
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर पश्चिमी दुनिया ने जो प्रतिबंध ईरान पर लगाये थे जिससे ईरान का व्यापार सिकुड़ा है, डॉ. मसूद की नीति के चलते अब यह संभावना है कि इन प्रतिबंधों से ईरान को मुक्ति मिले और ईरान, यूरोप व दुनिया में व्यापार व विकास का एक अग्रणी देश बन सके।
ईरान में डॉ. मसूद का राष्ट्रपति बनना एक महत्वपूर्ण घटना है जो कई प्रकार से दुनिया को आशान्वित करता है। एक तो इसलिये कि ईरान के धार्मिक प्रमुख खामेनेई का समर्थन जलीली को था, यह चर्चा दुनिया के मीडिया में और ईरान की खबरों में आम थी। खोमेनेई ईरान के धार्मिक गुरु भी हैं और 20 सदस्यीय परिषद के अध्यक्ष भी हैं जो परिषद सारे महत्वपूर्ण निर्णय करती है यानि एक प्रकार से ईरान की सत्ता का वास्तविक नियंत्रण व संचालन खामेनेई के द्वारा होता है। परिषद तो उनकी नामजद जैसी संस्था है।
दूसरे डॉ.मसूद के सामने और भी समस्या थी कि उन्होंने हिजाब विरोधी आंदोलन का समर्थन किया था और एक सार्वजनिक बयान दिया था कि नई पीढ़ी के नव युवकों, युवतियों का अपना अधिकार है कि वे किस प्रकार जीना चाहते हैं। और हिजाब विरोधी आंदोलन व युवक युवतियों का समर्थन किया था। जबकि सैयद जलीली हिजाब समर्थक थे ओर और पूर्व राष्ट्रपति रहीशी जिनकी मृत्यु पिछले दिनों वायु दुर्घटना में हुई, ने आंदोलनकारियों के ऊपर भारी बर्बर तरीके से हमले कराये थे। अमीना महीसी की पुलिस थाने में मौत के बाद हजारों नौजवानों को यहां तक कि हिजाब का विरोध करने वाली बच्चियों को जेलों में डाला गया, लाठियों से पीटा गया, गोलियां चलाई गईं, याने धर्म के नाम पर एक प्रकार की निरंकुश सत्ता का प्रयोग किया गया।
सारी दुनिया में सत्ता के दुरुपयोग और हिंसा के खिलाफ आवाजें उठीं परंतु खोमेनेई एवं रहीसी ने दुनिया की आवाज को नजरअंदाज कर दिया। ऐसे भय व हिंसा के माहौल में डॉ. मसूद का जीतना अपने आप में एक उल्लेखनीय घटना है जो यह सिद्ध करती है कि अब युवा पीढ़ी मजहब के नाम पर कट्टरताओं व प्रतिबंधों को न केवल नकारती है, बल्कि उसका प्रतिकार करने को तैयार है और उस प्रतिकार के लिए होने वाले संघर्ष में हर कुर्बानी व तकलीफ सहने को तैयार है। जिस प्रकार हिजाब विरोधी आंदोलन में हजारों बेटियों ने जेलें काटी उस सविनय अवज्ञा आंदोलन ने, महात्मा गांधी की याद दिलाई और आज भी दुनिया में अहिंसक प्रतिकार सिविल नाफरमानी का प्रतीक महात्मा गांधी हैं, यह सिद्ध कर दिया।
डॉ. मसूद को अधिकांश युवाओं के वोट मिले। ईरान के चुनाव के नियम है कि जिस प्रत्याशी को कुल मतों का 50 प्रतिशत या अधिक मिलता है वही जीता माना जाता है। डॉ. मसूद के सामने एक समस्या यह भी थी कि पहले चरण में खामेनेई समर्थक जलीली के वोट यद्यपि मसूद पेजेश्कियान से कम थे, परंतु इस पहले दौर में दो कटटरपंथी उम्मीदवार जो चुनावी प्रक्रिया में बाहर हुए थे, उनके मत खोमेनेई समर्थक जलीली को मिल सकते थे जो मसूद के लिये एक समस्या हो सकती थी। परंतु ईरान के मतदाताओं ने और विशेषकर युवा मतदाताओं ने इसके बावजूद भी डॉ. मसूद को 50 प्रतिशत से अधिक मत दिये और 1 करोड़ 65 लाख मत पाकर वह जीते। जबकि उनके विरोधी और खामेनेई समर्थक को 1 करोड़ 30 लाख ही मत प्राप्त हुये।
डॉ. मसूद का चुनाव जीतना इसलिये भी आशान्वित करता है कि, उन्होंने न केवल लोकतांत्रिक आंदोलन का समर्थन किया था बल्कि नया ईरान बनाने का सपना लोगों के मन में बोया। यह नया ईरान एक खुला ईरान होगा जहां मजहब के नाम के प्रतिबंध, धार्मिक कटटरतायें तथा कटटरपंथियों की तानाशाही नहीं होगी।
नये ईरान के इस परिवर्तन में उन्होंने दुनिया के देशों से अपने संबंध सुधारने की भी बात कही और ऐसा लगता है कि अब ईरान और अमेरिका के बीच एक नये रिश्तों का मार्ग खुलेगा। ईरान जो अभी तक चीन के अधिक नजदीक था और भारत और ईरान की महत्वाकांक्षी चारवहार बंदरगाह योजना को जो संशय और बाधायें खड़ी हो रही थीं शायद अब उनका भी हल हो सकेगा। नया ईरान अपने विकास के लिये दुनिया के नये-नये क्षेत्रों की ओर उड़ान भर सकेगा जिससे ईरान के नौजवानों को मजहबी बंधनों की आजादी के साथ-साथ रोजगार के नये अवसर मिल सकेंगे।
हालांकि डॉ. मसूद के लिये अपने किये गये वायदों को पूरा करने में कठिनाईयां भी आयेंगी। ईरान में हिजाब विरोधी आंदोलन को रोकने के लिये जो कुख्यात ‘ नैतिकता पुलिस ‘ बनाई गई थी और जिसे अपार अधिकार दे दिये गये थे अब उस तथाकथित पुलिस के अधिकारों को सीमित करना ताकि नया व खुला ईरान अस्तित्व में आ सके, यह एक चुनौती भरा काम है। जो सपने युवाओं ने उनके भाषणों व वायदों में देखे हैं उन सपनों को जमीन पर उतारना अब एक महत्वपूर्ण चुनौती है। जब डॉ. मसूद ने तेहरान में युवकों की आजादी व हिजाब विरोधी आंदोलन का समर्थन किया तथा कहा था कि ‘‘ कौन माँ-बाप नहीं चाहेगा कि उसके बच्चे कालेजों में जायें और हँसते हुये वापिस आयें। कौन माँ-बाप अपने बच्चों को शिक्षण संस्थाओं में भेजकर उनकी लाश ताबूत में वापिस पाना चाहता है।‘‘
श्री मसूद के इस कथन के बाद ईरान के 22 विश्वविद्यालय के छात्रों ने उनका जमकर समर्थन किया था। परंतु एक प्रश्न है कि क्या ईरान के धर्मगुरु खुमैनी जिनके पास परिषद की सत्ता है वे यह सब होने देंगे। क्या वे हिजाब की अनिवार्यता को, पश्चिमी देशों के साथ परमाणु समझौता को, बहाल करने, ईरान को विश्व पटल पर चीनी चंगुल से बाहर निकाल कर मुक्तभूमि की भूमिका अदा करने, इजरायल से रिश्ते सुधारने, फाइनेंशियल एक्शन टास्क को लागू करने जैसी नीतियों को लागू करने देंगे। हालांकि डॉ. मसूद ईरान सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रह चुके हैं और इसलिये उन्हें सरकार के अंदरूनी समस्या व बाध्यताओं की बेहतर जानकारी है परंतु खुमैनी की भविष्य की भूमिका और कटटरपंथी जलीली के प्रतिशोध और विरोध का मुकाबला उन्हें करना होगा। यही उनके कौशल और राजनीति की परीक्षा होगी। दरअसल यह ईरान की कटटरपंथी सत्ता के लिये यू-टर्न जैसा होगा। इसमें कोई दो मत नहीं है कि ईरान की जनता व यूथ डॉ. मसूद के साथ खड़ा है, परंतु मजहबी कटटरपंथ भी आसानी से क्या यह होने देगा? यह चिंता का विषय है।
कई इलाकों में जिस प्रकार पिछली रईसी सरकार ने आंदोलन को दबाने के लिये सेना का सहारा लेकर जुल्म ढाये और अपराधिक मुकदमे बनाये थे, उन्हें भी वापिस करना डॉ. मसूद के लिये एक बड़ी चुनौती होगी। हालांकि युवकों का विशाल जनसमर्थन और उत्साह उनकी एक बड़ी शक्ति है। डॉ. मसूद के नारे पर इसलिये युवकों व मतदाताओं ने विश्वास किया था क्योंकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा था कि ‘जिन सुधारों का वायदा कर रहे हैं यदि वह न ला पाये तो वह समय से पूर्व इस्तीफा दे देंगे। ‘ निसंदेह यह उनके संकल्प का द्योतक है और नैतिकता का भी। परंतु ऐसी स्थिति ईरान की जनता के नये ईरान के सपने और कट्टरपंथ की हुई हार को जीत में बदल सकती है। इस समय दुनिया के सभी उदारवादियों, लोकतंत्रवादियों को कट्टरपंथ के खिलाफ ईरान के जनमत और मसूद के लिये खुला समर्थन व सहयोग देना चाहिये। अगर डॉ. मसूद अपने लक्ष्य में सफल हो जायेंगे तो यह न केवल नये ईरान के लिये बल्कि नई दुनिया के लिये महत्वपूर्ण घटना साबित होगी। कट्टरपंथ के खिलाफ आंदोलन सारी दुनिया में उठेगा, नौजवान सिविल नाफरमानी के लिये निकलेंगे एक उदारमना दुनिया के रास्ते की संभावना बनेगी।
जो देश दुनिया में लोकतंत्र के अग्रणी होने का दावा करते थे आज वे घोर अलोकतांत्रिक सिद्ध हो रहे हैं। एक सदी तक दुनिया में अमेरिका के राष्ट्रपति लिंकन का यह जुमला आदर्श वाक्य के रूप में उद्वित किया जाता था कि डेमोके्रसी इज ए गर्वमेंट ऑफ द पीपुल, बाय द पीपुल एंड फॉर द पीपुल्य याने लोकतंत्र जनता को जनता द्वारा तथा जनता के लिए शासन है, परंतु आज वही अमेरिका ट्रंप जैसे अराजक व हिंसक मानसिकता के व्यक्ति को सत्ता देने के लिये लालायित है। जहाँ एक तरफ डॉ. मसूद ईरान के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति कहते हैं कि मैं वायदे पूरा नहीं कर सका तो इस्तीफा दे दूंगा। और दूसरी तरफ अमेरिका में वर्तमान राष्ट्रपति जो बाइडन, जिन्हें उनकी पार्टी ही नहीं स्वीकार कर रही क्योंकि वे इतने उम्रदराज हो चुके हैं कि विस्मृति के शिकार हैं और अमेरिका की जनता व उनकी पार्टी चाहती है कि वह चुनाव की रेस से बाहर हो जायें ताकि रिपब्लिकन पार्टी के ट्रंप जिन्हें अमेरिकी लोकतंत्र के लिये अमेरीकी प्रबुद्ध वर्ग खतरा मान रहा, चुनाव न जीत सके तथा डेमोक्रेटिक पार्टी पुनरू जीतकर आ सके, कह रहे हैं कि ‘अब तो मैं बस ईश्वर के कहने से ही रेस से हटूँगा। ‘जाहिर है कि ईश्वर यह काम नहीं करता और जो बाइडन अपनी महत्वाकांक्षा के लिये अपनी ही पार्टी को मिटाने व हराने को तैयार हैं। डॉ. मसूद ने न केवल ईरान की राजनीति के लिये बल्कि दुनिया के लिये जो नैतिकता का संदेश दिया है वह उसके लिये बधाई के पात्र हैं।
सम्प्रति- लेखक श्री रघु ठाकुर जाने माने समाजवादी चिन्तक और स्वं राम मनोहर लोहिया के अनुयायी हैं।श्री ठाकुर लोकतांत्रिक समाजवादी पार्टी के भी संस्थापक अध्यक्ष हैं।
CG News | Chhattisgarh News Hindi News Updates from Chattisgarh for India