What is Biodiversity Index : घटते जंगलों के कारण पर्यावरण और जैव विविधता को हो रहे नुकसान पर आज पूरी दुनिया में चर्चा आम हो गई है। इकोलाजी को बर्बाद कर आज कई देश अमीर बन चुके हैं, लेकिन कभी किसी देश ने इस बात का अध्ययन नहीं किया कि उन्होंने अपना कितना पर्यावरण या प्रकृति को खोकर विकास हासिल किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इसका पैमाना क्या है कि हमने विकास के नाम पर जैव विविधता का कितना नुकसान किया है। क्या ऐसी कोई प्रणाली है जो इसका मुल्यांकन कर सके। इस कड़ी में आज हम जैव विविधता इंडेक्स की बात करेंगे। इसके साथ यह भी बताएंगे कि यह इंडेक्स कैसे काम करता है।
1- वर्ष 2018 में एक अध्ययन में यह दावा किया गया था कि आज से करीब 6000 साल पहले यूरोप का दो तिहाई हिस्सा घनों जंगलों से ढका हुआ था, लेकिन कृषि भूमि और ईंधन के लिए जंगलों की कटाई के कारण आज पूरे यूरोप में जंगलों का क्षेत्रफल आधा रह गया है। फिलहाल यूरोप का सिर्फ एक तिहाई हिस्सा ही जंगलों से ढका हुआ है। ब्रिटेन और आयरलैंड जैसे देशों में सिर्फ दस फीसदी ही जंगल बचे हैं।
2-वैज्ञानिकों के लिए यह चुनौती थी कि जैव विविधता को नापने का पैमाना क्या हो। यह कैसे तय किया जाए कि कौन सा देश जैव विविधता के लिहाज से अपने को सुरक्षित रखा है और किस देश में जैव विविधता घटी है। लंदन के प्राकृतिक इतिहास संग्रहालय के प्रोफेसर एंडी पुरविस और उनकी टीम ने पहली बार जैव विविधता का इंडेक्स (Biodiversity Index) तैयार किया था। एंडी का कहना है कि इस बायोडायवर्सिटी इंडेक्स के जरिए विभिन्न देशों में सीधे तौर पर तुलना की जा सकती है कि किस देश ने अपनी जैव विविधता (Biodiversity) को कितना सुरक्षित रखा है और विकास की दौड़ में अपनी कितनी जैव विविधता को खो दिया है।
3- जैव विविधता सूचकांक में बड़े पैमाने पर डाटा के संग्रहित किया जाता है। इन सभी डाटा को बेहद सहेज कर रखा जाता है। हर देश को शून्य से 100 फीसद के पैमाने पर रैंक दी जाती है। शून्य का मतलब यह है कि किसी देश में अनिवार्य रूप से कोई जैव विविधता नहीं बची है और 100 फीसद का अर्थ है कि प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र पूरी तरह से बरकरार हैं। जैव विविधता इंडेक्स में पौधों, जानवरों और पर्यावरण से संबंधित बहुत ज्यादा डेटा पर आधारित है। यह इंडेक्स वर्ष 2012 से तैयार किया जा रहा है। इस सूचकांक के लिए दुनियाभर से एक हजार से ज्यादा शोधकर्ताओं ने डाटा तैयार किया है। वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र ने भी चेतावनी दी थी कि हमारी धरती के पर्यावरण में अभूतपूर्व गिरावट दर्ज की गई है और 10 लाख प्रजातियों पर विलुप्त होने का खतरा है।
जानें कैसे संकट में है धरती
पृथ्वी का तापमान और मौसम में आते बदलाव से जीवों और पादपों की प्रजातियों के आवासों पर संकट खड़ा हो गया है। वनस्पतियों एवं जीवों की प्रजातियों के विलुप्त होने से नई औषधियों के विकास में बाधा पहुंची है। पारिस्थितिक तंत्र की अनुकूलता में कमी आ सकती है और आनुवांशिक स्रोतों का नुकसान हो सकता है। संपूर्ण धरती पर जंतुओं, वनस्पतियों, पारिस्थितिक तंत्र की बहुलता से ही जैव विविधता का निर्माण होता है। समुद्री जैव विविधता के मुकाबले स्थलीय विविधता 25 गुना अधिक है। एक आकलन के मुताबिक पर्यावरण के नष्ट होने से पृथ्वी पर पाई जाने वाली करीब एक फीसद प्रजातियां विलुप्त हो चुकी है। पृथ्वी पर ज्ञात 5,487 स्तनधारी प्रजातियों में से 1,141 पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। एक आकलन के अनुसार 2050 तक 30 फीसद पादप प्रजातियों के विलुप्त होने की आशंका है। लोगों में जागरूकता बढ़ाने के लिए इसीलिए संयुक्त राष्ट्र ने 2011-2020 की अवधि को संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता दशक घोषित किया है।
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