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अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर एक दिन में 16 बार होता है दिन-रात

इसरो के अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पर पहुंच चुके हैं। यहां वे 14 दिनों तक कई वैज्ञानिक प्रयोग करेंगे। आइये जानते हैं आइएसएस क्या है और यह कैसे काम करता है?

आइएसएस पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली सबसे बड़ी मानव निर्मित वस्तु है। यह नासा (अमेरिका), रोस्कोस्मोस (रूस), यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ईएसए), जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी (जेएएक्सए) और कनाडाई अंतरिक्ष एजेंसी (सीएसए) के बीच सहकारी कार्यक्रम के रूप में संचालित होने वाला बहु-राष्ट्रीय परियोजना है।

यह वैज्ञानिक अनुसंधान, अंतरिक्ष अन्वेषण और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में कार्य करता है। इसकी चौड़ाई 358 फीट और वजन चार लाख किलोग्राम से अधिक है। यह पृथ्वी की कक्षा में 370 से 460 किमी की ऊंचाई पर परिक्रमा करता है, जिसे वायुमंडलीय खिंचाव के कारण समय-समय पर समायोजन की आवश्यकता होती है। सौर ऊर्जा से चलने वाले इस यान के पंखों का फैलाव (356 फीट) दुनिया के सबसे बड़े यात्री विमान, एयरबस ए380 (262 फीट) से भी अधिक है।

16 मॉड्यूल से मिलकर बना है ISS
अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन 16 दबावयुक्त मॉड्यूलों से बना है जिन्हें अलग-अलग समय पर एसेंबल किया गया है। 1998 में मॉड्यूलों को कक्षा में प्रक्षेपित और संयोजित करने के साथ आइएसएस का निर्माण शुरू हुआ था। इसकी कार्यक्षमता को बनाए रखने के लिए समय-समय पर नए मॉड्यूल और सिस्टम जोड़े गए।

बड़े मॉड्यूल और अन्य भागों को 42 असेंबली उड़ानों के माध्यम से पहुंचाया गया, जिनमें से 37 अमेरिकी अंतरिक्ष शटलों के माध्यम से और पांच रूसी प्रोटान/सोयुज राकेटों के माध्यम से पहुंचाए गए। नवंबर, 2000 से यह अंतरिक्ष स्टेशन लगातार कार्यरत है, तब इसमें केवल तीन मॉड्यूल थे।

360 डिग्री का दृश्य दिखाने वाली खिड़की साल 2000 के बाद से, इसका आकार एक फुटबाल मैदान के बराबर हो गया है, जिसमें 21 देशों से 60 से अधिक अभियानों के 260 से अधिक व्यक्तियों ने हिस्सा लिया है। स्टेशन के अंदर रहने और काम करने की जगह छह बेडरूम वाले घर से बड़ी है।

इसमें छह शयन कक्ष, दो बाथरूम, एक जिम और 360 डिग्री का दृश्य दिखाने वाली बे विंडो है। हर दिन 16 सूर्योदय और सूर्यास्त पृथ्वी से 370 किमी ऊपर स्थित, आइएसएस लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से ग्रह की परिक्रमा करता है।

इसका मतलब है कि यह 24 घंटों में पृथ्वी की 16 परिक्रमाएं करता है। इसलिए यहां लोग हर दिन 16 सूर्योदय और सूर्यास्त का अनुभव करते हैं। 2030 तक संचालन की योजना नासा और उसके अंतरराष्ट्रीय साझेदार 2030 तक आइएसएस को संचालित करने की योजना बना रहे हैं। इसके बाद इसे प्रशांत महासागर के एक सुदूर क्षेत्र में गिरा दिया जाएगा। विज्ञानी स्टेशन को सुरक्षित रूप से सेवानिवृत्त करने के लिए एक नियंत्रित डीआर्बिट की योजना पर काम कर रहे हैं।