मध्य प्रदेश के दमोह जिले में लोगों ने पेड़ों को बचाने के लिए अपने घर की डिज़ाइन तक बदल दी। पुराने आम और नीम के पेड़ों को सुरक्षित रखने के लिए दीवारें और छज्जे हटाए गए। पढ़ें कैसे बढ़ रही है पर्यावरण के प्रति जागरूकता।
दमोह जिले में पर्यावरण संरक्षण को लेकर लोगों में जागरूकता तेजी से बढ़ रही है। शहर के कई निवासी ऐसे हैं जिन्होंने अपने घर के निर्माण में पेड़ों को नुकसान न हो, इसके लिए मकान की पूरी डिज़ाइन ही बदल दी। गर्मी के मौसम में अब इन पेड़ों की छांव और हरियाली का लाभ भी उन्हें मिल रहा है।
100 साल पुराने आम के पेड़ को बचाया
फुटेरा वार्ड नंबर 2 के निवासी संतोष कुमार जैन ने अपने 100 साल पुराने आम के पेड़ को बचाने के लिए घर का नक्शा ही बदलवा दिया। यह पेड़ उनके पिता द्वारा लगाया गया था। जब नया मकान बन रहा था, तो मिस्त्री ने पेड़ काटने का सुझाव दिया, लेकिन जैन ने पेड़ को बचाने का फैसला किया। उन्होंने पेड़ के आसपास जगह खाली छोड़ी और बाजू से सीढ़ी बनवाई। आज यह पेड़ तीसरी मंज़िल तक पहुंच चुका है और इसकी ऊंचाई लगभग 65 फीट है। संतोष कुमार जैन ने बताया, “जैन धर्म में पेड़-पौधों और सभी जीवों के प्रति अहिंसा का भाव होता है। पेड़ एक इंद्रीय जीव हैं और हमें जीवनभर छांव, ऑक्सीजन और सकारात्मक ऊर्जा देते हैं।”
नारियल के पेड़ के लिए छोड़ी गई जगह
संतोष जैन ने लगभग 10 साल पहले अपने घर के बाहर नारियल का पेड़ भी लगाया था। पेड़ को सुरक्षित रखने के लिए उन्होंने उसकी जगह के चारों ओर खुला स्थान छोड़ा और छज्जे की डिज़ाइन में बदलाव किया। अब यह पेड़ 35 फीट ऊंचा हो चुका है और पूरी तरह से सुरक्षित है।
दीवार बनी, नीम का पेड़ भी बचा
फुटेरा वार्ड नंबर 2 के ही गोविंद राजपूत ने अपने घर में लगे लगभग 60 फीट ऊंचे नीम के पेड़ को बचाने के लिए निर्माण कार्य के दौरान उसकी शाखाओं के अनुसार स्थान छोड़ दिया। पेड़ के तने को बिना काटे उन्होंने चारों ओर दीवार बना दी। उन्होंने बताया कि उनके परिवार में पेड़ की नियमित पूजा होती है और गर्मियों में इस पेड़ के कारण घर के अंदर ठंडक बनी रहती है।
घर को बनाया ट्री हाउस
सेडमैप में कार्यरत पी.एन. तिवारी और उनकी पत्नी ने अपने घर को हरियाली से भर दिया है। उन्होंने घर के चारों ओर विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाए हैं, जिससे उनका घर एक ट्री हाउस की तरह नजर आता है। इसके कारण उनके घर का तापमान गर्मियों में काफी कम रहता है और सौंदर्य भी बढ़ा है। दमोह के ये निवासी समाज के लिए मिसाल बनकर उभर रहे हैं। वे यह साबित कर रहे हैं कि अगर इच्छा हो तो शहरीकरण और विकास के बीच भी पेड़ों और प्रकृति को बचाया जा सकता है।
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