सलमान खान की जमानत के बाद यह खबर कोफ्त पैदा करने वाली है कि जेल से छूटने के बाद उनके फैन्स ने राहों पर फूलों की पंखुरियां बिछाकर उनका स्वागत किया। स्टारडम के ये कसैले दृश्यो आंखों में किरकिरी और जहन में खलल पैदा करते हुए खुद को कुरेदने पर मजबूर करते हैं कि ‘स्टारडम’ के सामाजिक मनोविज्ञान को किस तरह पढ़ा जाए…? सलमान के जेल से छूटने का यह ‘अजब-गजब’ धारावाहिक देखने के बाद इच्छा होती है कि जहन को इतना कुरेदा जाए कि समाज के तौर-तरीको में खून छलछलाने लगे, मवाद बह निकले, घाव धुलने लगें… लेकिन लोहे की परतों को विचारों की सीरिंज से कुरेदना अपनी कलम की निब तोड़ने जैसा काम है।
परेशान करने वाली खबरें वैसे भी टीवी स्क्रीनों पर कुहराम मचाती रहती हैं। एक खबरनवीस के लिए सरोकारों को किनारे रख कर मीडिया की स्क्रीन पर कोरी अफवाहों की तरह स्क्रोल करना और गुम हो जाना संभव नहीं है। पेशेगत विचारशीलता के तकाजे जहन में घटनाओं के पक्ष-विपक्ष में मत-विमत आकार लेते रहते हैं। जिस दिन सलमान खान को जोधपुर न्यायालय में सजा सुनाई जाने वाली थी, मैंने तय किया था कि सजा के ‘ऑपरेटिव-पार्ट’ जानने के अलावा इस खबर के बारे में मैं कुछ भी सोच-विचार अथवा जानने की कोशिश नहीं करूंगा, लेकिन अनजान अथवा अनभिज्ञ बने रहने का ऑप्शन अब आपके हाथों से निकल चुका है, क्योंकि बजरिए स्मार्ट-फोन सूचनाओं की तांत्रिक-क्रियाओं की धूनी आपकी जेब में धुंआ उगलती रहती है। भले ही मेरे लिए काले हिरण के शिकार का यह बेरहम एपीसोड हिकारत से देखी जानी वाली घटना रही हो, लेकिन टीवी-चैनलों के लिए इस न्यूज में ब्रेकिंग-न्यूज का गोला-बारूद था। टीवी चैनलों को देख कर लगा कि उस दिन सलमान खान की जमानत को लेकर देश कितना परेशान था?
बहरहाल, सलमान खान को जमानत मिलने की खबर सुनने के बाद लगा था कि चलो, देश के सिर से एक बड़ा बोझ उतर गया… अब हमारे विधिवेत्ता, खबरनवीस, विचारशील एंकर और रिपोर्टर देश के ‘छोटे-मोटे’ (?) राजनीतिक मसलों पर सोच सकेंगे… कर्नाटक चुनाव में भाजपा और कांग्रेस की कुश्ती की उठापटक देख सकेंगे, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बात सुन सकेंगे, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के जुमलों को परोस सकेंगे, कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी के राजनीतिक तानों का तानाबाना देश के सामने प्रस्तुत कर सकेंगे..। लेकिन मीडिया के धुरन्धर देश को यह बताने लगे कि जोधपुर के जेल में सलमान के अड़तालीस घंटे कैसे गुजरे…?
पांच बार जेल जा चुके सलमान खान के ‘स्टारडम’ का ड्रामा कई सवाल खड़े करता है। मुंबई के ‘हिट-एण्ड-रन’ केस में वो किस तरह सजा से बचे, यह किसी से छिपा नहीं है। उनके हर अपराध के मुकदमे अभी तक मैनेज होते रहे हैं। जोधपुर में पहली बार बिश्नोई समाज की धार्मिक आस्थाओं पर उनका बस नहीं चला और उन्हें सजा भुगतना पड़ी है। शिकार जैसे अपराध में बीस साल तक मुकदमा चलने के बाद मिली पांच साल की सजा को लेकर उनके फैन्स में कोई मलाल क्यों नजर नहीं आ रहा है? कारण साफ है कि जोधपुर के जेल-एपीसोड को भी एक ‘मार्केटिंग-इंवेट’ की तरह मैनेज किया गया है। लाखों फैंस के नाम पर फिल्म इण्ड्स्ट्रीि में बड़े-बड़े खेल होते रहे हैं। फिल्मी दुनिया एक ऐसा ड्रीम-लैण्ड है, जहां मौत भी परियों के पंख पर सवार होकर आती है। जेल से जमानत मिलने पर राहों में फूल बिछाने की दास्तान भी मौत को अलंकृत करने जैसा इवेंट-मैनेजमेंट है।
सलमान पर फिल्म इण्डस्ट्री के निर्माताओं ने पांच सौ करोड़ रुपए लगा रखे हैं। सलमान के ये इन्वेस्टर्स पहले दिन से खामोश नहीं बैठे थे। वो जानते थे कि सलमान की सजा को कैसे बेचना और भुनाना है? अब वो फिल्मेंल खूब चलने वाली हैं, इस दरम्यान जो मीडिया के जिक्र में रही हैं। टीवी चैनलों ने टीआरपी के नाम पर खेल किया और सलमान ने बैठे-ठाले करोड़ों रुपयो की पब्लिसिटी बटोर ली। उनकी इंसानियत की किस्सागोई के सहारे प्रशंसकों से यह कहलाया गया कि उनकी सजा माफ होनी चाहिए। खुशनसीबी है कि कोर्ट बहकावे में नहीं आ रहे हैं। उनकी सुपर-स्टार की इमेज को ‘लार्जर देन लाइफ’ बताना मुनासिब नहीं है। यह भी मार्केटिंग का हिस्सा है। लोगों को सलमान के स्टारडम के मायाजाल को तोड़ना होगा, क्योंकि उनकी करतूतों को देश की न्याय-व्यवस्था दंडित कर रही है।
सम्प्रति- लेखक श्री उमेश त्रिवेदी भोपाल एनं इन्दौर से प्रकाशित दैनिक सुबह सवेरे के प्रधान संपादक है। यह आलेख सुबह सवेरे के 09अप्रैल के अंक में प्रकाशित हुआ है।वरिष्ठ पत्रकार श्री त्रिवेदी दैनिक नई दुनिया के समूह सम्पादक भी रह चुके है।