे और यहां तक कि जब अर्जुन सिंह ने तिवारी कांग्रेस बना ली थी उस दौरान भी अपने मंत्री पद को जोखिम में डालकर अर्जुन सिंह के हर कार्यक्रम में शामिल रहे, यह बात अलग थी कि दिग्विजय सिंह ने उन्हें मंत्रिमंडल में बनाये रखा था। उन्हीं इंद्रजीत पटेल की हार का कारण वीणा सिंह बनीं, क्योंकि उन्हें जितने मत मिले उससे कम मतों से पटेल चुनाव हारे थे। यह किसी से छिपा हुआ नहीं है कि वीणा सिंह की राजनीतिक महत्वाकांक्षा अर्जुन सिंह का उत्तराधिकारी बनने की रही है लेकिन चूंकि अजय सिंह राजनीति में स्थापित हैं इसलिए उनकी यह इच्छा उस समय तक पूरी नहीं हो सकती क्योंकि राजनीति में सामान्यतः उत्तराधिकारी बशर्ते वह राजनीति में हो। अजय सिंह अस्सी के दशक से ही राजनीति में सक्रिय हैं।

अजय सिंह अपने विरुद्ध षड्यंत्र होने की जो बात कह रहे हैं उससे जुड़ा हुआ एक घटनाक्रम यह भी है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में अजय सिंह सतना से कांग्रेस प्रत्याशी थे और उनके चुनाव प्रचार अभियान के एक बड़े रोड-शो में राजीव श्ाुक्ला और अमीषा पटेल के साथ कांग्रेस विधायक नारायण त्रिपाठी भी शामिल थे तथा अजय सिंह के लिए वोट मांग रहे थे। उसके बाद त्रिपाठी ने ऐन मौके पर कांग्रेस छोड़ दी और भाजपा में शामिल हो गये तथा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ आमसभा में उपस्थित रहकर अजय सिंह को चुनाव हराने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। यह चुनाव अजय सिंह 10 हजार से भी कम मतों से हारे थे। त्रिपाठी ने भी उसी तरह से पाला बदला जिस तरह से चौधरी चौधरी राकेश सिंह चतुर्वेदी ने बदला था और अजय सिंह के पास इतना समय नहीं था कि वे डेमेज कंट्रोल कर पाते क्योंकि उसके बाद चुनाव प्रचार बंद हो गया था। अजय सिंह के इर्द-गिर्द जो राजनीतिक चक्रव्यूह बने हैं उनमें उनके अपने दल के कुछ नेताओं की भूमिका से इन्कार नहीं किया जा सकता। अब तो उनकी अपनी माँ ने भी उनके लिए एक बड़ा राजनीतिक झमेला खड़ा कर दिया है जिसका कानूनी पहलू तो अलग है, राजनीतिक व सामाजिक तौर पर अजय सिंह के लिए इन हालातों से निपटना एक बड़ी चुनौती होगी। क्योंकि भारतीय जनता पार्टी इसका पूरा-पूरा फायदा उठायेगी और इस बात की पूरी कोशिश करेगी कि अधिक से अधिक इसका राजनीतिक खामियाजा अजय सिंह को उठाना पड़े। वीणा सिंह के पति भुवनेश प्रताप सिंह राजा बाबा ने भाजपा में जाने की बात को नकारते हुए कहा है कि यदि जाना होता तो पांच साल पहले चले जाते जब भाजपा ने उन्हें आफर दिया था, लेकिन हमने स्वीकार नहीं किया था। अजय सिंह के विरुद्ध वीणा सिंह के चुनाव लड़ने का सवाल ही नहीं उठता है क्योंकि अजय सिंह के कारण ही हम वहां (चुरहट) की राजनीति से बहुत दूर रहते हैं। कम से कम उन्होंने यह तो स्वीकार कर ही लिया कि भाजपा से पांच साल पहले ही उनके संपर्क स्थापित हो गये थे।

और यह भी अजय सिंह और सरोज सिंह के इस विवाद में अर्जुन सिंह के साथ हमेशा साये की तरह रहने वाले और एक प्रकार से उनके परिवार के सदस्य की तरह रहे मोहम्मद यूनुस का उत्तर अपने आप में काफी कुछ कह जाता है। यूनुस का कहना है कि श्रद्धेया मम्मा साहिबा के दिमाग पर वीणा सिंह विराज गयी हैं, उन्हीं का पूर्ण नियंत्रण है, मम्मा साहिबा के शरीर में जहां दिल है वहां दिल में उनके दोनों पुत्र हैं। यूनुस सदैव दिल के साथ रहा है और रहेगा। एक माँ अपने दिल की बात सुनेगी, माँ तो माँ ही है पुत्रों का वात्सल्य उन्हें अपने पुत्रों के पास ले आयेगा और तब मस्तिष्क का सब ताना-बाना तार-तार हो जायेगा। भले ही यूनुस ने इसके आगे कुछ न कहा हो लेकिन जानकारों का अनुभव है कि जहां तक वीणा सिंह के मस्तिष्क पर हावी होने का सवाल है वे सरोज सिंह ही नहीं एक प्रकार से अर्जुन सिंह के मस्तिष्क पर भी उनके केंद्रीय मंत्रित्वकाल के अंतिम दो सालों में हावी थीं और अर्जुन सिंह से केवल वे ही मिल पाते थे जिन्हें वीणा सिंह मिलवाना पसंद करती थीं।

 

सम्प्रति-लेखक श्री अरूण पटेल अमृत संदेश रायपुर के कार्यकारी सम्पादक एवं भोपाल के दैनिक सुबह सबेरे के प्रबन्ध सम्पादक है।