(18 नवम्बर शहादत दिवस पर विशेष)
(सन्तोष यादव)
इतिहास के पन्नों में दर्ज रेजांगला युद्ध की कहानियों पर जमी धूल हटाने की वर्ष 2010 में शुरू कोशिश अब भी जारी है। लगभग डेढ़ दशक पहले शहादत की अनूठी दास्तां को घर-घर पहुँचाने की शुरू मुहिम मुकाम की ओर है। देश के लिए शहीद वीर जवानों की शहादत के चर्चे आने वाली पीढ़ियों के जुबां पर हो इसके लिए पेशे से शिक्षक अमेठी के संतोष यादव एवं अटेवा जिलाध्यक्ष मंजीत यादव की अगुवाई में सुलतानपुर से 2011 में एक पहल हुई। इसी कड़ी में वर्ष 2011 में यहां पहली बार रेजांगला शौर्य दिवस समारोह मनाया गया। इसी बहाने तबसे विभिन्न कार्यक्रमों में नई पीढ़ी को भारत-चीन युद्ध दौरान रेजांगला की घाटी में 1300 चीनी सैनिकों पर देश के 120 सैनिकों के भारी पड़ने के किस्से सुनाए जा रहे हैं। हरियाणा के रेवाड़ी और गुड़गांव में रेजांगला के वीरों की स्मृति में रेजांगला शौर्य दिवस धूमधाम से मनाया जाता है लेकिन अन्य हिस्सों में इसकी गूंज कम ही सुनाई पड़ती है। सुलतानपुर एवं अमेठी में कार्यक्रम के जरिए संतोष मंजीत की जोड़ी ने रेजांगला से परिचित कराने की पहल की तो आसपास के जिलों अंबेडकर नगर, फैज़ाबाद अयोध्या, प्रतापगढ़ से भी लोग समर्थन में आए।
गौरतलब है कि, छह दशक पहले 18 नवंबर, 1962 और लद्दाख की चुशुल घाटी में प्रवेश का रास्ता रेजांगला भारतीय सैनिकों के बहादुरी और बलिदान के जज्बे का गवाह बना था। भारतीय सेना की 13 कुमाऊं के 120 जवानों ने मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में चीन के 1,300 सैनिकों को मार गिराया था। 18 नवंबर 1962 इतिहास के पन्नो में दर्ज वह ऐतिहासिक दिन है जब देश के 120 जवानों ने लद्दाख की रेजांगला पोस्ट पर दो हजार चीनी सैनिकों से मोर्चा लिया और दो हजार चीनी सैनिकों पर देश के 120 सैनिक भारी पड़े। चीनी सैनिकों के पास भारी मात्रा में तोप और गोले थे, तो भारतीय सैनिकों के पास बुलन्द हौसले थे।
सीमित संसाधन के बावजूद 1300 चीनी सैनिकों को 120 भारतीय सैनिकों ने मौत के घाट उतार दिया था। गौरतलब है कि 1962 के भारत-चीन युद्ध के समय 18 नवंबर को लद्दाख की रेजांगला पोस्ट पर भोर में गोलाबारी की गूंज सुनाई दी। गोला-बारूद और तोप के साथ चीन के दो हजार सैनिकों ने लद्दाख की रेजांगला चौकी पर हमला कर दिया था। उस समय उस चौकी पर कुमांऊ रेजीमेंट की चार्ली कंपनी तैनात थी, जिसकी अगुवाई मेजर शैतान सिंह कर रहे थे। यहां सभी सैनिक आखिरी सांस तक लड़ते रहे और चीन के 1,300 सैनिक मार गिराए। हालांकि 114 वीर जवानों ने भी देश की रक्षा में अपने प्राण गवां दिए जिनमें 111 अहीरवाल क्षेत्र अंतर्गत अहीर (यादव) जाति के ही थे। जो 6 जिंदा बचे थे उन्हें चीनी सैनिक युद्ध बंदी बनाकर ले गए थे लेकिन सभी बचकर निकल आए। रेजांगला की लड़ाई में जो 6 सैनिक जीवित बचे थे उनमें रेवाड़ी के कैप्टन रामचंद्र यादव एवं हवलदार निहाल सिंह यादव रेवाड़ी के हवाले से रेजांगला की घाटी में शहादत दे चुके बहादुर सैनिकों के कहानी किस्से देश-दुनिया में समय-समय पर छपते रहे हैं।रेजांगला चोटी पर शहीद सैनिकों की स्मृति में अहीर धाम बनाया गया है। इस कंपनी में ज्यादातर सैनिक अहीरवाल क्षेत्र से होने के कारण ‘वीर अहीर’ कंपनी भी कहा जाता है।ज्ञातव्य है कि 13 कुमाऊं के 120 सैनिक हरियाणा राज्य के गुड़गांव, रेवाड़ी, नरनौल और महेंद्रगढ़ व राजस्थान के अलवर के रहने वाले थे। इस क्षेत्र को अहीरवाल क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है।
सर्वाधिक पदक इसी बटालियन के नाम
भारतीय सेना के इतिहास में किसी एक बटालियन को एक साथ बहादुरी के इतने पदक अब तक शायद ही मिले हो। यही नही सरकार ने चार्ली कंपनी की वीरता को देखते हुए बाद में कंपनी का दोबारा गठन किया तथा इसका नाम रेजांगला ही रखा। रेजांगला पोस्ट पर शहीद सैनिकों की वीरता का सम्मान करते हुए केंद्र सरकार ने कंपनी कंमाडर मेजर शैतान सिंह को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से अलंकृत किया। वहीं इसी बटालियन के आठ जवानों को वीर चक्र, चार जवानों को सेना मैडल व एक जवान को मैंशन इन डिस्पेच सम्मान से नवाजा गया। जिनमें हरिराम, सूरजा, रामचंद्र, रामकुमार, रामकुमार यादव, गुलाब सिंह, नायक सिंह, धर्मपाल, को वीर चक्र एवं जय नारायण, फूल सिंह, निहाल सिंह, हरफूल सिंह, को सेना मेडल दिया गया। साथ ही 13 कुमायूं के सीओ को एवीएसएम से अलंकृत किया गया।
सम्प्रति- लेखक श्री सन्तोष यादव उत्तरप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं। वह कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं से जुड़े रहे है।