दिल्ली-एनसीआर में दिन के साथ रात में भी जमीनी स्तर पर ओजोन की मात्रा बढ़ी हुई है। जनवरी से लेकर जुलाई मध्य तक की 199 में से 161 रातों में ओजोन का स्तर सामान्य से ज्यादा रहा। इसमें 99 रातें गर्मियों की और 62 सर्दियों की रहीं। रात के 10 बजे से लेकर 2 बजे तक इसका स्तर उच्च पाया गया। इस बीच प्रति घंटे ओजोन का स्तर 100 माइक्रो ग्राम प्रति घन मीटर से अधिक है। दिल्ली के लोधी रोड, करणी सिंह रेंज सरीखे ऐसे इलाके ओजोन प्रदूषण के हॉट स्पॉट बने हैं, जहां अमूमन प्रदूषण का स्तर कम होता है। इसे दुर्लभ घटना बताते हुए विशेषज्ञ इसकी वजह दिल्ली-एनसीआर में ओजोन बनने और टूटने की प्रक्रिया में देख रहे हैं। इसका सीधा असर श्वसन तंत्र पर पड़ रहा है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के दिल्ली-एनसीआर के 58 एयर क्वालिटी मॉनीटरिंग स्टेशन से मिले रीयल टाइम आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने इससे जुड़ी रिपोर्ट तैयार की है। आंकड़े एक जनवरी से 18 जुलाई के बीच के हैं। रिपोर्ट बताती है कि ओजोन की मात्रा में चिंताजनक रूप से वृद्धि हुई है। अमूमन गर्मी के दिनों में होने वाली यह घटना अब पूरे साल और रातों में भी दिख रही है। इसमें सिफारिश की गई है कि सरकार को नीतिगत दखल देकर इसे दूर करना पड़ेगा। इसमें कार, कारखानों और बिजली संयंत्रों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड जैसी गैसों और अन्य प्रदूषकों की मात्रा में कमी लानी होगी।
इस तरह बनती और टूटती ओजोन
यह किसी भी स्रोत से सीधे तौर पर उत्सर्जित नहीं होती है। यह वाहनों, बिजली संयंत्रों, कारखानों और अन्य स्रोतों से निकलने वाली नाइट्रोजन ऑक्साइड और वाष्पशील कार्बनिक यौगिकों (वीओसी) से बनती है। इसमें सूर्य का प्रकाश जरूरी होता है। जमीनी स्तर पर ओजोन की प्रकृति क्रियाशील और अस्थाई है। रात में जब सूर्य का प्रकाश नहीं होता, तब ओजोन व नाइट्रिक आक्साइड के साथ प्रतिक्रिया कर ऑक्सीजन और नाइट्रोजन डाई ऑक्साइड में टूट जाती है। लेकिन इस वक्त ऐसा नहीं हो रहा है। रिपोर्ट बताती है कि इसकी वजह यह है कि दिन में इसका स्तर बहुत ज्यादा रहता है। रात में ओजोन को तोड़ने के लिए नाइट्रिक ऑक्साइड नहीं मिल पाता। खासतौर से वहां, जहां प्रदूषण का स्तर कम है।
श्वसन तंत्र पर बुरा असर
ओजोन का स्तर बढ़ने से बुजुर्ग और बच्चे जिनके फेफड़ों का विकास पूरी तरह नहीं हुआ है, उनपर गहरा असर डाल रही है। इससे श्वसन तंत्र में सूजन और अन्य तरह से नुकसान हो सकता है। इतना ही नहीं ओजोन की वजह से फेफड़े संक्रमण के प्रति संवेदनशील हो सकते हैं और अस्थमा और क्रॉनिक ब्रोंकाइटिस जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस साल दिल्ली-एनसीआर में 176 दिन ग्राउंड लेवल ओजोन का स्तर सामान्य से अधिक रहा है। रिपोर्ट में इस बात का भी खुलासा हुआ है कि इस साल ओजोन प्रदूषण की बढ़ती समस्या 2020 में लॉकडाउन के दौरान गर्मियों में पैदा हुई समस्या से भी कहीं ज्यादा व्यापक है।
कहां कितनी रातें रहीं ओजोन से प्रभावित
.डॉ.करणी सिंह शूटिंग रेंज—-42
.अलीपुर———————–34
.डीटीयू————————-33
.नरेला————————-29
.मुंडका————————-27
.नेहरु विहार——————-23
.रोहिणी————————22
.बवाना————————19
.सोनिया विहार—————19
.वसुंधरा———————-19
(नोट: सीएसई के आंकड़ों के अनुसार जब ओजोन का स्तर रात में 100 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से अधिक रिकॉर्ड किया है।)
ओजोन प्रदूषण से जुड़ी कुछ समस्याएं ये हैं
-आंखों, नाक, और गले में जलन
-फेफड़ों की बीमारियां बढ़ना
-हृदय या फेफड़ों की बीमारी वाले लोगों में समय से पहले मौत का खतरा बढ़ना
-त्वचा का कैंसर, श्वास रोग, अल्सर, मोतियाबिंद जैसी बीमारियां
पीएम 2.5, ओजोन, नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य गैसों से होने वाले संयुक्त खतरों से निपटना होगा। आमतौर पर जैसे-जैसे प्रदूषण के कणों का स्तर गिरता है, उसके साथ ही नाइट्रोजन ऑक्साइड और ग्राउंड-लेवल ओजोन का स्तर बढ़ जाता है। ऐसे में ओजोन को नियंत्रित करने के लिए उद्योगों, वाहनों, घरों और खुले में जलने से होने वाले जहरीले उत्सर्जन को रोकने के लिए सख्त नियमों की आवश्यकता है। -अनुमिता रॉय चौधरी, कार्यकारी निदेशक, सीएसई
जमीनी स्तर पर ओजोन की जटिल रासायनिक संरचना के कारण इसे ट्रैक और नियंत्रित करना मुश्किल है। यह जहरीली होती है, इस वजह से वायु गुणवत्ता मानक अल्पकालिक जोखिम (एक घंटे और आठ घंटे के औसत) के लिए निर्धारित किए गए हैं और अनुपालन इन सीमाओं से अधिक दिनों की संख्या पर आधारित है। ऐसे में इस मुद्दे पर जल्द से जल्द कार्रवाई की आवश्यकता है। -अविकल सोमवंशी, अर्बन लैब प्रोग्राम मैनेजर, सीएसई
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